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इस वेबसाइट पर कई लेख मौजूद हैं जो बताते हैं कि इस्लाम धर्म को अपनाना कितना आसान है। ऐसे लेख और वीडियो भी मौजूद हैं जो उन बाधाओं के ऊपर बात करती है जो किसी व्यक्ति को इस्लाम क़बूल करने से रोक सकती हैं। हक़ीकत में इस्लाम लाने वाले लोग अपनी कहानियां साझा करते हैं, और हम उनकी प्रसन्नता और उत्साह को आपके साथ साझा कर सकते हैं। साथ ही एक ऐसा लेख भी है जो बताता है कि मुसलमान कैसे बनें। इस्लाम धर्म को अपनाने के विषय पर कई अलग-अलग दृष्टिकोण से चर्चा की गई है और लेखों की यह श्रृंखला इस्लाम धर्म को अपनाने से होने वाले लाभों पर चर्चा करती है।
इस्लाम धर्म को अपनाने से कई लाभ प्राप्त होते हैं, उनमें सबसे स्पष्ट लाभ शांति और कल्याण की भावना होती है जो किसी भी व्यक्ति के अंदर पैदा होती है और जो यह महसूस कराती है कि उन्होंने जीवन के सबसे बुनियादी सत्यों में से एक की खोज कर ली है। सबसे पवित्र और सरल तरीके से ईश्वर के साथ जुड़ना स्वतंत्र महसूस कराता है तथा उत्साहजनक होता है, और इसके फलस्वरूप आपके अंदर इत्मीनान की भावना पैदा होती है। हालांकि इस्लाम धर्म को अपनाने का एकमात्र लाभ यही नहीं है, ऐसे अन्य लाभ भी हैं जो एक व्यक्ति को अनुभव होते हैं और हम यहां एक-एक करके उनकी चर्चा करेंगे।
इस्लाम आपके मन को अंधविश्वासों और अनिश्चितताओं से मुक्त करता है; यह आत्मा को पाप और भ्रष्टाचार से मुक्त करता है और अंतरात्मा को उत्पीड़न और भय से मुक्त करता है। ईश्वर की इच्छा के आगे समर्पण करना व्यक्ति की स्वतंत्रता को कम नहीं करता है, इसके विपरीत यह मन को अंधविश्वासों से मुक्त करके और उसे अधिक से अधिक सत्य और ज्ञान से भरकर बहुत उच्च स्तर की स्वतंत्रता प्रदान करता है।
एक बार जब कोई व्यक्ति इस्लाम स्वीकार कर लेता है तो वे फैशन उद्योग या उपभोक्तावाद के गुलाम नहीं रह जाते हैं, और वे लोगों को अपने वश में करने के लिए बनाई गई एक मौद्रिक प्रणाली की गुलामी से मुक्त हो जाते हैं। छोटे मगर सामान्य तौर पर महत्वपूर्ण पैमाने पर, इस्लाम किसी व्यक्ति को उन अंधविश्वासों से मुक्त करता है जो उन लोगों के जीवन पर शासन करते हैं और जिसका ईश्वर के प्रति समर्पित होने से कोई लेना-देना नहीं होता है। एक आस्था रखने वाला इंसान जानता है कि अच्छी और बुरी किस्मत जैसी कोई चीज़ नहीं होती है। हमारे जीवन में अच्छे और बुरे दोनों पहलू ईश्वर की इच्छा से होते हैं और जैसा कि पैगंबर मुहम्मद, उन पर ईश्वर की विशेष कृपा, दया दृष्टि और अनुकम्पा हो, कहते हैं कि ईश्वर पर आस्था रखने वाले किसी व्यक्ति के जीवन में आने वाले सभी परिस्थिति अच्छे होते हैं, "अगर उसके जीवन में खुशियां आती हैं तो वह आभारी होता है, और यह उसके लिए अच्छा है: और यदि उस पर कष्ट आता है, तो वह दृढ़ बनता है, और यह भी उसके लिए अच्छा है"।[1]
