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मुसलमान स्वर्गदूतों के अस्तित्व में विश्वास करते हैं। इस्लाम में आस्था के छह स्तंभ हैं; एक और एकमात्र ईश्वर में विश्वास और जो कुछ भी मौजूद है उसका निर्माता और पालनकर्ता वही है, उनके स्वर्गदूतों, उनकी पुस्तकों, उनके दूतों, अंतिम दिन और दिव्य भाग्य में विश्वास।
स्वर्गदूत ऐसी दुनिया का हिस्सा हैं जिसे हम देख नही सकते, लेकिन मुसलमान उनके अस्तित्व में निश्चित रूप से विश्वास करते हैं क्योंकि ईश्वर और उनके दूत मुहम्मद ने हमें उनके बारे में बताया है। ईश्वर ने स्वर्गदूतों को ईश्वर की पूजा करने और आज्ञा मानने के लिए पैदा किया है।
"ये (स्वर्गदूत) अवज्ञा नहीं करते ईश्वर के आदेश की और वही करते हैं जिसका उन्हें आदेश दिया जाये।" (क़ुरआन 66:6)
ईश्वर ने स्वर्गदूतों को प्रकाश से बनाया। पैगंबर मुहम्मद (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) ने कहा, "स्वर्गदूतों को प्रकाश से बनाया गया है,"[1] हमें इस बात का कोई ज्ञान नहीं है कि स्वर्गदूतों को कब पैदा किया गया था, हालांकि, हम जानते हैं कि उनको मानवजाति से पहले पैदा किया गया था। क़ुरआन बताता है कि ईश्वर ने स्वर्गदूतों को पृथ्वी पर एक ख़लीफ़ा बनाने के अपने इरादे के बारे में बताया। (क़ुरआन 2:30)
मुसलमान जानते हैं कि स्वर्गदूत सुंदर रचना है। क़ुरआन के छंद 53:6 मे ईश्वर ने स्वर्गदूतों का वर्णन धू मिर्राह के रूप मे किया है, यह एक अरबी शब्द है जिसे प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान[2] 'दिखने में लंबा और सुंदर' के रूप मे परिभाषित करते हैं। (क़ुरआन 12:31) भी पैगंबर युसूफ को एक महान दूत की तरह सुंदर बताता है।
स्वर्गदूतों के पंख होते हैं, और वे बहुत बड़े आकर के हैं। क़ुरआन या पैगंबर मुहम्मद की परंपराओं में ऐसा कुछ भी नही है जो ये बताता हो कि स्वर्गदूत पंख वाले बच्चे हैं या स्त्री या पुरुष हैं।[3] हालांकि, हम जानते हैं कि स्वर्गदूत पंखों वाले हैं और कुछ बहुत बड़े हैं। पैगंबर मुहम्मद की परंपराओं से हमें पता चलता है कि स्वर्गदूत जिब्रईल का आकार इतना बड़ा था कि उन्होंने "स्वर्ग और पृथ्वी के बीच की जगह" को भर दिया था [4] और उनके छह सौ पंख थे [5].
"...किसने स्वर्गदूतों को बनाया, पंखों वाले दूत - दो-दो, या तीन-तीन, या चार-चार परों वाले..." (क़ुरआन 35:1)
स्वर्गदूतों के पद में भी अंतर हैं। वे स्वर्गदूत जो पहली लड़ाई यानि बद्र की लड़ाई में उपस्थित थे, उन्हें "सर्वश्रेष्ठ" स्वर्गदूत माना जाता है।
"देवदूत जिब्रईल पैगंबर के पास आये और पूछा, 'आप उन लोगों को कैसे आंकते हैं जो बद्र में मौजूद थे?' मुहम्मद (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) ने जवाब दिया, 'वे मुसलमानों में सबसे अच्छे हैं, ' या कुछ इसी समान। तब जिब्रईल ने कहा: 'ऐसा ही उन स्वर्गदूतों के साथ है जो बद्र में उपस्थित थे।'"[6]
मुसलमानों का मानना है कि स्वर्गदूतों को खाने-पीने की आवशयकता नहीं होती। उनका अन्न ईश्वर की महिमा करना है और ये गुणगान करना है कि ईश्वर के सिवा कोई और पूजायोग्य नहीं है। (क़ुरआन 21:20)।
"... तुम्हारे पालनहार के पास वो हैं जो रात और दिन उसकी पवित्रता का वर्णन करते रहते हैं, और वे थकते नहीं हैं।" (क़ुरआन 41:38)
क़ुरआन में पैगंबर इब्राहिम की कहानी यह भी बताती है कि स्वर्गदूतों को खाने की कोई जरूरत नहीं होती। जब स्वर्गदूत आदमी के रूप में पैगंबर इब्राहीम को एक पुत्र के जन्म की शुभ सूचना देने गए, तो इब्राहिम ने उनके सम्मान में खाने के लिए एक बछड़ा भेंट किया। उन्होंने खाने से इनकार कर दिया, और इब्राहीम डर गए, तब उन्होंने बताया की वे स्वर्गदूत हैं। (क़ुरआन 51:26-28)
