उन्होंने मुहम्मद के बारे में क्या कहा (3 का भाग 3)

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विवरण: पैगंबर के बारे में इस्लाम का अध्ययन करने वाले गैर-मुस्लिम विद्वानों के बयान। भाग 3: अतिरिक्त कथन।

  • द्वारा Eng. Husain Pasha (edited by IslamReligion.com)
  • पर प्रकाशित 04 Nov 2021
  • अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
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एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका:

“....प्रारंभिक स्रोतों में विस्तृत विवरण से पता चलता है कि वह एक ईमानदार और सच्चे व्यक्ति थे, जिन्होंने अन्य लोगों का सम्मान और वफादारी प्राप्त की थी जो समान बुद्धिमान ईमानदार और सच्चे व्यक्ति थे।” (खंड 12)

जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने उनके बारे में कहा है:

"उन्हें मानवता का उद्धारकर्ता कहा जाना चाहिए। मेरा मानना है कि अगर उनके जैसा आदमी आधुनिक दुनिया की अधिनायकत्व ग्रहण कर लेता है, तो वह इस तरह की समस्याओं को हल करने में सफल होते, जिससे यह बहुत जरूरी शांति और खुशहाली लाते। ”

(थ जेनुइन इस्लाम, सिंगापुर, खंड 1, नंबर 8, 1936)

वह इस धरती पर अब तक के सबसे उल्लेखनीय व्यक्ति थे। उन्होंने एक धर्म का प्रचार किया, एक राज्य की स्थापना की, एक राष्ट्र का निर्माण किया, एक नैतिक संहिता निर्धारित की, कई सामाजिक और राजनीतिक सुधारों की शुरुआत की, अपनी शिक्षाओं का अभ्यास और प्रतिनिधित्व करने के लिए एक शक्तिशाली और गतिशील समाज की स्थापना की और आने वाले समय के लिए मानव विचार और व्यवहार की दुनिया में पूरी तरह से क्रांति ला दी।

पैगंबर मुहम्मद का जन्म अरब में 570 सीई में हुआ था, उन्होंने चालीस साल की उम्र में सत्य, इस्लाम (एक ईश्वर को अधीनता) के धर्म का प्रचार करने का अपना लक्ष्य शुरू किया और त्रेसठ (63) साल की उम्र में इस दुनिया से चल बसे। अपनी पैगंबरी के तेईस (23) वर्षों की इस छोटी अवधि के दौरान उन्होंने पूरे अरब प्रायद्वीप को बुतपरस्ती और मूर्तिपूजा से एक ईश्वर की पूजा में बदल दिया, आदिवासी झगड़ों और युद्धों से राष्ट्रीय एकता और एकजुटता में, नशे और व्यभिचार से संयम और धर्मपरायणता तक और अराजकता से अनुशासित जीवन, पूर्ण दिवालियापन से नैतिक उत्कृष्टता के उच्चतम मानकों तक में सुधार लाए। मानव इतिहास ने पहले या बाद में किसी भी व्यक्ति या स्थान के ऐसे पूर्ण परिवर्तन को कभी नहीं जाना है - और कल्पना करें की केवल दो दशकों में इन सभी अविश्वसनीय चमत्कारों को अंजाम दिया।

दुनिया में महान व्यक्तित्वों का अपना हिस्सा रहा है। लेकिन यह एकतरफा शख्सियत थे जिन्होंने खुद को एक या दो क्षेत्रों में जैसे कि धार्मिक विचार या सैन्य नेतृत्व प्रतिष्ठित किया। दुनिया की इन महान हस्तियों के जीवन और शिक्षाएं समय की धुंध में डूबी हुई हैं। उनके जन्म के समय और स्थान, उनके जीवन की साधन और शैली, उनकी शिक्षाओं की प्रकृति, विवरण और उनकी सफलता या विफलता की डिग्री और माप के बारे में इतनी अटकलें हैं कि मानवता के लिए जीवन का सटीक पुनर्निर्माण करना असंभव है।

लेकिन इस व्यक्ति के लिए ऐसा नही है। मुहम्मद (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) मानव इतिहास की पूरी चमक में मानव विचार और व्यवहार के ऐसे विविध क्षेत्रों में बहुत कुछ हासिल किया। उनके निजी जीवन और सार्वजनिक बयानों के हर विवरण को सटीक रूप से प्रलेखित किया गया है और ईमानदारी से आज तक संरक्षित किया गया है। इस प्रकार संरक्षित किए गए अभिलेख की प्रामाणिकता न केवल वफादार अनुयायियों द्वारा बल्कि उनके पूर्वाग्रही आलोचकों द्वारा भी प्रमाणित की जाती है।