मानव निर्मित प्रथाओं और जीवन शैली से मुक्त होने के बाद वह सही तरीके से ईश्वर की इबादत करने के लिए स्वतंत्र होता है। एक आस्था रखने वाला व्यक्ति ईश्वर पर अपना भरोसा और आशा रखने में सक्षम होता है और ईमानदारी से उसकी दया की तलाश करता है।
इस्लाम क़बूल कर लेने के बाद कोई व्यक्ति जीवन जीने के लिए बताए गए मार्गदर्शन - क़ुरआन, और पैगंबर मुहम्मद की प्रामाणिक शिक्षाओं और परंपराओं का पालन करके ईश्वर के प्रेम को हासिल कर सकता है। जब ईश्वर ने इस संसार निर्माण किया, तो उन्होंने इसे अस्थिरता और असुरक्षा के बीच यूं ही नहीं छोड़ दिया। बल्कि उन्होंने एक रस्सी भेजी, मज़बूत और स्थिर, और इस रस्सी को कसकर पकड़कर एक तुच्छ मनुष्य महानता और शाश्वत शांति प्राप्त कर सकता है। क़ुरआन के माध्यम से, ईश्वर ने अपनी इच्छाओं को पूरी तरह से स्पष्ट कर दिया है, हालांकि मनुष्य स्वतंत्र रूप से अपनी इच्छा का मालिक है और वह अपनी इच्छा के अनुसार ईश्वर को ख़ुश या नाराज़ करने के लिए स्वतंत्र है।
ऐ मुहम्मद (लोगों से कह दो): "यदि तुम वास्तव में ईश्वर से प्रेम करते हो तो मेरा अनुसरण करो (यानि इस्लाम के बताए एक ईश्वर की आराधना करो, क़ुरआन और सुन्नत का पालन करो), ईश्वर तुमसे प्रेम करेगा और तुम्हारे पापों को क्षमा कर देगा। और ईश्वर बड़ा क्षमाशील, दयावान है।" (क़ुरआन 3:31)
और इस आज्ञापालन (इस्लाम) के सिवा जो व्यक्ति कोई और तरीका अपनाना चाहे, तो उसका वह तरीका कभी भी स्वीकार नहीं किया जाएगा और परलोक में वह असफल रहेगा। (क़ुरआन 3:85)
दीन के मामले में कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं है। सही बात गलत विचारों से अलग छांटकर रख दी गई है। अब जिस किसी ने तागूत [2] का इनकार करके ईश्वर को माना, उसने एक मज़बूत सहारा थाम लिया, जो कभी टूटने वाला नहीं, और ईश्वर (जिसका सहारा उसने लिया है) सबकुछ सुननेवाला और जाननेवाला है। (क़ुरआन 2:256)
स्वर्ग, जैसा कि क़ुरआन की कई आयतों में वर्णित है, शाश्वत आनंद प्राप्त करने का एक स्थान है और इसी का आस्था रखने वालों से वादा किया जाता है। ईश्वर ईमान वालों को स्वर्ग का इनाम देकर अपनी दया प्रकट करता है। जो कोई ईश्वर को मानने से इनकार करता है या उसके साथ या उसकी जगह पर किसी और की आराधना करता है, या दावा करता है कि ईश्वर का कोई बेटा, बेटी या कोई साथी है, तो वह परलोक में नरक की आग में बर्बाद होगा। इस्लाम क़बूल करके कोई व्यक्ति क़ब्र की पीड़ा, क़यामत के दिन की सज़ा और अनंत नरक की आग में झोंके जाने से बच सकता है।
"और जो लोग ईमान लाये और उन्होंने भले कर्म किये, उनको हम स्वर्ग के ऊँचे महलों में स्थान देंगे जिनके नीचे नहरें बहती होंगी, वह उनमें सदैव रहेंगे।" (क़ुरआन 29:58)
