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इस्लाम और ईसाई धर्म के बीच समानताएं और अंतर (2 का भाग 1): एक समान लेकिन अलग

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विवरण: इस्लाम और ईसाई धर्म को दो अखंड धर्म माना जाता है। यह इस बात की व्याख्या है कि इस्लाम और ईसाई धर्म शास्त्रों, पैगंबरो और ट्रिनिटी के बारे में क्या मानते हैं।

  • द्वारा Aisha Stacey (© 2017 IslamReligion.com)
  • पर प्रकाशित 04 Nov 2021
  • अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
  • मुद्रित: 0
  • देखा गया: 4443 (दैनिक औसत: 8)
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Similarities-and-Differences-between-Islam-and-Christianity--1.jpgप्यू अनुसंधान केंद्र [1] के अनुसार इस्लाम वर्तमान में ईसाई धर्म के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है। यदि जनसांख्यिकीय रुझान ऐसे ही चलता रहा तो 21वीं सदी के अंत से पहले इस्लाम के ईसाई धर्म से आगे निकलने की उम्मीद है। दुनिया की स्थिति आज दो विशाल संस्थाओं को एक दूसरे के खिलाफ आमने-सामने होने की कल्पना करना आसान बनाती है लेकिन ऐसा नहीं है। इस्लाम और ईसाई धर्म में कई समानताएं हैं। वास्तव में, यह सोचना आसान है कि मतभेदों की तुलना में अधिक समानताएं हैं। 

इस्लाम और ईसाइयत दोनों ही अपने अनुयायियों को शालीन कपड़े पहनने और व्यवहार करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, और दोनों का मानना है कि परोपकारी होना और करुणा दिखाना मनुष्य में वांछनीय गुण हैं। वे दोनों प्रार्थना और ईश्वर के साथ संचार पर जोर देते हैं, दोनों लोगों को दयालु और उदार होने का आह्वान करते हैं, और दोनों सलाह देते हैं कि दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करो जैसा तुम अपने लिए चाहते हो। दोनों धर्म अपने अनुयायियों से सच्चे होने, बड़े पापों से दूर रहने और क्षमा माँगने को कहते हैं। और दोनों धर्म यीशु का सम्मान करते हैं और उनसे प्यार करते हैं और उम्मीद करते हैं कि वह अपने दिनों के अंत के आख्यानों के अनुसार पृथ्वी पर वापस आएंगे। 

दोनों धर्मों के सदस्य हमें विश्वास दिलाते हैं कि वे अलग-अलग हैं लेकिन उनका इतिहास ठीक उसी जगह से शुरू होता है, आदम और हव्वा के साथ बगीचे में से। यह पैगंबर इब्राहिम के जीवनकाल से है कि इनके रास्ते अलग-अलग होने लगते हैं, लेकिन अगर इनके शुरुआत पर जोर दिया जाये तो इस्लाम और ईसाई धर्म के साथ-साथ यहूदी धर्म को सामूहिक रूप से इब्राहीम धर्मों के रूप में जाना जाता है।

पैगंबर

क़ुरआन के अनुसार, इब्राहीम को ईश्वर के प्रिय सेवक के रूप में जाना जाता था; उनकी गहरी भक्ति के कारण, ईश्वर ने उनके कई वंशजों को उनके ही लोगों के लिए पैगंबर बनाया। पैगंबर इब्राइम को अपने बेटे की बलि देने की आज्ञा दिए जाने की कहानी ईसाई और इस्लाम दोनों में जानी जाती है। इस्लाम में वो बेटा इस्माईल [2] है और उनके वंश में ही पैगंबर मुहम्मद (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) आये जिन्होंने इस्लाम की स्थापना की। ईसाई धर्म के अनुसार, बलिदान कथा में इब्राहिम के पुत्र इसहाक [3] हैं। इसहाक के वंश मे याकूब, यूसुफ, मूसा, दाऊद, सुलैमान और यीशु सहित कई पैगंबर आते हैं।

इस्लाम के विश्वास के छह स्तंभों में से एक के लिए यह आवश्यक है कि एक मुसलमान सभी पैगंबरो पर विश्वास करे। एक को अस्वीकार करना उन सभी को अस्वीकार करने के बराबर है। मुसलमानों का मानना ​​है कि ईश्वर ने कई पैगंबर भेजे, हर देश में एक। हम कुछ के नाम जानते हैं और कुछ के नहीं। पैगंबर मुहम्मद ने कहा है कि सभी पैगंबर एक दूसरे के भाई हैं।[4] इस प्रकार आप पाएंगे कि बाइबिल में वर्णित सभी पैगंबर इस्लाम द्वारा सम्मानित और स्वीकार किए जाते हैं। क़ुरआन में उनमें से कई का उल्लेख किया गया, जिसमे उनके नाम के साथ उनकी जीवन की विस्तृत कहानियां है। इस्लाम सभी पैगंबरो के साथ सम्मान का व्यवहार करता है और बाइबिल की उन कहानियों को खारिज करता है, जिसमे पैगंबरो का उपहास किया गया है और उनकी छवि को ख़राब किया गया हैं।   

