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भाग एक में हमने चर्चा करी कि कैसे जीवन की परीक्षाओं और समस्याओं को धैर्य के साथ और इस समझ के साथ सहें कि ईश्वर की अनुमति के बिना कुछ भी नहीं होता है।
“और परोक्ष की कुंजियां उसी के पास हैं; उसके सिवा उन्हें कोई नहीं जानता। और वह जानता है कि भूमि पर और समुद्र में क्या है। एक पत्ता नहीं गिरता लेकिन वह जानता है और न कोई अन्न जो धरती के अंधेरों में हो और न कोई नम और न कोई शुष्क, परन्तु वह एक खुली पुस्तक में है। (क़ुरआन 6:59)
जब बीमारी या चोट लगती है तो इसका कारण स्पष्ट नहीं हो सकता या शायद हमारी समझ से परे भी हो सकता है। हालांकि ईश्वर मानवजाति के लिए केवल अच्छा चाहता है। इसलिए हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि कष्ट के पीछे कोई अच्छा कारण है और यह हमें ईश्वर के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने का अवसर प्रदान करता है। मनुष्य के पास निश्चित रूप से स्वतंत्र इच्छा है और किसी भी स्थिति का सामना अपने हिसाब से कर सकता है, लेकिन सबसे अच्छा रास्ता धैर्य और स्वीकृति है।
पैगंबर मुहम्मद (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) ने हमें बताया कि हमारे विश्वास के स्तर के अनुसार हमारी परीक्षा होगी और इन परीक्षाओं का सबसे कम इनाम ये होगा की हमारे पाप मिटा दिए जायेंगे। उन्होंने कहा, "व्यक्ति की परीक्षा उसके धार्मिक प्रतिबद्धता के स्तर के अनुसार ली जाएगी, और परीक्षाएं ईश्वर तब तक लेता रहेगा जब तक धरती पर उसके सारे पाप खत्म न हो जाए।[1]
जब हम बीमार होते हैं या हमें चोट लगती है तो हमारा डरना स्वाभाविक है। कभी-कभी हम यह सोचकर नाराज भी हो सकते हैं कि ईश्वर ने ऐसा क्यों किया। हम सवाल करते हैं और शिकायत करते हैं, लेकिन वास्तव में इससे हमारे दुख या पीड़ा बढ़ने के अलावा कुछ नहीं होता। ईश्वर ने अपनी असीम बुद्धि और दया से हमें बीमारी या चोट लगने पर कैसे व्यवहार करना है, इस बारे में स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए हैं। यदि हम इन दिशानिर्देशों का पालन करें तो हम दुखों को आसानी से सह सकते हैं और आभारी भी हो सकते हैं। जब एक आस्तिक बीमार होता है या उसे चोट लगती है तो वह ईश्वर पर भरोसा रखता है, ईश्वर ने उसके लिए जो भी स्थिति तय की है उसके लिए आभार व्यक्त करता है, और चिकित्सा सहायता लेता है।
इस्लाम में चिकित्सीय उपचार की अनुमति है और चिकित्सा सहायता लेने का मतलब ये नहीं है कि हम ईश्वर पर भरोसा नहीं करते। पैगंबर मुहम्मद ने इसे यह कह कर स्पष्ट कर दिया, "ऐसी कोई बीमारी नहीं है इसका इलाज न हो।"[2] एक आस्तिक बीमारियों और चोटों के इलाज के लिए डॉक्टर के पास जा सकता है। वह दिमाग की बीमारियों या भावनात्मक स्थितियों का पता लगाने और इलाज कराने के लिए जा सकता है। हालांकि कुछ छोटी-छोटी शर्तें हैं, जिनमें यह भी शामिल है कि किसी ऐसी चीज़ से इलाज नहीं किया जा सकता है जो निषिद्ध है, जैसे कि शराब। अंतत: ईश्वर किसी ऐसी चीज में इलाज नहीं देता जिसे उसने निषिद्ध किया है।
ज्योतिषियों, भविष्यवक्ताओं और किसी भी तरह के अन्य धोखेबाजों से इलाज कराने की अनुमति नही है। ये लोग भविष्य का ज्ञान होने का दावा करते हैं, जो संभव नहीं है और वे केवल लोगों को लूटने और उन्हें एक सच्चे ईश्वर से भटकाने की कोशिश करते हैं। ईश्वर ने बीमारी और चोट से बचने के लिए ताबीज और टोटका के इस्तेमाल को भी मना किया है। सारी शक्ति सिर्फ ईश्वर के पास है। ठीक होने या सुरक्षित रहने के लिए ईश्वर के अलावा किसी अन्य व्यक्ति या किसी अन्य चीज से प्रार्थना करना एक बहुत ही बड़ा पाप है।
इस भौतिक संसार में इलाज की तलाश में आध्यात्मिक इलाजों को तलाशना भी महत्वपूर्ण है। सबसे पहले ईश्वर के बारे में सकारात्मक सोचें, उनपर विश्वास रखें, और उसके नामों और विशेषताओं पर विचार करें। वह सबसे दयालु, सबसे ज्यादा प्यार करने वाला और सबसे बुद्धिमान है। हमें उसे उन नामों से पुकारने की सलाह दी जाती है जो हमारी आवश्यकताओं के लिए सबसे उपयुक्त हैं।
"और (सभी) सबसे सुंदर नाम ईश्वर के हैं, इसलिए उसे इन नामों से पुकारें।" (क़ुरआन 7:180)