इस्लाम अपने आप में आंतरिक शांति और सुकून का रास्ता प्रदान करता है। इस्लाम, मुस्लिम और सलाम (शांति) शब्द सभी मूल शब्द "सा-ला-मा" से निकले हैं जो शांति, उद्धार और सुरक्षा को दर्शाता है। जब कोई ईश्वर की इच्छा के प्रति समर्पण करता है तो उसे सुरक्षा और शांति की स्वाभाविक भावना का अनुभव होता है।
शाश्वत सुख केवल स्वर्ग में ही मुमकिन है। वहां हम परम शांति, सुकून और सुरक्षा प्राप्त कर सकेंगे और उस भय, चिंता और दर्द से मुक्त हो सकेंगे जो मानवीय रूप का हिस्सा हैं। हालांकि इस्लाम द्वारा बताए गए रास्ते हम जैसे तुच्छ मानवों को इस दुनिया में खुशी की तलाश करने की अनुमति देते हैं। इस संसार में और परलोक में सुखी रहने की कुंजी यही है कि हम ईश्वर की ख़ुशी को तलाशें, और उसकी इबादत करें, वह भी उसके साथ किसी भी भागीदार (शरीक) किए बगैर।
अगले लेख में हम क्षमा और दया, आज़माइश और पीड़ा के विषय पर चर्चा करके इस्लाम को क़बूल करने के लाभों के बारे में अपनी चर्चा जारी रखेंगे।
[1] सहीह मुस्लिम
[2] तागूत – एक अरबी शब्द है जिसके अनतर्गत कई अर्थ आते हैं। मूल रूप से कहें तो इसका अर्थ कुछ ऐसा होता है कि एक सच्चे ईश्वर के अलावा किसी और आराधना करना और इसमें शैतान, राक्षस, मूर्तियां, पत्थर, तारे, सूर्य या चंद्रमा, देवदूत, मनुष्य, संतों के कब्र, शासक और नेता शामिल हैं।
दुनिया भर में कई लोग इस्लाम के सिद्धांतों को पढ़ने और अध्ययन करने में असीमित समय बिताते हैं; वे क़ुरआन के अनुवाद को पूरी तरह से समझते हैं और पैगंबर मुहम्मद के जीवन और उनके काल से प्रभावित होते हैं। बहुत से लोगों को इस्लाम की केवल एक झलक चाहिए होती है और वे तुरंत ही इस्लाम क़बूल कर लेते हैं। फिर भी बहुत से अन्य लोग सत्य को पहचानते हैं, लेकिन वे प्रतीक्षा करते हैं, और ज़्यादा प्रतीक्षा करते हैं और प्रतीक्षा करते रहते हैं, कभी-कभी वे अपनी आख़ेरत (परलोक का जीवन) को संकट में डालने की हद तक प्रतीक्षा करते हैं। इसलिए आज हम अपनी पिछली चर्चा जारी रखेंगे, कभी-कभार इस्लाम क़बूल करने के इतने स्पष्ट लाभ नहीं होते हैं।
"और जो व्यक्ति इस्लाम के अतिरिक्त किसी अन्य दीन (धर्म) को चाहेगा तो वह उससे कदापि स्वीकार न किया जाएगा और वह परलोक में अभागों में से होगा।" (क़ुरआन 3:85)
मानव जाति में जन्मा हर एक सदस्य इस ज्ञान के साथ पैदा होता है कि ईश्वर एक है। पैगंबर मुहम्मद ने कहा कि हर बच्चा फ़ितरत के साथ[1], अपने ईश्वर की सही समझ के साथ पैदा होता है।[2] इस्लाम के अनुसार इंसान का यह एक प्राकृतिक स्वभाव होता है, स्वाभाविक रूप से यह जानना कि एक विधाता है और स्वाभाविक रूप से उसी की आराधना करना और उसे ही राज़ी करना है। हालांकि जो लोग ईश्वर को नहीं पहचानते या उनके साथ संबंध स्थापित नहीं करते हैं, वे मानव की अस्तित्व को लेकर उलझन में पड़े रहते हैं और कभी-कभी काफी परेशान हाल दिखते हैं। बहुत से लोगों के लिए, एक ईश्वर को अपने जीवन में स्वीकार करना और उसकी आराधना इस प्रकार से करना जो उसे (ईश्वर को) राज़ी करता हो, जीवन को एक नया अर्थ देता है।