मुहम्मद अकेले ही एक धार्मिक शिक्षक, एक समाज सुधारक, एक नैतिक मार्गदर्शक, एक प्रशासनिक महानायक, एक वफादार दोस्त, एक अद्भुत साथी, एक समर्पित पति, एक प्यार करने वाले पिता थे। इतिहास में किसी भी अन्य व्यक्ति ने जीवन के इन विभिन्न पहलुओं में से किसी में भी उनके श्रेष्ठता या बराबरी नहीं की - लेकिन यह सिर्फ मुहम्मद का निस्वार्थ व्यक्तित्व ही था जिससे उन्होंने ऐसी अविश्वसनीय सिद्धियों को प्राप्त किया।

महात्मा गांधी, मुहम्मद के चरित्र पर बोलते हुए "यंग इंडिया" में कहते हैं:

"मैं उस व्यक्ति के बारे में सबसे अच्छा जानना चाहता था जो लाखों मानवजाति के दिलों पर आज भी निर्विवाद प्रभाव रखता है... मैं इस बात से अधिक आश्वस्त हो गया कि यह वह तलवार नहीं थी जिसने लोगों की जीवन में उन दिनों इस्लाम के लिए जगह बनाई थी। यह कठोर सादगी, पैगंबर का पूर्ण त्याग, उनकी प्रतिज्ञाओं के प्रति निष्ठा, उनकी मित्रों और अनुयायियों के प्रति उनकी गहन भक्ति, उनकी निर्भयता, उनकी निडरता, ईश्वर और अपने स्वयं के लक्ष्य में उनका पूर्ण विश्वास था। ये तलवार नहीं थी जिससे वो आगे बढ़े और हर बाधा को पार किया। जब मैंने पैगंबर की जीवनी का दूसरा खंड खत्म किया, तो मुझे दुख हुआ कि मेरे पास उनके महान जीवन के बारे में पढ़ने के लिए और अधिक नहीं था।”

थॉमस कार्लाइल अपनी किताब (हीरोस एंड हीरो-वरशिप) में इस तरह चकित थे:

“कैसे एक आदमी अकेले के दम पर युद्धरत जनजातियों और भटकते हुए बेडौंस को दो दशकों से भी कम समय में एक सबसे शक्तिशाली और सभ्य राष्ट्र बना सकता है?”

दीवान चंद शर्मा ने लिखा:

"मुहम्मद दयालुता की आत्मा थे, और उनके प्रभाव को उनके आसपास के लोगों ने महसूस किया और कभी भी नहीं भुलाया।"

(डी.सी. शर्मा, द प्रोफेट ऑफ़ द ईस्ट, कलकत्ता, 1935, पृष्ट 12)

मुहम्मद एक इंसान थे। लेकिन वह एक महान लक्ष्य वाले व्यक्ति थे, जो एक और केवल एक ईश्वर की पूजा पर मानवता को एकजुट करने और उन्हें ईश्वर की आज्ञाओं के आधार पर ईमानदार और सच्चा जीवन जीने का तरीका सिखाते थे। उन्होंने हमेशा खुद को "एक नौकर और ईश्वर का दूत" बताया, और इसलिए उनका हर कार्य इसकी घोषणा थी।

इस्लाम में ईश्वर के समक्ष समानता के पहलू पर बोलते हुए, भारत की प्रसिद्ध कवयित्री सरोजिनी नायडू कहती हैं:

"यह पहला धर्म है जिसने लोकतंत्र का प्रचार और अभ्यास किया; क्योंकि मस्जिद में जब प्रार्थना का आह्वान किया जाता है और उपासक एक साथ इकट्ठे होते हैं, तब इस्लाम का लोकतंत्र दिन में पांच बार सन्निहित होता है, जब किसान और राजा कंधे से कंधा मिलाकर घुटने टेकते हैं और कहते हैं: 'सिर्फ ईश्वर महान हैं'... मैं इस्लाम की इस अविभाज्य एकता से बार-बार प्रभावित हुई हूं जो मनुष्य को सहज रूप से भाई बनाती है।"

