ईश्वर से प्रेम क्यों करें (2 का भाग 2)

रेटिंग:
फ़ॉन्ट का आकार:
A- A A+

विवरण: ईश्वर के नाम के माध्यम से उसके प्रेम को समझना, और कैसे हम उसके विशेष प्रेम को प्राप्त करें।

  • द्वारा Hamza Andreas Tzortzis (http://www.hamzatzortzis.com)
  • पर प्रकाशित 04 Nov 2021
  • अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
  • मुद्रित: 0
  • देखा गया: 2,398 (दैनिक औसत: 3)
  • रेटिंग: अभी तक नहीं
  • द्वारा रेटेड: 0
  • ईमेल किया गया: 0
  • पर टिप्पणी की है: 0
खराब श्रेष्ठ

Mercy

Why-Love-God-part-2.jpgऐसा कहा जाता है कि प्रेम का दूसरा अर्थ दया है। ईश्वर के नामों में से एक नाम दयालु है; इस नाम के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला अरबी शब्द अर-रहमान है। इसका अंग्रेजी अनुवाद पूरी तरह से इस नाम की गहराई और गहनता को नहीं बता पाता। अर-रहमान नाम के तीन प्रमुख अर्थ हैं: पहला अर्थ है, ईश्वर की दया एक गहन दया है; दूसरा अर्थ है, उसकी दया तत्काल दया है; और तीसरी अर्थ है, उसकी दया इतनी शक्तिशाली है कि कोई उसे रोक नहीं सकता। ईश्वर की दया में सभी चीज़ें शामिल हैं और वह लोगों के लिए मार्गदर्शन को प्राथमिकता देता है। ईश्वर अपनी किताब क़ुरआन मे कहता है,

"... लेकिन मेरी दया में सब कुछ शामिल है..." (क़ुरआन 7:156)

"यह दया के ईश्वर हैं जिन्होंने क़ुरआन की शिक्षा दी।" (क़ुरआन 55:1-2)

उपरोक्त छंद में, ईश्वर कहता है कि वह दयालु है, जिसे "दया के ईश्वर" के रूप में समझा जा सकता है, और उसने क़ुरआन की शिक्षा दी। यह इस बात का भाषाई संकेत है कि क़ुरआन ईश्वर की दया की अभिव्यक्ति के रूप में आया था। दूसरे शब्दों मे कहें तो क़ुरआन मानवता के लिए एक बड़े प्रेम-पत्र की तरह है। सच्चे प्यार की तरह, जो प्यार करता है वह अपने प्रिय का भला चाहता है, और उन्हें नुकसान और बाधाओं से सचेत करता है, और उन्हें खुशी का रास्ता दिखाता है। इसी तरह क़ुरआन मानवता को पुकारता है, और चेतावनी भी देता है और खुशखबरी भी बताता है।

विशेष दया

अर-रहीम, अर-रहमान से जुड़ा हुआ है। इस नाम का और पिछले नाम का मूल एक ही है, जो अरबी शब्द 'गर्भ' से आया है। हालांकि दोनो के अर्थ में बड़ा अंतर है। अर-रहीम उन लोगों के लिए एक विशेष दया को दर्शाता है जो इसे अपनाना चाहते हैं। जिसने भी ईश्वर के मार्गदर्शन को स्वीकार किया, उसने अनिवार्य रूप से ईश्वर की विशेष दया को स्वीकार किया। यह विशेष दया विश्वास करने वालों के लिए है और यह स्वर्ग में व्यक्त की जाएगी; ईश्वर के साथ अनंत आनंदमय शांति।

विशेष प्रेम

क़ुरआन के अनुसार ईश्वर प्रेम करने वाला है। इसका अरबी नाम अल-वदूद है। यह एक विशेष प्रेम को दर्शाता है। यह वुद शब्द से आया है, जिसका अर्थ है देने के माध्यम से प्रेम व्यक्त करना: "और वह (ईश्वर) क्षमा करने वाला, प्रेम करने वाला है।" (क़ुरआन 85:14)

