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पैगंबर (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) के जीवनकाल में सहीफाह के अलावा बहुत से ऐसे उदहारण है जो व्यावहारिक रूप से अन्य धर्मों के लिए इस्लाम की सहिष्णुता को दर्शाते हैं।
संविधान द्वारा सहमति दिए जाने पर, यहूदियों को अपने धर्म का पालन करने की पूर्ण स्वतंत्रता थी। पैगंबर के समय मदीना में यहूदियों का अपना सीखने का विभाग था, जिसका नाम बैत-उल-मिद्रास था, जहां वे तौरात पढ़ते थे, पूजा करते थे और खुद को शिक्षित करते थे।
पैगंबर ने अपने दूतों को कई पत्रों में जोर दिया कि धार्मिक संस्थानों को नुकसान नहीं पहुंचाया जाना चाहिए। सेंट कैथरीन के धार्मिक नेताओं को अपने दूत को संबोधित एक पत्र में जिन्होंने मुसलमानों से सुरक्षा की मांग की थी:
“यह मुहम्मद इब्न अब्दुल्ला का संदेश है, ईसाई धर्म अपनाने वालों के लिए एक अनुबंध के रूप में, निकट और दूर, हम उनके साथ हैं। वास्तव में मैं, एक सेवक और सहायक, और मेरे अनुयायी उनका बचाव करते हैं क्योंकि ईसाई मेरे नागरिक हैं; और ईश्वर की कसम! मैं ऐसी किसी भी बात का विरोध करता हूं जो उन्हें नाखुश करती है। उन पर कोई बाध्यता नहीं है। न तो उनके न्यायाधीशों को उनकी नौकरी से हटाया जाए और न ही उनके सन्यासिओ को उनके मठों से। कोई उनके धर्म के घर को नष्ट नहीं करेगा, उसे नुकसान नहीं पोहुंचायेगा या उसमें से कुछ भी मुसलमानों के घरों में नहीं ले जायेगा। यदि कोई इनमें से कुछ लेता है, तो वह ईश्वर के अनुबंध को तोड़ देगा और उसके पैगंबर की अवज्ञा करेगा। वास्तव में, वे मेरे सहयोगी हैं और उन सभी के खिलाफ मेरा सुरक्षित प्राधिकार है जिनसे वे घृणा करते हैं। उन्हें यात्रा करने के लिए या उन्हें लड़ने के लिए कोई बाध्य नहीं करेगा। मुसलमानों को उनके लिए लड़ना है। यदि एक ईसाई महिला की शादी किसी मुस्लिम से होती है, तो यह उसकी स्वीकृति के बिना नहीं होगी। उसे प्रार्थना करने के लिए अपने चर्च जाने से नहीं रोका जायेगा। उनके गिरजाघरों को संरक्षित घोषित किया गया है। उन्हें न तो उनकी मरम्मत करने से रोका जाना चाहिए और न ही उनकी वाचाओं की पवित्रता। किसी राष्ट्र (मुसलमानों) में से कोई भी अंतिम दिन (दुनिया के अंत) तक अनुबंध की अवज्ञा नहीं करेगा।”[1]
जैसा कि आप देख सकते हैं, इस घोषणापत्र में मानवाधिकारों के सभी महत्वपूर्ण पहलुओं को शामिल करते हुए कई खंड शामिल किये गए थे, जिसमें इस्लामी शासन के तहत रहने वाले अल्पसंख्यकों की सुरक्षा, पूजा और आंदोलन की स्वतंत्रता, अपने स्वयं के न्यायाधीशों को नियुक्त करने की स्वतंत्रता, अपनी संपत्ति रखने और उसके बनाए रखने की स्वतंत्रता, सैन्य सेवा से छूट और युद्ध में सुरक्षा का अधिकार, और उनके स्वामित्व और रखरखाव जैसे विषय शामिल थे।
एक अन्य अवसर पर, पैगंबर को अपनी मस्जिद में नज़रान के क्षेत्र से साठ ईसाइयों का एक प्रतिनिधिमंडल मिला, जो यमन का एक हिस्सा था। जब उनकी प्रार्थना का समय आया, तो उन्होंने पूर्व दिशा की ओर मुंह करके प्रार्थना की। पैगंबर ने आदेश दिया कि उन्हें उनके अवस्था में छोड़ दिया जाए और उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाया जाए।
पैगंबर के जीवन में ऐसे उदाहरण भी हैं जिनमें उन्होंने राजनीतिक क्षेत्र में अन्य धर्मों के लोगों के साथ भी सहयोग किया। उन्होंने एक गैर-मुस्लिम, अम्र-इब्न उमैय्याह-अद-दमरी को एक राजदूत के रूप में इथियोपिया के राजा नेगस के पास भेजने के लिए चुना।
ये अन्य धर्मों के लिए पैगंबर की सहिष्णुता के बस कुछ उदाहरण हैं। इस्लाम मानता है कि इस धरती पर धर्मों की बहुलता है, और व्यक्तियों को वह रास्ता चुनने का अधिकार देना चाहिए है जिसे वे सच मानते हैं। धर्म को किसी व्यक्ति पर उनकी मर्जी के विरुद्ध थोपा नहीं जाना चाहिए और न ही उसे कभी भी थोपा गया है, और पैगंबर के जीवन के ये उदाहरण क़ुरआन के छंद का एक प्रतीक हैं जो धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देता है और अन्य धर्मों के लोगों के साथ मुसलमानों की बातचीत के लिए दिशानिर्देश निर्धारित करता है। ईश्वर कहता है:
“...धर्म में कोई बाध्यता नहीं है...” (क़ुरआन 2:256)
[1]“मुस्लिम्स एंड नॉन-मुस्लिम्स, फेस-टू-फेस”, अहमद सक्र। फाउंडेशन फॉर इस्लामिक नॉलेज, लोम्बार्ड इलिनॉयस।
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