(एस. नायडू, आइडियल ऑफ़ इस्लाम, वाइड स्पीचेस एंड राइटिंग, मद्रास, 1918, पृष्ट 169)

प्रो. हरग्रोन्जे के शब्दों में:

"इस्लाम के पैगंबर द्वारा स्थापित राष्ट्रों की संघ ने अंतरराष्ट्रीय एकता और मानव भाईचारे के सिद्धांत को ऐसी सार्वभौमिक नींव पर रखा है जो अन्य राष्ट्रों को सच्चाई दिखाने के लिए है।" वह जारी रखता है: "तथ्य यह है कि दुनिया का कोई भी राष्ट्र इस संघ के विचार को साकार करने के लिए इस्लाम ने जो किया है, उसके समानांतर नहीं दिखा सकता है।"

दुनिया ने देवत्व को ऊपर उठाने में संकोच नहीं किया, ऐसे व्यक्ति जिनके जीवन और लक्ष्य पौराणिक कथाओं में खो गए हैं। ऐतिहासिक रूप से कहें तो, इनमें से किसी भी किवदंती ने मुहम्मद द्वारा की गई उपलब्धि का एक अंश भी हासिल नहीं किया और उनका सारा प्रयास नैतिक उत्कृष्टता के कोड पर एक ईश्वर की पूजा के लिए मानवजाति को एकजुट करने के एकमात्र उद्देश्य के लिए था। मुहम्मद या उनके अनुयायियों ने कभी भी यह दावा नहीं किया कि वह ईश्वर का पुत्र या ईश्वर-अवतार या देवत्व वाले व्यक्ति थे - लेकिन वह हमेशा से थे और आज भी उन्हें केवल ईश्वर द्वारा चुना गया दूत माना जाता है।

भारतीय दर्शनशास्त्र के एक प्रोफेसर के. एस. रामकृष्ण राव ने अपनी पुस्तिका ("मुहम्मद, द प्रोफेट ऑफ़ इस्लाम") में उन्हें "मानव जीवन के लिए आदर्श मॉडल बताया है।

प्रो. रामकृष्ण राव अपनी बात को यह कहकर स्पष्ट करते हैं:

“मुहम्मद के व्यक्तित्व के बारे में पूरी सच्चाई में उतरना सबसे कठिन है। इसकी एक झलक ही मैं पकड़ सकता हूं। सुरम्य दृश्यों का क्या ही नाटकीय क्रम है! यहां मुहम्मद एक पैगंबर हैं, यहां मुहम्मद एक योद्धा हैं; व्यवसायी मुहम्मद, राजनेता मुहम्मद, वक्ता मुहम्मद, सुधारक मुहम्मद, अनाथों के लिए शरण मुहम्मद; गुलामों के रक्षक मुहम्मद; महिलाओं के मुक्तिदाता मुहम्मद; न्यायाधीश मुहम्मद, संत मुहम्मद। इन सभी शानदार भूमिकाओं में, मानवीय गतिविधियों के इन सभी विभागों में, वह एक नायक के समान हैं।”

आज चौदह शताब्दियों के अंतराल के बाद मुहम्मद का जीवन और शिक्षाएँ बिना किसी नुकसान, परिवर्तन या प्रक्षेप के जीवित हैं। मानवजाति की अनेक बीमारियों के उपचार के लिए वही अनन्त आशा प्रदान करते हैं, जो उन्होंने उसके जीवित रहते हुए की थी। यह मुहम्मद के अनुयायियों का दावा नहीं है बल्कि एक महत्वपूर्ण और निष्पक्ष इतिहास द्वारा मजबूर अपरिहार्य निष्कर्ष भी है।

एक जागरूक इंसान के रूप में आप कम से कम एक पल के लिए रुक सकते हैं और अपने आप से पूछ सकते हैं: क्या यह कथन जो इतने असाधारण और क्रांतिकारी लग रहे हैं, वास्तव में सच हो सकते हैं? और मान लीजिए कि वे वास्तव में सच हैं और आप इस आदमी मुहम्मद को नहीं जानते थे या उनके बारे में नहीं सुनते थे, तो क्या यह समय नहीं है कि आप इस जबरदस्त चुनौती का जवाब दें और उन्हें जानने के लिए कुछ प्रयास करें?

इसमें आपको कुछ भी खर्च नहीं करना पड़ेगा लेकिन यह आपके जीवन में एक बिल्कुल नए युग की शुरुआत साबित हो सकती है।

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