इस्लाम धर्म को अपनाने के लाभ (भाग 3 का 1)

रेटिंग:
फ़ॉन्ट का आकार:
A- A A+
  • द्वारा Aisha Stacey (© 2011 IslamReligion.com)
  • पर प्रकाशित 04 Nov 2021
  • अंतिम बार संशोधित 09 Oct 2022
  • मुद्रित: 7
  • देखा गया: 17,464 (दैनिक औसत: 16)
  • रेटिंग: 2.8 में से 5
  • द्वारा रेटेड: 43
  • ईमेल किया गया: 0
  • पर टिप्पणी की है: 0
खराब श्रेष्ठ

BenefitsOfConvertingPart1.jpgइस वेबसाइट पर कई लेख मौजूद हैं जो बताते हैं कि इस्लाम धर्म को अपनाना कितना आसान है। ऐसे लेख और वीडियो भी मौजूद हैं जो उन बाधाओं के ऊपर बात करती है जो किसी व्यक्ति को इस्लाम क़बूल करने से रोक सकती हैं। हक़ीकत में इस्लाम लाने वाले लोग अपनी कहानियां साझा करते हैं, और हम उनकी प्रसन्नता और उत्साह को आपके साथ साझा कर सकते हैं। साथ ही एक ऐसा लेख भी है जो बताता है कि मुसलमान कैसे बनें। इस्लाम धर्म को अपनाने के विषय पर कई अलग-अलग दृष्टिकोण से चर्चा की गई है और लेखों की यह श्रृंखला इस्लाम धर्म को अपनाने से होने वाले लाभों पर चर्चा करती है।

इस्लाम धर्म को अपनाने से कई लाभ प्राप्त होते हैं, उनमें सबसे स्पष्ट लाभ शांति और कल्याण की भावना होती है जो किसी भी व्यक्ति के अंदर पैदा होती है और जो यह महसूस कराती है कि उन्होंने जीवन के सबसे बुनियादी सत्यों में से एक की खोज कर ली है। सबसे पवित्र और सरल तरीके से ईश्वर के साथ जुड़ना स्वतंत्र महसूस कराता है तथा उत्साहजनक होता है, और इसके फलस्वरूप आपके अंदर इत्मीनान की भावना पैदा होती है। हालांकि इस्लाम धर्म को अपनाने का एकमात्र लाभ यही नहीं है, ऐसे अन्य लाभ भी हैं जो एक व्यक्ति को अनुभव होते हैं और हम यहां एक-एक करके उनकी चर्चा करेंगे।

1. इस्लाम धर्म को अपनाना किसी व्यक्ति को मानव निर्मित प्रथाओं और जीवन शैली की गुलामी से मुक्त करता है।

इस्लाम आपके मन को अंधविश्वासों और अनिश्चितताओं से मुक्त करता है; यह आत्मा को पाप और भ्रष्टाचार से मुक्त करता है और अंतरात्मा को उत्पीड़न और भय से मुक्त करता है। ईश्वर की इच्छा के आगे समर्पण करना व्यक्ति की स्वतंत्रता को कम नहीं करता है, इसके विपरीत यह मन को अंधविश्वासों से मुक्त करके और उसे अधिक से अधिक सत्य और ज्ञान से भरकर बहुत उच्च स्तर की स्वतंत्रता प्रदान करता है।

एक बार जब कोई व्यक्ति इस्लाम स्वीकार कर लेता है तो वे फैशन उद्योग या उपभोक्तावाद के गुलाम नहीं रह जाते हैं, और वे लोगों को अपने वश में करने के लिए बनाई गई एक मौद्रिक प्रणाली की गुलामी से मुक्त हो जाते हैं। छोटे मगर सामान्य तौर पर महत्वपूर्ण पैमाने पर, इस्लाम किसी व्यक्ति को उन अंधविश्वासों से मुक्त करता है जो उन लोगों के जीवन पर शासन करते हैं और जिसका ईश्वर के प्रति समर्पित होने से कोई लेना-देना नहीं होता है। एक आस्था रखने वाला इंसान जानता है कि अच्छी और बुरी किस्मत जैसी कोई चीज़ नहीं होती है। हमारे जीवन में अच्छे और बुरे दोनों पहलू ईश्वर की इच्छा से होते हैं और जैसा कि पैगंबर मुहम्मद, उन पर ईश्वर की विशेष कृपा, दया दृष्टि और अनुकम्पा हो, कहते हैं कि ईश्वर पर आस्था रखने वाले किसी व्यक्ति के जीवन में आने वाले सभी परिस्थिति अच्छे होते हैं, "अगर उसके जीवन में खुशियां आती हैं तो वह आभारी होता है, और यह उसके लिए अच्छा है: और यदि उस पर कष्ट आता है, तो वह दृढ़ बनता है, और यह भी उसके लिए अच्छा है"।[1]