"सुनो, ईश्वर की याद ही से दिलों को सन्तुष्टि प्राप्त होती है।" (क़ुरआन 13:28)
नमाज़ और दुआ जैसे कार्यों को करते ही, व्यक्ति यह महसूस करने लगता है कि ईश्वर अपने अनंत ज्ञान और प्रज्ञान के माध्यम से उसकी सोच से भी ज़्यादा करीब है। एक आस्था रखने वाला व्यक्ति, इस ज्ञान से अवगत होकर सुरक्षित हो जाता है कि ईश्वर, सर्वोपरि है, स्वर्ग से परे रहतें हैं, और इस तथ्य को जानकार उसे आराम मिलता है कि वह उनके सभी मामलों में उनके साथ है और कोई मुसलमान कभी अकेला नहीं होता।
“वह जानता है जो कुछ धरती के अंदर जाता हैं और जो कुछ उससे निकलता है और जो कुछ आकाश से उतरता है और जो कुछ उसमें चढ़ता है, और वह तुम्हारे साथ है जहाँ भी तुम हो, और ईश्वर देखता है जो कुछ तुम करते हो।” (क़ुरआन 57:4)
एक निर्बल मनुष्य होने के कारण हम अक्सर खुद को खोया हुआ और अकेला महसूस करते हैं। और इस सब के बाद ही हम ईश्वर को याद करते हैं और उनकी दया और क्षमा चाहते हैं। जब हम पूरी तरह से समर्पित होकर उनकी तलाश करते हैं, केवल तभी उनकी ओर से हमें शांति का आशीर्वाद प्राप्त होता है। उसके बाद हम उनकी दयालुता को पहचानने में सक्षम होते हैं और इसे अपने आस-पास के वातावरण में इसे ज़ाहिर होते हुए देखते हैं। हालांकि, ईश्वर की आराधना करने के लिए, हमें उन्हें जानना होगा। इस्लाम क़बूल करने से ज्ञान का द्वार खुल जाता है, जिसमें यह तथ्य भी शामिल है कि ईश्वर की माफ़ी का कोई सीमा नहीं है।
बहुत से लोग अपने जीवन में अतीत में किए कई पापों के बारे में सोचकर उलझन में या शर्मिंदा होते हैं। इस्लाम क़बूल करने के बाद वे सभी पाप पूरी तरह से धुल जाते हैं; ऐसा मान लें कि जैसे वह कभी हुआ ही न हो। एक नया मुसलमान, किसी नवजात शिशु के जैसे पवित्र होता है।
"अवज्ञाकारियों से कहो कि यदि वह मान जाएं तो जो कुछ हो चुका है उसे क्षमा कर दिया जाएगा। और यदि वह पुनः वही करेंगे तो हमारा हिसाब-किताब पूर्ववर्तियों के साथ हो चुका है।" (क़ुरआन 8:38)
यदि इस्लाम क़बूल करने के बाद कोई व्यक्ति आगे भी कोई पाप करता है, तो क्षमा का द्वार पूरी तरह से खुला हुआ है।
"ऐ ईमान वालों, ईश्वर के समक्ष सच्ची तौबा करो। आशा है कि तुम्हारा पालनहार तुम्हारे पाप क्षमा कर दे और तुमको ऐसे बाग़ों में प्रवेश दे जिसके नीचे नहरें बहती होंगीं…” (क़ुरआन 66:8)