स्वर्गदूतों (फ़रिश्ते) की संख्या बहुत है, लेकिन इसका ज्ञान सिर्फ ईश्वर को ही है। स्वर्ग में अपने स्वर्गारोहण के दौरान, पैगंबर मुहम्मद ने पूजा के एक घर का दौरा किया, जिसे 'बार-बार आने वाला घर' कहा जाता है, इसे अरबी मे अल बैतुलमामूर कहते हैं जो स्वर्ग में काबा [7] के बराबर है।
फिर मुझे 'बार-बार आने वाले घर' में ले जाया गया: यहां हर दिन सत्तर हजार स्वर्गदूत आते हैं और चले जाते हैं, वो फिर कभी यहां वापस नही आते हैं, उनके बाद दूसरा समूह आता है।"[8]
पैगंबर मुहम्मद ने हमें यह भी बताया कि क़यामत के दिन लोगों को नरक दिखाया जाएगा। उन्होंने कहा, "उस दिन सत्तर हजार रस्सियों से बांध के नरक को निकाला जाएगा, और प्रत्येक रस्सी को सत्तर हजार स्वर्गदूत खींचेंगे।"[9]
स्वर्गदूतों में बहुत शक्तियां होती हैं। उनमें विभिन्न रूप धारण करने की क्षमता होती है। वे पैगंबर इब्राहिम और पैगंबर लूत दोनों के सामने आदमी के रूप में आए थे। स्वर्गदूत जिब्रईल एक आदमी के रूप में यीशु की माँ मरियम के सामने प्रकट हुए थे, (क़ुरआन 19:17) और वह पैगंबर मुहम्मद के सामने एक ऐसे व्यक्ति के रूप में आये जिसके कपड़े अत्यधिक सफेद थे, और जिसके बाल अत्यधिक काले थे। [10]
स्वर्गदूत ताकतवर होते हैं। चार स्वर्गदूत ईश्वर के सिंहासन को ढोते हैं, और न्याय के दिन उनकी संख्या बढ़ाकर आठ कर दी जाएगी। पैगंबर मुहम्मद की परंपराओं में एक वर्णन है जो ईश्वर के सिंहासन को ले जाने वाले स्वर्गदूतों में से एक का वर्णन करता है। "उसके कानों और उसके कंधों के बीच की दूरी सात सौ साल की यात्रा के बराबर है।"[11]
स्वर्गदूत विभिन्न कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को निभाते हैं। कुछ पर ब्रह्मांड के मामलों की जिम्मेदारी है। कुछ पर समुद्र, या पहाड़ों या हवा की जिम्मेदारी है। मक्का के पास के एक शहर ताइफ़ का दौरा करने के बाद, एक बार पैगंबर मुहम्मद पर पथराव किया गया। स्वर्गदूत जिब्रईल और पहाड़ों के देवदूत ने उससे भेंट की।
पहाड़ों के देवदूत ने पास के दो पहाड़ों को मिलाकर इन अड़ियल लोगों को नष्ट करने का प्रस्ताव दिया। पैगंबर मुहम्मद ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया क्योंकि उनका मानना था कि अगर इन्हें इस्लाम को देखने और समझने का मौका मिले तो वे इसे अपना लेंगे और ईश्वर से प्रेम करने लगेंगे।[12]
स्वर्गदूत बिना किसी झिझक के ईश्वर की आज्ञाओं का पालन करते हैं। प्रत्येक स्वर्गदूत का एक कर्तव्य या कार्य होता है। कुछ स्वर्गदूत मनुष्यों की रक्षा करते हैं और उनका साथ देते हैं, और अन्य दूत होते हैं। दूसरे भाग में हम इन कर्तव्यों की चर्चा करेंगे और कुछ स्वर्गदूतों के नाम बताएंगे जो ये कर्तव्य निभाते हैं।
[1] सहीह मुस्लिम।
[2] इब्न अब्बास और क़ुतादह।
[3] स्वर्गदूत के लिए 'उसका' शब्द का प्रयोग व्याकरणिक सहजता के लिए है और किसी भी तरह से यह नहीं दर्शाता कि स्वर्गदूत पुरुष हैं।
[4] सहीह मुस्लिम
[5] इमाम अहमद की मुसनद।
[6] सहीह अल-बुखारी
[7] सऊदी अरब के मक्का शहर में पवित्र मस्जिद के केंद्र में घन के आकार की इमारत।
[8] सहीह अल-बुखारी
[9] सहीह मुस्लिम
[10] इबिड
[11] सुनन अबू-दाऊद
[12] सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम
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