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ईश्वर ने स्वर्गदूतों को प्रकाश से बनाया है। वे अपने लिए निर्धारित कर्तव्यों को बिना झिझक के पूरा करते हैं। मुसलमानों को स्वर्गदूतों के बारे मे क़ुरआन और पैगंबर मुहम्मद की प्रामाणिक परंपराओं से पता चलता है। हमने पहले भाग में बताया कि स्वर्गदूत पंखों वाले सुंदर प्राणी हैं, जो विभिन्न आकार के होते हैं और ईश्वर की अनुमति से अपना रूप बदलने में सक्षम होते हैं। स्वर्गदूतों के नाम हैं और कर्तव्य हैं जिन्हें उन्हें निभाना होता है।
मुसलमानों और गैर-मुसलमानों के लिए सबसे अधिक परिचित नाम जिब्रईल है। स्वर्गदूत जिब्रईल को यहूदी और ईसाई दोनों परंपराओं में एक महादूत और ईश्वर का दूत बताया गया है, और तीनों एकेश्वरवादी धर्मों में उनका [1] पद महान है।
"वास्तव में ये (क़ुरआन) एक सम्माननीय स्वर्गदूत द्वारा ईश्वर की ओर से पैगंबर मुहम्मद तक लाया हुआ कथन है। शक्तिशाली है, अर्श (सिंहासन) के मालिक के पास उच्च पद वाला है। जिसकी बात स्वर्गदूत मानते हैं और बड़ा भरोसेमंद है।" (क़ुरआन 81:19-21)
ईश्वर के शब्द (क़ुरआन) को पैगंबर मुहम्मद तक जिब्रईल लेकर आये थे।
"... जिब्रईल ने ईश्वर की अनुमति से इस संदेश (क़ुरआन) को आपके दिल पर उतारा है, जो इससे पूर्व की सभी पुस्तकों का प्रमाण है तथा विश्वासियों के लिए मार्गदर्शन और शुभ समाचार है।" (क़ुरआन 2:97)
स्वर्गदूत मिकाइल पर बारिश की जिम्मेदारी है और इसराफील वो स्वर्गदूत हैं जो क़यामत के दिन तुरही फूकेंगे। ये तीनों अपने कर्तव्यों के महान महत्व के कारण स्वर्गदूतों में सबसे महान हैं। उनके प्रत्येक कर्तव्य जीवन के एक पहलू से संबंधित है। स्वर्गदूत जिब्रईल क़ुरआन को ईश्वर से पैगंबर मुहम्मद तक लाये, और क़ुरआन दिल और आत्मा का पोषण करता है। स्वर्गदूत मिकाइल पर बारिश की जिम्मेदारी है, ये बारिश पृथ्वी का पोषण करती है और इस प्रकार हमारे भौतिक शरीर का भी। स्वर्गदूत इसराफील पर तुरही फूंकने की जिम्मेदारी है और यह तुरही स्वर्ग या नरक में हमेशा के जीवन की शुरुआत का संकेत देती है।
जब पैगंबर मुहम्मद रात में प्रार्थना करने के लिए उठते तो वो अपनी प्रार्थना की शुरुआत इन शब्दों से करते, "हे ईश्वर; जिब्रईल, मिकाइल और इसराफील के स्वामी; आकाश और पृथ्वी के निर्माता, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष को जानने वाले। आप उन मामलों के न्यायाधीश हैं जिनमें आपके दास भिन्न हैं। अपनी अनुमति से सत्य के विवादित मामलों में मेरा मार्गदर्शन करें, क्योंकि आप जिसे चाहते हैं उसे सीधे मार्ग पर ले जाते हैं।”[2]
हम कई अन्य स्वर्गदूतों के नाम भी जानते हैं। स्वर्गदूत मलिक नरक के द्वारपाल हैं। "वे [नरक में लोग] रोएंगे: 'हे मलिक! क्या तेरा ईश्वर हमारा अंत करेगा! ...।" (क़ुरआन 43:77) मुनकर और नकीर वे स्वर्गदूत हैं जो लोगों से उनकी क़ब्रों में सवाल करेंगे। हम इन नामों को जानते हैं और समझते हैं कि कब्र में स्वर्गदूत हमसे सवाल करेंगे क्योंकि ये पैगंबर मुहम्मद की परंपराओं में वर्णित है।
“जब मृतक को दफनाया जायेगा, तो उसके पास दो नीले-काले स्वर्गदूत आएंगे, जिनमें से एक का नाम मुनकर होगा और दूसरे का नकीर। वे पूछेंगे, 'तुम इस आदमी के बारे में क्या कहते थे?' और वो कहेगा कि: 'वह दास और ईश्वर का दूत है: मैं गवाही देता हूं कि ईश्वर के सिवा कोई देवता नही है और मुहम्मद उनके दास और दूत हैं। वे कहेंगे, 'हम पहले से जानते थे कि तुम यह कहते थे।' तब उसकी कब्र उसके लिए सत्तर हाथ चौड़ी और लंबी की जाएगी, और प्रकाशित की जाएगी। तब वे उससे कहेंगे, 'सो जाओ।' वह कहेगा, 'मेरे परिवार के पास वापस जाओ और उन्हें बताओ।' वे उससे कहेंगे, 'एक दूल्हे की तरह सो जाओ और तुम्हे सबसे अधिक प्रेम करने वाले के सिवा कोई तब तक नहीं उठाएगा' जब तक कि ईश्वर तुम्हे न उठाए। ..." [3]