मानव निर्मित प्रथाओं और जीवन शैली से मुक्त होने के बाद वह सही तरीके से ईश्वर की इबादत करने के लिए स्वतंत्र होता है। एक आस्था रखने वाला व्यक्ति ईश्वर पर अपना भरोसा और आशा रखने में सक्षम होता है और ईमानदारी से उसकी दया की तलाश करता है।

2. इस्लाम क़बूल करने के बाद व्यक्ति वास्तव में ईश्वर के प्रेम का अनुभव कर सकता है।

इस्लाम क़बूल कर लेने के बाद कोई व्यक्ति जीवन जीने के लिए बताए गए मार्गदर्शन - क़ुरआन, और पैगंबर मुहम्मद की प्रामाणिक शिक्षाओं और परंपराओं का पालन करके ईश्वर के प्रेम को हासिल कर सकता है। जब ईश्वर ने इस संसार निर्माण किया, तो उन्होंने इसे अस्थिरता और असुरक्षा के बीच यूं ही नहीं छोड़ दिया। बल्कि उन्होंने एक रस्सी भेजी, मज़बूत और स्थिर, और इस रस्सी को कसकर पकड़कर एक तुच्छ मनुष्य महानता और शाश्वत शांति प्राप्त कर सकता है। क़ुरआन के माध्यम से, ईश्वर ने अपनी इच्छाओं को पूरी तरह से स्पष्ट कर दिया है, हालांकि मनुष्य स्वतंत्र रूप से अपनी इच्छा का मालिक है और वह अपनी इच्छा के अनुसार ईश्वर को ख़ुश या नाराज़ करने के लिए स्वतंत्र है।

ऐ मुहम्मद (लोगों से कह दो): "यदि तुम वास्तव में ईश्वर से प्रेम करते हो तो मेरा अनुसरण करो (यानि इस्लाम के बताए एक ईश्वर की आराधना करो, क़ुरआन और सुन्नत का पालन करो), ईश्वर तुमसे प्रेम करेगा और तुम्हारे पापों को क्षमा कर देगा। और ईश्वर बड़ा क्षमाशील, दयावान है।" (क़ुरआन 3:31)

और इस आज्ञापालन (इस्लाम) के सिवा जो व्यक्ति कोई और तरीका अपनाना चाहे, तो उसका वह तरीका कभी भी स्वीकार नहीं किया जाएगा और परलोक में वह असफल रहेगा। (क़ुरआन 3:85)

दीन के मामले में कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं है। सही बात गलत विचारों से अलग छांटकर रख दी गई है। अब जिस किसी ने तागूत [2] का इनकार करके ईश्वर को माना, उसने एक मज़बूत सहारा थाम लिया, जो कभी टूटने वाला नहीं, और ईश्वर (जिसका सहारा उसने लिया है) सबकुछ सुननेवाला और जाननेवाला है। (क़ुरआन 2:256)

3. इस्लाम क़बूल करने का एक लाभ यह है कि ईश्वर आस्था रखने वाले से स्वर्ग का वादा करता है।