एक बार जब कोई व्यक्ति इस्लाम क़बूल कर लेता है तो वह यह समझने लगता है कि इस जीवन में आने वाली आज़माइश, पीड़ा और सफलता इस क्रूर और असंगठित ब्रह्मांड में सिर्फ संयोगवश नहीं हो रहे हैं। एक सच्चा आस्तिक व्यक्ति समझता है कि हमारा अस्तित्व एक सुव्यवस्थित संसार का हिस्सा है, और जीवन ठीक उसी प्रकार से चल रहा रहा है जैसा कि ईश्वर ने अपने अनंत ज्ञान के माध्यम से बताया है।
ईश्वर हमें बताता है कि हमारा इम्तिहान लिया जाएगा और वह हमें अपनी आज़माइशों और पीड़ाओं को धैर्यपूर्वक सहन करने की सलाह देता है। इस बात को तब तक नहीं समझा जा सकता जब तक कि कोई व्यक्ति ईश्वर के एक होने को न मान ले और इस्लाम धर्म को स्वीकार न कर लें। क्योंकि ईश्वर ने इस्लाम के माध्यम से हमें स्पष्ट दिशा-निर्देश प्रदान कर दिया है कि आज़माइश और पीड़ा का सामना करते समय हमें किस प्रकार का व्यवहार रखना चाहिए। अगर हम क़ुरआन और पैगंबर मुहम्मद के द्वारा बताए गए प्रामाणिक दिशानिर्देशों का पालन करते हैं, तो हम दुखों को आसानी से सहन कर सकते हैं और आभारी बन सकते हैं।
"और हम अवश्य तुमको परीक्षा में डालेंगे, कुछ डर और भूख़ से और सम्पत्ति और प्राणों और फलों की कमी से। और दृढ़ रहने वालों को शुभ-सूचना दे दो।" (क़ुरआन 2:155)
पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "एक व्यक्ति को उसकी धार्मिक योग्यता के स्तर के अनुसार परखा जाएगा, और आस्था रखने वाले इंसान को तब तक आज़माइश में डाला जाता रहेगा जब तक कि वह किसी पाप का भागी बने बगैर इस संसार से विदा न हो जाए। "[3] एक मुसलमान यह बात निश्चित रूप से जानता है कि यह दुनिया, यह जीवन, एक क्षणिक स्थान से अधिक कुछ नहीं है, हमारे अनंत जीवन यानि कि धधकती आग वाली नरक या स्वर्ग के रास्ते का बस एक पड़ाव है। पाप का बोझ अपने सिर पर लिए बगैर रचयिता के सामने हाज़िर होना एक अद्भुत बात है, और निश्चित रूप से हम पर आने वाली आज़माइशों इसके सामने कुछ भी नहीं है।
अगले लेख में हम इस चर्चा को इस निष्कर्ष पर समाप्त करेंगे कि इस्लाम जीवन जीने का एक तरीका है। यह स्पष्ट रूप से अन्य मनुष्यों के प्रति हमारे अधिकारों, दायित्वों और ज़िम्मेदारियों और जानवरों और पर्यावरण के प्रति हमारी ज़िम्मेदारी को दर्शाता है। इस्लाम के पास जीवन के छोटे और बड़े सभी सवालों के जवाब हैं।
[1] फितरत – सबसे शुद्ध और प्राकृतिक स्थिति।
[2] सहीह मुस्लिम
[3] इब्ने माजा
इस्लाम में परिवर्तित होने के लाभों की गणना करना बहुत कठिन है, फिर भी हमने उनमें से कुछ ऐसे लाभों को ही चुना है, जो अन्य से ऊपर और अलग हैं।