क़ुरआन में हमें हारूत और मारूत नाम के दो स्वर्गदूतों की कहानी मिलती है, जिन्हें लोगों को जादू सिखाने के लिए बाबिल भेजा गया था। इस्लाम में जादू का इस्तेमाल करना मना है लेकिन इन स्वर्गदूतों को लोगों की परीक्षा के लिए भेजा गया था। जादू दिखाने या सिखाने से पहले हारूत और मारूत ने बाबिल के निवासियों को स्पष्ट रूप से चेतावनी दी थी कि उन्हें परीक्षा लेने के लिए भेजा गया है, और जादू सीखने वालो का परलोक में कोई हिस्सा नहीं होगा, यानी वे नरक में जाएंगे। (क़ुरआन 2:102)
यद्यपि कभी-कभी यह माना जाता है कि मृत्यु के दूत का नाम इज़राइल है, क़ुरआन या पैगंबर मुहम्मद की प्रामाणिक परंपराओं में ऐसा कुछ भी नहीं है जो इसे साबित करता हो। हम मृत्यु के दूत का नाम नहीं जानते, लेकिन हम उनके कर्तव्य को जानते हैं और जानते हैं कि उनके सहायक हैं।
"आप कह दें कि तुम्हारे प्राण निकाल लेगा मौत का दूत, जो तुमपर नियुक्त किया गया है, फिर तुम्हे तुम्हारे पालनहार के पास ले जाया जायेगा।” (क़ुरआन 32:11)
"जब तुम्हारी मौत का समय आता है, तो हमारे स्वर्गदूत (अर्थात मृत्यु के दूत और उसके सहायक) तुम्हारे प्राण ले लेते हैं और वह तनिक भी आलस्य नहीं करते। और फिर वे अपने स्वामी, न्यायी ईश्वर के पास वापस चले आते हैं।" (क़ुरआन 6:61-62)
स्वर्गदूतों का एक समूह है जो पूरी दुनिया मे घूमता है और ईश्वर को याद करने वाले लोगों को खोजता है। पैगंबर मुहम्मद की परंपराओं से हमें पता चलता है कि, "ईश्वर के पास स्वर्गदूत हैं जो उसे याद करने वाले लोगों की तलाश मे घूमते हैं। जब वे लोगों को ईश्वर को याद करते हुए पाते हैं, तो वे एक दूसरे को पुकारते हैं, "आओ तुम जिसकी तलाश में आये हो!" और वे उन्हें अपने पंखों से ढांपते हुए निचले आकाश तक जाते हैं। तब उनका ईश्वर पूछता है जबकि वह उनसे बेहतर जानने वाला है, "मेरे दास क्या कह रहे हैं?" वे कहते हैं: “वे तेरी महिमा, बड़ाई, प्रशंसा और गुणगान कर रहे हैं।” वह पूछता है, "क्या उन्होंने मुझे देखा है?" वे कहते हैं, "नहीं, आपकी कसम, उन्होंने आपको नहीं देखा है।" वह पूछता है, "और अगर उन्होंने मुझे देखा होता तो क्या करते?" वे कहते हैं, "वे आपकी प्रशंसा और पूजा में और भी अधिक उत्साही और समर्पित होते।" वह पूछता है, "वे मुझसे क्या मांग रहे हैं?" वे कहते हैं, "वे आपसे स्वर्ग मांग रहे हैं।" वह पूछता है, "और क्या उन्होंने इसे देखा है?" वे कहते हैं, "नहीं, आपकी कसम हे ईश्वर उन्होंने इसे नहीं देखा है।" वह पूछता है, "और अगर उन्होंने इसे देखा होता तो क्या करते?" वे कहते हैं: “वे इसके लिए और भी अधिक लालायित (उत्सुक) होते तथा और अधिक यत्न से तुझ से बिनती करते।” वह पूछता है, "और वे किससे मेरी सुरक्षा चाहते हैं?" वे कहते हैं, "नरक की आग से।" वह पूछता है, "क्या उन्होंने इसे देखा है?" वे कहते हैं, "नहीं, आपकी कसम उन्होंने इसे नहीं देखा है।" वह पूछता है, "और अगर उन्होंने इसे देखा होता तो क्या करते?" वे कहते हैं: “वे उससे और अधिक डरते और उससे बचने के लिए व्याकुल होते।” ईश्वर कहता है: "तुम गवाह हो कि मैंने उन्हें क्षमा कर दिया है।" उनमें से एक स्वर्गदूत कहता है: “वास्तव मे कुछ लोग उनमें से नही हैं; वह बस किसी और कारण से सभा मे आये हैं।” अल्लाह कहता है, "वे सब शामिल थे, और उनमें से सभी को क्षमा किया जाएगा।"[4]
मुसलमानों का मानना है कि स्वर्गदूतों को मनुष्यों से संबंधित विशेष कर्तव्य निभाने होते हैं। स्वर्गदूत मनुष्यों की रक्षा करते हैं, और दो स्वर्गदूत अच्छे और बुरे कामों को लिखते हैं। वे प्रार्थनाओं के साक्षी होते हैं और एक पर तो गर्भ में भ्रूण की जिम्मेदारी होती है। भाग तीन में हम और अधिक विस्तार में जाएंगे और स्वर्गदूतों और मनुष्यों के बीच के संबंधों को बताएंगे।
[1] स्वर्गदूत के लिए 'उसका' शब्द का प्रयोग व्याकरणिक सहजता के लिए है और किसी भी तरह से यह नहीं दर्शाता कि स्वर्गदूत पुरुष हैं।
[2] सहीह मुस्लिम
[3] सुनन अत थिरमिधि। अबू इसा ने कहा: यह एक ग़रीब हसन हदीस है। इसे सहीह अल-जामी में हसन बताया गया है', नंबर 724।
[4] सहीह अल-बुखारी
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