स्वर्ग, जैसा कि क़ुरआन की कई आयतों में वर्णित है, शाश्वत आनंद प्राप्त करने का एक स्थान है और इसी का आस्था रखने वालों से वादा किया जाता है। ईश्वर ईमान वालों को स्वर्ग का इनाम देकर अपनी दया प्रकट करता है। जो कोई ईश्वर को मानने से इनकार करता है या उसके साथ या उसकी जगह पर किसी और की आराधना करता है, या दावा करता है कि ईश्वर का कोई बेटा, बेटी या कोई साथी है, तो वह परलोक में नरक की आग में बर्बाद होगा। इस्लाम क़बूल करके कोई व्यक्ति क़ब्र की पीड़ा, क़यामत के दिन की सज़ा और अनंत नरक की आग में झोंके जाने से बच सकता है।

"और जो लोग ईमान लाये और उन्होंने भले कर्म किये, उनको हम स्वर्ग के ऊँचे महलों में स्थान देंगे जिनके नीचे नहरें बहती होंगी, वह उनमें सदैव रहेंगे।" (क़ुरआन 29:58)

4. इस्लाम को क़बूल करके ख़ुशी, सुकून और आंतरिक शांति और प्राप्त की जा सकती है।

इस्लाम अपने आप में आंतरिक शांति और सुकून का रास्ता प्रदान करता है। इस्लाम, मुस्लिम और सलाम (शांति) शब्द सभी मूल शब्द "सा-ला-मा" से निकले हैं जो शांति, उद्धार और सुरक्षा को दर्शाता है। जब कोई ईश्वर की इच्छा के प्रति समर्पण करता है तो उसे सुरक्षा और शांति की स्वाभाविक भावना का अनुभव होता है।

शाश्वत सुख केवल स्वर्ग में ही मुमकिन है। वहां हम परम शांति, सुकून और सुरक्षा प्राप्त कर सकेंगे और उस भय, चिंता और दर्द से मुक्त हो सकेंगे जो मानवीय रूप का हिस्सा हैं। हालांकि इस्लाम द्वारा बताए गए रास्ते हम जैसे तुच्छ मानवों को इस दुनिया में खुशी की तलाश करने की अनुमति देते हैं। इस संसार में और परलोक में सुखी रहने की कुंजी यही है कि हम ईश्वर की ख़ुशी को तलाशें, और उसकी इबादत करें, वह भी उसके साथ किसी भी भागीदार (शरीक) किए बगैर।

अगले लेख में हम क्षमा और दया, आज़माइश और पीड़ा के विषय पर चर्चा करके इस्लाम को क़बूल करने के लाभों के बारे में अपनी चर्चा जारी रखेंगे।



फुटनोट:

[1]सहीह मुस्लिम

[2] तागूत – एक अरबी शब्द है जिसके अनतर्गत कई अर्थ आते हैं। मूल रूप से कहें तो इसका अर्थ कुछ ऐसा होता है कि एक सच्चे ईश्वर के अलावा किसी और आराधना करना और इसमें शैतान, राक्षस, मूर्तियां, पत्थर, तारे, सूर्य या चंद्रमा, देवदूत, मनुष्य, संतों के कब्र, शासक और नेता शामिल हैं।

खराब श्रेष्ठ

इस लेख के भाग

सभी भागो को एक साथ देखें

टिप्पणी करें

  • (जनता को नहीं दिखाया गया)

  • आपकी टिप्पणी की समीक्षा की जाएगी और 24 घंटे के अंदर इसे प्रकाशित किया जाना चाहिए।

    तारांकित (*) स्थान भरना आवश्यक है।

इसी श्रेणी के अन्य लेख

सर्वाधिक देखा गया

प्रतिदिन
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
कुल
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)

संपादक की पसंद

(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)

सूची सामग्री

आपके अंतिम बार देखने के बाद से
यह सूची अभी खाली है।
सभी तिथि अनुसार
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)

सबसे लोकप्रिय

सर्वाधिक रेटिंग दिया गया
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
सर्वाधिक ईमेल किया गया
सर्वाधिक प्रिंट किया गया
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
इस पर सर्वाधिक टिप्पणी की गई
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)

आपका पसंदीदा

आपकी पसंदीदा सूची खाली है। आप लेख टूल का उपयोग करके इस सूची में लेख डाल सकते हैं।

आपका इतिहास

आपकी इतिहास सूची खाली है।

Minimize chat