इस्लाम में परिवर्तित होने के प्रमुख लाभों में से एक यह है कि यह कोहरा और धुंध हटाता है। अचानक जीवन और उसके सभी उतार-चढ़ाव किसी हद तक स्पष्ट हो जाते हैं, सब थोड़ा अधिक समझ में आने लगता है। हज़ारों सदियों से मानव जाति को परेशान करने वाले बड़े सवालों के सभी जवाब स्पष्ट हो जाते हैं। हमारे जीवन के किसी भी समय, जब हम खाई के किनारे या सड़क के दो राहे पर खड़े होते हैं, तो हम खुद से पूछते हैं - "क्या यही है, क्या वास्तव में यही सब है? नहीं, केवल इतना ही नहीं है, इस्लाम सवालों का जवाब देता है और हमें भौतिकवाद से परे देखने और यह देखने के लिए कहता है कि यह जीवन अनंत जीवन के रास्ते पर एक क्षणिक पड़ाव से कुछ अधिक ही है। इस्लाम जीवन को एक स्पष्ट उद्देश्य और लक्ष्य देता है। एक मुसलमान के रूप में हम ईश्वर के शब्दों, क़ुरआन और उसके अंतिम दूत पैगंबर मुहम्मद के उदाहरण में उत्तर खोजने में सक्षम हैं, ईश्वर की दया और आशीर्वाद उन पर हो।
मुस्लिम होना पैदा करने वाले के प्रति पूर्ण समर्पण और इस तथ्य को इंगित करता है कि हम केवल ईश्वर की आराधना करने के लिए ही बनाये गए थे। हम यहां इस घूमते हुए ग्रह पर, जो अनंत प्रतीत होने वाले ब्रह्मांड में है; अकेले ईश्वर और पैदा करने वाले मालिक की आराधना करने के उद्देश्य से हैं। इस्लाम में परिवर्तित होने से हम एकमात्र संभावित अक्षम्य पाप अर्थात अन्य देवताओं को ईश्वर के साथ जोड़ने से मुक्त हो जाते हैं।
"मैंने (ईश्वर) ने केवल मेरी (अकेले) की आराधना करने के लिए ही जिन्न और मानव जाति को बनाया है।" (क़ुरआन 51:56)
"हे मानव जाति, ईश्वर की आराधना करो, तुम्हारा उसके अलावा कोई और ईश्वर नहीं है।" (क़ुरआन 7:59)
हालांकि, यह कहा जाना चाहिए कि ईश्वर को मानव पूजा की बिल्कुल आवश्यकता नहीं है। यदि एक भी मनुष्य ईश्वर की आराधना नहीं करता, तो यह उसकी महिमा और महानता को किसी भी तरह से कम नहीं करता, और यदि सारी मानवजाति उसकी आराधना करती, तो यह चीज़ भी उसकी महिमा और महानता में किसी भी तरह से वृद्धि नहीं करती।[1] हमें, मानव जाति को, ईश्वर की आराधना करने का सुख और सुरक्षा की आवश्यकता है।
इस्लाम धर्म सभी मानव जाति के लाभ के लिए प्रकट किया गया था जो न्याय के दिन तक मौजूद रहेगा। यह जीवन का एक संपूर्ण तरीका है, ऐसा नहीं है कि इस्लाम को केवल सप्ताहांत या वार्षिक त्योहारों में अभ्यास किए जाने वाले लाभ के लिए प्रकट किया गया था। एक ईमान वाले का ईश्वर के साथ संबंध दिन के चौबीस घंटे और सप्ताह के सातों दिन होता है। यह रुकता और शुरू नहीं होता है। अपनी असीम दया के माध्यम से, ईश्वर ने हमें जीवन के लिए एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान किया है, जिसमें आध्यात्मिक, भावनात्मक और शारीरिक सभी पहलुओं को शामिल किया गया है। उसने हमें अंधेरे में ठोकर खाने के लिए अकेला नहीं छोड़ा है, बल्कि ईश्वर ने हमें मार्गदर्शन की पुस्तक क़ुरआन दी है। उसने हमें पैगंबर मुहम्मद की प्रामाणिक परंपराएं भी दी हैं, जो क़ुरआन के मार्गदर्शन की व्याख्या और विस्तार करती हैं।