ईश्वर ने हमें इस दुनिया की परीक्षाओं और समस्याओं के लिए नहीं छोड़ा है, उन्होंने हमें मार्गदर्शन और पीड़ा और संकट के खिलाफ सबसे शक्तिशाली हथियार दिया है - क़ुरआन, स्मरण और प्रार्थना के शब्द, और प्रार्थना। [3] जैसे-जैसे हम 21वीं सदी में आगे बढ़ रहे हैं, हमने प्रामाणिक आध्यात्मिक उपचारों के बजाय चिकित्सा सहायता पर भरोसा करना शुरू कर दिया है, हालांकि दोनों का उपयोग एक साथ करना अक्सर बहुत प्रभावी हो सकता है । कभी-कभी बीमारियां बनी रहती हैं, कभी-कभी चोटें पुरानी हो जाती हैं, लेकिन कभी-कभी खराब स्वास्थ्य से बहुत बड़ी आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि मिलती है।
हमने कितनी बार दुर्बल करने वाली बीमारियों या विकलांगता से ग्रसित लोगों को उनकी स्थितियों के लिए ईश्वर का धन्यवाद करते सुना है, या बात करते सुना है कि किस तरह दर्द और पीड़ा उनके जीवन में आशीर्वाद और अच्छाई ले कर आई है। जब हम अकेला और व्यथित महसूस करते हैं तो ईश्वर ही हमारा एकमात्र सहारा होता है। जब दर्द और पीड़ा असहनीय हो जाती है, जब भय और दुख के अलावा कुछ नहीं बचता, तब हम उस एक चीज तक पहुंच जाते हैं जो हमें पाप से मुक्ति दिला सकता है - ईश्वर। ईश्वर की इच्छा के प्रति पूर्ण विश्वास और पूर्ण समर्पण से आनंद और स्वतंत्रता मिलती जिसे विश्वास की मिठास के रूप में जाना जाता है। यह शांति और संतुष्टि है और यह इस दुनिया में आने वाली सभी अच्छी, बुरी, बदसूरत, दर्दनाक, कष्टदायक और आनंदित करने वाली स्थितियों को स्वीकार करने में हमें सक्षम बनाती है।
अंत में यह समझना महत्वपूर्ण है कि बीमारियां और चोटें हमें पापो से मुक्ति दिलाने का ईश्वर का एक तरीका हो सकता हैं। मनुष्य पूर्ण नहीं हैं, हम गलतियां करते हैं, बुरे कार्य करते हैं, और यहां तक कि जानबूझकर ईश्वर के आदेशों की अवहेलना करते हैं।
"और जो भी दुख तुम्हें पहुंचता है, वह तुम्हारे अपने करतूत से पहुचता है तथा वह क्षमा कर देता है तुम्हारे बहुत-से पापों को।" (क़ुरआन 42:30)
ईश्वर की कृपा को कभी कम नहीं आंकना चाहिए। वह कहता है कि मुझसे (ईश्वर) क्षमा मांगो। पैगंबर मोहम्मद ने हमें याद दिलाया कि ईश्वर हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैं कि हम उनसे मांगे। रात के आखिरी हिस्से में जब पूरी जमीन पर गहरा अंधेरा छा जाता है, ईश्वर सबसे निचले आसमान पर आते हैं और अपने बंदो से कहते हैं "कोई है जो मुझसे प्रार्थना करे और मैं उसका उत्तर दूं? कोई है जो मुझसे मांगे और मैं उसे दे दूं? कोई है जो मुझसे क्षमा मांगे और मैं उसे क्षमा कर दूं?"[4]
हमें अक्सर हमारे कार्यों के कारण दुर्भाग्य, दर्द और पीड़ा होती है। हम पाप करते हैं, लेकिन ईश्वर हमें धन, स्वास्थ्य या उन चीजों के नुकसान से जिनसे हम प्यार करते है, हमारे पाप मिटाते हैं। कभी-कभी इस दुनिया में कष्ट का मतलब होता है कि हमें परलोक में कष्ट नही होगा, कभी-कभी सभी दर्द और संकट का मतलब होता है कि हमें स्वर्ग में एक उच्च पद मिलेगा।
बुरे लोगों के साथ अच्छी चीजें क्यों होती हैं या अच्छे लोगों के साथ बुरी चीजें क्यों होती हैं, इसके पीछे का राज सिर्फ ईश्वर जानता है। सामान्य तौर पर जो कुछ भी हमें ईश्वर की ओर ले जाता है वह अच्छा होता है। संकट के समय लोग ईश्वर के करीब आ जाते हैं, जबकि आराम के समय में हम अक्सर भूल जाते हैं कि आराम कहां से आया है। देने वाला ईश्वर है और वह सबसे उदार है। ईश्वर हमें कभी न खत्म होने वाले जीवन का उपहार देना चाहता है और यदि दर्द और पीड़ा स्वर्ग जाने की गारंटी है तो बीमारी और चोट एक आशीर्वाद है। पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "यदि ईश्वर किसी का भला करना चाहता है तो वह उसकी परीक्षा लेता है।"[5]
जब बीमारी आती है तो सबसे पहला काम है ईश्वर को धन्यवाद देना, उनके करीब जाने की कोशिश करना और चिकित्सा सहायता लेना और उन आशीर्वादों को गिनना जो उन्होंने हमें दिए हैं।
[1] इब्न माजा।
[2] बुखारी
[3] क़ुरआन की उपचार शक्ति की पूरी व्याख्या के लिए कृपया लेख 'इस्लाम में स्वास्थ्य' का भाग 2 देखें।
[4] सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम, मलिक, अत-तिर्मिज़ी, अबू दाऊद
[5] सहीह अल-बुखारी
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