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इस्लाम के पैगंबर मुहम्मद, जिनकी मृत्यु 632 में हुई थी, उन्होंने कहा था:
"जिब्रईल मेरे पास आए और कहा, 'ओ मुहम्मद, जैसे जी चाहे जियो, क्योंकि आखिर में तो तुम्हें मरना ही है। जिसे चाहो उसे प्यार करो, क्योंकि आखिर में तो तुम्हें बिछुड़ना ही है। जो जी चाहे करो, क्योंकि तुम्हें उसका परिणाम भुगतना ही है। यह जान लो कि रात में की गई प्रार्थना[1] एक आस्तिक के लिये सम्मान की बात है, और उसका स्वाभिमान उसके दूसरों से स्वतंत्र रहने में है।" (सिलसिला- अल सहीह)
जीवन के बारे में अगर कुछ निश्चित है, तो वह है उसका अंत। यह सत्य स्वाभाविक रूप अधिकतर मनुष्यों के जीवन में कम से कम एक बार प्रश्न बनकर उद्वेलित करता है: मृत्यु के बाद क्या?
शारीरिक स्तर पर, मृत व्यक्ति का जो होता है वह सबको पता है। अगर कारण सामान्य हैं,[2] तो हृदय धड़कना बंद कर देता है, फेफड़े सांस लेना बंद कर देते हैं, और शरीर की कोशिकाओं को रक्त और ऑक्सीजन मिलना बंद हो जाता है। बाहरी तत्वों तक रक्त के प्रवाह का रुकना उन्हें पीला कर देता है। ऑक्सीजन के बंद हो जाने से, कोशिकाएँ कुछ समय तक तो बिना ऑक्सीजन के साँस लेती हैं, जिससे लैक्टिक एसिड बनने लगता है, जिससे रिगर मॉर्टिस हो जाता है - शव की मांसपेशियों का अकड़ने लगना। उसके बाद, जैसे ही कोशिकाएँ विघटित होने लगती हैं, अकड़न कम हो जाती है, जीभ बाहर आ जाती है, तापमान गिर जाता है, त्वचा का रंग बदरंग हो जाता है, मांस सड़ने लगता है, और परजीवी उसे खाने लगते हैं - जब तक कि सूखे हुए दांत और हड्डियाँ न बच जाएँ।
जहाँ तक मृत्यु के बाद आत्मा की यात्रा का प्रश्न है, यह ऐसी नहीं है जिसे देखा जा सके, और न जिसका वैज्ञानिक शोध से पता लगाया जा सके। यहाँ तक कि जीवित शरीर में, किसी की चेतना, या आत्मा से कोई अनुभवजन्य प्रयोग किया जा सके। यह मनुष्य के नियंत्रण में बिल्कुल नहीं है। इस बारे में, परलोक की अवधारणा - मृत्यु पश्चात जीवन, पुनर्जीवन, और परिणाम का दिन ; साथ ही दिव्य ईश्वरीय, सर्वशक्तिमान निर्माता, उसके देवदूत, भाग्य आदि आदि - की परिकल्पना, अनदेखे में विश्वास का विषय हैं। मनुष्य के पास अनदेखे संसार के बारे में कुछ भी जानने का तरीका ईश्वरीय रहस्योद्घाटन ही है।
"और अनदेखे का रहस्य ईश्वर के पास है, उसके सिवा किसी को नहीं मालूम। और उसे ही मालूम है जो कुछ भी है पृथ्वी में (या उस पर) और समुद्र में। एक पत्ता भी गिरता है, उसे पता रहता है। पृथ्वी के अंधकार में ऐसा कुछ नहीं, न ही कुछ ताज़ा न ही सूखा, जो एक स्पष्ट रिकॉर्ड में न लिखा हो।" (क़ुरआन 6:59)
पहले आये पैगंबरो को बताए गए उपदेश जैसे तौरात, ज़बूर, इंजील सब मे परलोक का वर्णन है, यह केवल ईश्वर के मानवता के लिये अपने अंतिम पैगंबर, मुहम्मद को दिए गए अंतिम रहस्योद्घाटन, यानी पवित्र क़ुरआन ही है, जिससे हमें ईश्वर के जीवन के बारे में सबसे अधिक पता चलता है। और क़ुरआन जैसा है सदा वैसा ही रहेगा, मनुष्य द्वारा सरंक्षित और अनछुई, आस्तिकों को उस अनदेखे संसार के बारे में जो ज्ञान देता है, वह उतना ही वास्तविक और सच्चा है जो किसी भी वैज्ञानिक प्रयास से सीखा जा सकता है (और वह भी शून्य त्रुटि के साथ!)।