इस्लाम हमारी शारीरिक और आध्यात्मिक जरूरतों को पूरा करता और उन्हें संतुलित करता है। पैदा करने वाले द्वारा अपनी रचना के लिए तैयार की गई यह प्रणाली न केवल उच्च स्तर के व्यवहार, नैतिकता और आचरण की अपेक्षा करती है, बल्कि यह प्रत्येक मानव कार्य को आराधना में बदलने की अनुमति भी देती है। वास्तव में, ईश्वर ईमान वालों को अपना जीवन उसे समर्पित करने की आज्ञा देता है।
"कहो: 'निश्चय ही मेरी प्रार्थना, मेरा बलिदान, मेरा जीना और मेरा मरना उस ईश्वर के लिए है, जो सभी दुनिया के ईश्वर हैं।" (क़ुरआन 6:162)
ईश्वर जानता है कि उसकी रचना के लिए सबसे अच्छा क्या है। उन्हें मानव मानस का पूरा ज्ञान है। नतीजतन इस्लाम स्पष्ट रूप से ईश्वर, हमारे माता-पिता, जीवनसाथी, बच्चों, रिश्तेदारों, पड़ोसियों, आदि के प्रति हमारे अधिकारों और जिम्मेदारियों को परिभाषित करता है। इस्लाम में परिवर्तित होने से व्यक्ति सभी परिस्थितियों का आत्मविश्वास के साथ सामना कर सकता है। इस्लाम हमारा जीवन के आध्यात्मिक, राजनीतिक, पारिवारिक, सामाजिक और आर्थिक सभी पहलुओं के माध्यम से मार्गदर्शन करने में सक्षम है।
जब हम ईश्वर का सम्मान करने और उसकी आज्ञा मानने के अपने दायित्व को पूरा करते हैं, तो हम स्वतः ही उन सभी शिष्टाचारों और नैतिकता के उच्च मानकों को प्राप्त कर लेते हैं, जिनकी इस्लाम मांग करता है। इस्लाम में धर्मांतरण का अर्थ है ईश्वर की इच्छा के अधीन होना और इसमें मानव जाति, सभी जीवित प्राणियों और यहां तक कि पर्यावरण के अधिकारों का सम्मान और आदर करना शामिल है। हमें ज़रूर ईश्वर को जानना चाहिए और निर्णय लेने में उसके अधीन होना चाहिए, जिससे उसकी रज़ामन्दी प्राप्त हो।
अंत में, इस्लाम में परिवर्तित होने का एक लाभ है जो हर दिन को आनंदमय बनाता है। मुसलमान चाहे किसी भी परिस्थिति में खुद को पाते हों, वे इस ज्ञान में सुरक्षित हैं कि इस ब्रह्मांड में कुछ भी ईश्वर की अनुमति के बिना नहीं होता है। परीक्षण, आज़माइश और विजय सभी अच्छे हैं और यदि उनका सामना ईश्वर पर पूर्ण विश्वास के साथ किया जाए, तो वे एक सुखद निष्कर्ष और वास्तविक संतोष की ओर ले जाएंगे। पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "निश्चित ही एक ईमान वाले के मामले आश्चर्यजनक हैं! वे सभी उसके लाभ के लिए हैं। अगर उसे आराम दिया जाता है, तो वह आभारी है, और यह उसके लिए अच्छा है। और यदि वह किसी कठिनाई से पीड़ित होता है, तो वह दृढ़ रहता है, और यह उसके लिए अच्छा है।" [2]
[1] डॉ अबू अमीना बिलाल फिलिप्स की किताब "थि परपोज़ ऑफ़ क्रिएशन"।
[2] सहीह मुस्लिम
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