ईसाई धर्म स्वीकार करता है कि मुहम्मद अस्तित्व में थे, लेकिन वह उन्हें पैगंबर नहीं मानते हैं। पूरे ईसाई इतिहास में उन्हें झूठा और पागल कहा गया है; कुछ लोगों ने तो उन्हें शैतान से भी जोड़ दिया। दूसरी ओर, इस्लाम पैगंबर मुहम्मद को ईश्वर की ओर से मानवजाति पर दया करने वाला मानता है। जहां तक यीशु का सवाल है, ईसाई और मुसलमानों की कई ऐसी ही मान्यताएं हैं। दोनों का मानना है कि जब यीशु की माँ ने उन्हें जन्म दिया तो उनकी मां मरयम कुंवारी थी। दोनों धर्मों का मानना है कि यीशु ही इस्राइल के लोगों के लिए भेजा गया मसीहा था और दोनों का मानना है कि उसने चमत्कार किए। इस्लाम हालांकि कहता है कि इस तरह के चमत्कार ईश्वर की इच्छा और अनुमति से किए गए थे। इस्लाम पैगंबर यीशु को ईश्वर का दास और दूत कहता है और उन्हें पैगंबर और दूतों की लंबी कतार में एक व्यक्ति के रूप में उनका बहुत सम्मान करता है, जो सभी लोगों को एक ईश्वर की पूजा करने के लिए कहते थे। इस्लाम इस धारणा को पूरी तरह से खारिज करता है कि यीशु ईश्वर है या ट्रिनिटी का हिस्सा है।

ट्रिनिटी

ट्रिनिटी ईसाई धर्म का मूल विश्वास है, जो कहता है कि एक ईश्वर है जिसकी तीन अभिव्यक्तियाँ हैं, पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा। ईश्वर का एक पुत्र है, जिसे यीशु कहा जाता है, जो स्वयं ईश्वर भी है और इनके माध्यम से एक व्यक्ति पिता (ईश्वर) तक पहुंच सकता है। पवित्र आत्मा जो ईश्वर भी है, एक दिव्य शक्ति है, वह रहस्यमय शक्ति जिसपर विश्वास किया जाता है। ट्रिनिटी को कभी-कभी कबूतर के पंख या आग की जीभ के रूप में चित्रित किया जाता है। यह एक विवादास्पद सिद्धांत है जो बाइबिल की शिक्षा और प्रारंभिक ईसाई चर्च में सामंजस्य स्थापित करने के प्रयास के रूप में सामने आया। यीशु की प्रकृति पर विवाद के कारण रोमन सम्राट कॉन्सटेंटाइन ने सीई 325 में निकिया की परिषद बुलाई। और यह ट्रिनिटी का ही सिद्धांत था जो पूर्वी और पश्चिमी चर्चों के बीच विभाजन का कारण बना। आज भी बहुत से लोग उस सिद्धांत को समझने या समझाने में असमर्थ हैं, जिसे वे मानते हैं।

खुद को एकेश्वरवादी मानना इस्लाम और ईसाई धर्म दोनों के लिए सामान्य बात है। एकेश्वरवाद ग्रीक शब्द 'मोनोस' से बना है जिसका अर्थ केवल और 'थियोस' का अर्थ ईश्वर है। इसका उपयोग एक सर्वोच्च व्यक्ति को परिभाषित करने के लिए किया जाता है जो सर्वशक्तिमान है, ब्रह्मांड का निर्माता और पालनकर्ता है, जो जीवन और मृत्यु का मालिक है। हालांकि मुसलमानों का मानना ​​है कि वे ट्रिनिटी जैसी अवधारणाओं के बिना शुद्ध एकेश्वरवाद को मानते हैं। इस्लाम की मूल मान्यता यह है कि ईश्वर के सिवा कोई भी पूजा के योग्य नहीं; यह एक सरल अवधारणा है जिसमें सिर्फ ईश्वर की ही पूजा की जाती है।

शास्त्र

मुसलमान क़ुरआन और पैगंबर मुहम्मद की प्रामाणिक परंपराओं से ईश्वर की प्रकृति के बारे में अपनी समझ प्राप्त करते हैं। क़ुरआन बताता है कि ईसाई धर्म की सभी दिव्य पुस्तकें, पुराना नियम, जिसमें भजन संहिता की पुस्तक और यीशु के इंजील वाले नए नियम शामिल हैं, ईश्वर द्वारा प्रकट किए गए थे। इसलिए, मुसलमान बाइबिल में विश्वास करते हैं, जब यह क़ुरआन के समान होता है। मुसलमान केवल वही मानते हैं जिसकी क़ुरआन और पैगंबर मुहम्मद की परंपराओं में पुष्टि की गई है क्योंकि इस्लाम कहता है कि पुराने और नए दोनों नियमों के मूल पाठ को खो दिया गया है, बदल दिया गया है, विकृत कर दिया गया है या भुला दिया गया है।

मुसलमानों का मानना ​​है कि क़ुरआन अंतिम प्रकट पाठ है और ईश्वर के सटीक शब्दों को स्वर्गदूत जिब्रईल के माध्यम से पैगंबर मुहम्मद तक पहुंचाया गया। ईसाई धर्म हालांकि यह मानता है कि बाइबिल ईश्वर से प्रेरित थी और कई अलग-अलग लेखकों द्वारा लिखी गई थी।   



फुटनोट:

[1] http://www.pewresearch.org/fact-tank/2017/02/27/muslims-and-islam-key-findings-in-the-u-s-and-around-the-world/

[2] क़ुरआन 37:101 - 103

[3] उत्पत्ति 22

[4] सहीह अल बुखारी

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