"...हम इस पुस्तक में कुछ भी नहीं भूले हैं; तब अपने ईश्वर तक वे सब एकत्र किए जाएंगे।" (क़ुरआन 6:38)
हमारे मरने के बाद क्या होता है, इस प्रश्न के साथ, एक और प्रश्न है: हम यहाँ क्यों हैं? क्योंकि अगर वाकई मृत्यु के बाद जीवन का कोई ध्येय नहीं है (अर्थात केवल यह जीवन जीते जाना), तो फिर यह प्रश्न कि मृत्यु के बाद क्या होता है, केवल किताबी बन जाता है, बेकार न कहें तो। पहले हमें यह स्वीकार करना होगा कि हमारी बुद्धिमत्तापूर्ण संरचना, हमारे सृजन के पीछे एक बुद्धिमत्ता और एक रचनाकार का होना आवश्यक है, अर्थात एक निर्माता है जो हमारा कार्यों का मूल्यांकन करता है, तभी इस पृथ्वी पर जीवन का कोई गहरा अर्थ समझ आएगा।
"क्या तुमने समझ रखा है कि हमने तुम्हें व्यर्थ पैदा किया है और तुम हमारी ओर फिर नहीं लाये जाओगे? तो सर्वोच्च है ईश्वर वास्तविक अधिपति, नहीं है कोई सच्चा पूज्य, परन्तु वही महिमावान अर्श (सिंहासन) का स्वामी। " (क़ुरआन 23:115-116)
अगर ऐसा नहीं है तो, एक जागरूक व्यक्ति यह निष्कर्ष निकालने पर विवश हो जाएगा कि पृथ्वी पर जो जीवन है वह अन्याय, क्रूरता और शोषण से भरा है; कि जंगल का कानून, सबसे सक्षम ही जीवित रहेगा का नियम ही सर्वोपरि है; कि अगर हम इस जीवन में प्रसन्न नहीं रहते हैं, चाहे वह भौतिक सुविधाओं, शारीरिक प्रेम, या दूसरी खुशियों के अनुभवों के अभाव के कारण हो, तो जीवन जीने योग्य नहीं है। असल में, यही कारण है कि अगर कोई व्यक्ति इस सांसारिक जीवन से निराश हो जाता है, क्योंकि उसे परलोक जीवन में विश्वास बिल्कुल नहीं, थोड़ा, या आधा अधूरा विश्वास है, तो वह आत्महत्या भी कर सकता है। आखिर, उन दुखी, बिना प्यार के, अनचाहे; निराश, (बेइंतिहा) अवसाद में डूबे और मायूस लोगों को खोने के लिये होगा भी क्या?![3]
"अपने पालनहार की दया से निराश, केवल कुपथ लोग ही हुआ करते हैं।" (क़ुरआन 15:56)
तो क्या हम यह स्वीकार कर सकते हैं कि मृत्यु शरीर के अंत तक ही सीमित है, या जीवन केवल एक अंधे, स्वार्थ से भरे विकास का परिणाम है? निश्चय ही, मृत्यु से आगे भी कुछ है, और जीवन भी इसके अलावा कुछ और भी है।
[1] रात में स्वेच्छा से की गई औपचारिक प्रार्थना (नमाज़), रोजाना की पांचों प्रार्थनाओं में अंतिम (ईशा) के बाद और पहली (फ़जर) से पहले। इस प्रार्थना का सबसे अच्छा समय रात का अंतिम तीसरा पहर होता है।
[2] यद्यपि हृदय को कृत्रिम तरीके से धड़कने दिया जा सकता है, और रक्त को कृत्रिम तरीके से पंप किया जा सकता है, अगर मस्तिष्क मृत हो, और पूरा शरीर भी ऐसा ही हो।
[3] संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट ' वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे’, "युद्ध में और हत्याओं से होने वाली कुल मौतों की तुलना में कहीं अधिक लोग आत्महत्या करते हैं...लगभग 2 से 6 करोड़ लोग हर वर्ष आत्महत्या करते हैं, लेकिन उनमें से करीब 1 करोड़ सफल हो पाते हैं।" (रेऊटर्स, सितंबर 8, 2006)
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