ईश्वर का प्रेम सभी प्रकार के प्रेम से ऊपर है। उसका प्रेम सांसारिक प्रेम के सभी रूपों से बड़ा है। उदाहरण के लिए एक माँ का प्रेम; हालांकि ये निस्वार्थ होता है, लेकिन अपने बच्चे को प्रेम करने की उसकी आंतरिक ज़रूरत पर आधारित होता है। यह उसे पूर्ण बनाती है, और अपने बलिदानों से वह संपूर्ण और पूर्ण महसूस करती है। ईश्वर स्वतंत्र है, आत्मनिर्भर और परिपूर्ण है; उसे किसी चीज की जरूरत नही। ईश्वर का प्रेम किसी जरुरत या चाहत पर आधारित नही है; इसलिए यह प्रेम का सबसे पवित्र रूप है, क्योंकि हमसे प्रेम कर के उसे कुछ भी प्राप्त नही होता है।

इस बात को ध्यान में रखते हुए, हम ईश्वर से प्रेम कैसे नहीं कर सकते जो हमारी कल्पना से भी अधिक प्रेमपूर्ण है? पैगंबर मुहम्मद (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) ने कहा, "एक मां जितना स्नेह अपने बच्चों से करती है, ईश्वर उससे कहीं ज्यादा स्नेह अपने बंदो से करता है।"[1]

यदि ईश्वर सबसे अधिक प्रेम करने वाला है, और उसका प्रेम महानतम सांसारिक प्रेम से बड़ा है, तो इस वजह से हमारे अंदर ईश्वर के लिए एक गहरा प्रेम होना चाहिए। महत्वपूर्ण रूप से हमें ईश्वर का सेवक होने के नाते उससे प्रेम करना चाहिए। अल-ग़ज़ाली ने ठीक ही कहा है, "जिनमे अंतर्दृष्टि है, उन लोगों के लिए वास्तव में ईश्वर के अलावा कोई भी प्रेम की चीज़ नहीं है, न ही ईश्वर के अलावा कोई और प्रेम के लायक है।"[2]

आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखें तो ईश्वर का प्रेम सबसे बड़ा आशीर्वाद है जिसे कोई भी कभी भी प्राप्त कर सकता है, क्योंकि यह आंतरिक संतोष, शांति और परलोक में शाश्वत आनंद का स्रोत है। ईश्वर से प्रेम न करना न केवल कृतघ्नता है, बल्कि घृणा का सबसे बड़ा रूप है। प्रेम के स्रोत से प्रेम न करना उसकी अस्वीकृति है जो प्रेम से हमारे हृदयों को भरता है।

ईश्वर अपने विशेष प्रेम को हम पर थोपता नहीं है। हालांकि, वह अपने प्रेम को पूरी तरह से अपनाने और उसके विशेष प्रेम को प्राप्त करने के लिए ईश्वर अपनी दया से हमें हमारे जीवन का हर पल प्यार से देता है, हर किसी को ईश्वर के साथ प्रेम का रिश्ता बनाना चाहिए। यह ऐसा है मानो ईश्वर का प्रेम प्रतीक्षा कर रहा है कि हम कब उसे अपना लें। हालांकि, हमने दरवाजा बंद कर दिया है और शटर लगा दिए हैं। हमने ईश्वर को नकारा के, नजरअंदाज कर के और अस्वीकार कर के दरवाजा बंद किया हुआ है। यदि ईश्वर अपने विशेष प्रेम को हम पर थोपता, तो प्रेम का कोई अर्थ नहीं रह जाता। हमारे पास विकल्प है: सही मार्ग पर चल के ईश्वर के विशेष प्रेम और दया को प्राप्त करना, या उनके मार्गदर्शन को अस्वीकार करके आध्यात्मिक परिणामों को झेलना।

सबसे अधिक प्यार करने वाला आपसे प्यार करता है, लेकिन आपको उसके विशेष प्रेम को पूरी तरह से पाने के लिए और इसके अर्थपूर्ण होने के लिए, आपको उससे प्यार करना होगा और उस मार्ग पर चलना होगा जो उसके प्यार की ओर ले जाता है। यह मार्ग पैगंबर मुहम्मद (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) द्वारा बताया गया मार्ग है:

"ऐ मुहम्मद कह दोः यदि तुम ईश्वर से प्रेम करते हो, तो मेरा अनुसरण करो, ईश्वर तुमसे प्रेम करेगा और तुम्हारे पाप क्षमा कर देगा। और ईश्वर अति क्षमाशील, दयावान् है।" (क़ुरआन 3:31)

इससे एक महत्वपूर्ण प्रश्न ये उठता है कि: मैं जानता हूं कि मुझे ईश्वर से प्रेम क्यों करना चाहिए, लेकिन मैं उससे प्रेम कैसे करूं? मैं आशा करता हूं कि इसका उत्तर मैं दूसरे लेख में दूंगा। हालांकि, मैं इसे 14वीं शताब्दी के धर्मशास्त्री इब्न अल-कय्यम के इन शब्दों के साथ समाप्त करता हूं:

"इसमें कोई संदेह नहीं है कि ईश्वर की पूर्ण सेवा पूर्ण प्रेम का हिस्सा है, और पूर्ण प्रेम अपने और अपने प्रिय की पूर्णता से जुड़ा है, क्योंकि ईश्वर (उसकी महिमा हो) सभी पहलुओं में पूरी तरह पूर्ण है, और उसमें कोई भी अपूर्णता नहीं हो सकती है। जो ऐसा है उसके लिए लोगों के दिलों में इससे अधिक प्रिय कुछ भी नहीं हो सकता है; जब तक लोगों का मूल स्वभाव अच्छा है, यह अनिवार्य है कि उनके दिलों मे ईश्वर सबसे अधिक प्रिय होंगे। निस्संदेह ईश्वर से प्रेम उनके प्रति समर्पण और आज्ञाकारिता की ओर ले जाता है, उनकी खुशी चाहता है, अपनी पूरी कोशिश से उनकी पूजा करता है और उनकी ओर ध्यान केंद्रित करता है। यह ईश्वर की पूजा करने का सबसे अच्छा और मजबूत कारण है।"[3]

अंतिम बार 5 अप्रैल 2017 को अपडेट किया गया। मेरी पुस्तक "द डिवाइन रियलिटी: गॉड, इस्लाम एंड द मिराज ऑफ एथीज़्म" से लिया और रूपांतरित किया गया। आप यह किताब यहां से खरीद सकते हैं.



फुटनोट:

[1] अबू दाऊद

[2] अल-ग़ज़ाली। (2011) अल-ग़ज़ाली ऑन लव, लोंगिंग, इंटिमेसी एंड कन्टेंटमेंट, पृष्ठ 23

[3] मिफ्ताह दार अल-सदाह, 2/88-90

खराब श्रेष्ठ

इस लेख के भाग

सभी भागो को एक साथ देखें

टिप्पणी करें

  • (जनता को नहीं दिखाया गया)

  • आपकी टिप्पणी की समीक्षा की जाएगी और 24 घंटे के अंदर इसे प्रकाशित किया जाना चाहिए।

    तारांकित (*) स्थान भरना आवश्यक है।

सर्वाधिक देखा गया

प्रतिदिन
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
कुल
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)

संपादक की पसंद

(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)

सूची सामग्री

आपके अंतिम बार देखने के बाद से
यह सूची अभी खाली है।
सभी तिथि अनुसार
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)

सबसे लोकप्रिय

सर्वाधिक रेटिंग दिया गया
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
सर्वाधिक ईमेल किया गया
सर्वाधिक प्रिंट किया गया
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
इस पर सर्वाधिक टिप्पणी की गई
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)

आपका पसंदीदा

आपकी पसंदीदा सूची खाली है। आप लेख टूल का उपयोग करके इस सूची में लेख डाल सकते हैं।

आपका इतिहास

(और अधिक पढ़ें...) हटाएं
(और अधिक पढ़ें...) हटाएं
(और अधिक पढ़ें...) हटाएं
(और अधिक पढ़ें...) हटाएं
(और अधिक पढ़ें...) हटाएं