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कोई ईश्वर नहीं है सिवाय ईश्वर के। यह एक आसान सा कथन है जो इस्लाम क़बूल करने को आसान बना देता है। केवल एक ही ईश्वर है, और केवल एक ही धर्म है, इससे अधिक सरल कुछ नहीं हो सकता। हालांकि, जैसा कि हमने पिछले लेख में चर्चा की थी, जब भी कोई व्यक्ति सच्चाई तक पहुंचता है और वह मुसलमान होना चाहता है, तो शैतान लेकिन शब्द से परिचय कराता है। मैं मुसलमान होना चाहता हूं...लेकिन। लेकिन मैं तैयार नहीं हूं। लेकिन मैं अरबी नहीं बोलता, या लेकिन मैं अपना नाम बदलना नहीं चाहता। आज हम कई और मिथकों पर चर्चा करेंगे जो लोगों को इस्लाम क़बूल करने से रोकते हैं।
पैगंबर मुहम्मद ने कहा कि हर बच्चा फितरत के साथ, अपने ईश्वर की सही समझ के साथ पैदा होता है।[1] और पैगंबर मुहम्मद के कर्म हमें बताते हैं कि फितरत (इंसान की प्राकृतिक अवस्था) से संबंधित पांच शर्तें हैं।
"फितरत में पांच चीजें शामिल हैं: जांघ के बालों को साफ करना, खतना करना, मूंछों को ट्रिम करना, बगल के बालों को हटाना और नाखून काटना"।[2] इसे प्राचीन तरीक़ा माना जाता है, यही प्राकृतिक तरीक़ा है, जिसका पालन सभी पैगंबरों द्वारा किया गया, और उनके समर्थकों ने उनके बताए इस बात का हमेशा से पालन किया है।[3]
अधिकांश इस्लामी विद्वान इस बात से सहमत हैं कि पुरुषों के लिए खतना ज़रूरी है बशर्ते उन्हें इस बात का डर न हो कि इसे करवाने से उन्हें किसी प्रकार का नुकसान हो सकता है। नुकसान की सीमा का आकलन करते समय किसी व्यक्ति को मार्गदर्शन के लिए क़ुरआन और पैगंबर मुहम्मद की प्रामाणिक शिक्षाओं को देखना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति किसी बीमारी की आशंका जताता है या कोई अन्य उचित कारण बताता है, जो कि उसके जीवन के लिए हानिकारक हो सकता है तो ऐसे हालात में खतना करवाना अनिवार्य नहीं हो सकता है। इस्लाम ने इस मसले को इतनी कड़ाई से अनिवार्य नहीं ठहराया है जिससे कि यह किसी व्यक्ति द्वारा इस्लाम क़बूल करने के बीच बाधा बन जाए[4]। दूसरे शब्दों में कहें तो, यह मुसलमान होने की शर्त नहीं है। साथ ही, यह किसी व्यक्ति को नमाज़ पढ़ने से नहीं रोकता है।[5]
इस्लाम में महिलाओं को खतना करवाने की आवश्यकता नहीं है।
इस्लाम वह धर्म है जो सभी लोगों के लिए, सभी स्थानों पर, हर समय मौजूद रहा है। यह किसी विशेष जाति या जातीयता के लिए नहीं आया था। यह क़ुरआन में मिली शिक्षाओं और पैगंबर मुहम्मद की प्रामाणिक कर्मों के आधार पर जीवन जीने का एक संपूर्ण तरीका है। हालांकि क़ुरआन अरबी भाषा में नाज़िल (उतारा) हुआ था और पैगंबर मुहम्मद अरब के वासी थे, लेकिन यह मान लेना गलत होगा कि सभी मुसलमान अरब के वासी हैं, या यह बात कि अरब के सभी लोग मुसलमान हैं। वास्तव में दुनिया के 1.4 अरब मुसलमानों में से अधिकांश अरब के बाशिंदे नहीं हैं।
एक मुसलमान होने के लिए किसी ख़ास नस्ल या जाति का होना अनिवार्य नहीं है। अपने अंतिम ख़ुत्बे (उपदेश) में पैगंबर मुहम्मद ने इस तथ्य को बहुत संक्षेप में दोहराया था।
"सभी मानव जाति आदम और हव्वा की संतान हैं, एक अरब वासी को गैर-अरब वासी पर कोई श्रेष्ठता हासिल नहीं है और एक गैर-अरब वासी को अरब वासी पर कोई श्रेष्ठता हासिल नहीं है; एक गोरे व्यक्ति को एक काले व्यक्ति पर कोई श्रेष्ठता हासिल नहीं है और न ही एक काले व्यक्ति को एक गोरे व्यक्ति पर श्रेष्ठता हासिल है, सिवाय धर्मनिष्ठा और अच्छे कर्म के बल पर कोई व्यक्ति श्रेष्ठ बन सकता है। जान लो कि हर मुसलमान हर मुसलमान का भाई है और मुसलमान भाईचारे को बढ़ावा देते हैं।"[6]
“ऐ लोगों, हमने तुम्हें एक पुरुष और एक स्त्राी से पैदा किया। और तुमको जातियों और परिवारों में बाँट दिया, ताकि तुम एक दूसरे को पहचानो।” (क़ुरआन 49:13)
मुसलमान होने के लिए इस्लाम के बारे में बहुत ज़्यादा जानने की ज़रूरत नहीं है। गवाही (कलमे) का अर्थ और आस्था के छह स्तंभों को जानना ही काफी है। एक बार जब कोई व्यक्ति इस्लाम धर्म अपना लेता है, तो उसके पास अपने धर्म के बारे में जानने का समय होता है। जल्बादज़ी करने और परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। चीज़ों को धीरे-धीरे आराम से करें, लेकिन लगातार अपनी गति से आगे बढ़ें।इस्लाम की प्रेरणात्मक सुंदरता और सहजता को समझने और आखरी पैगंबर मुहम्मद सहित इस्लाम के सभी पैगंबरों और नबियों के बारे में जानने का समय आपके पास यकीनन होगा। एक मुसलमान कभी सीखना बंद नहीं करता; यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो मृत्यु तक जारी रहती है।
पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "विश्वासी के लिए स्वर्ग तक पहुंचने तक सबसे अच्छी चीज़ (ज्ञान की तलाश) है जो उनके लिए कभी पर्याप्त नहीं होता है।"[7]
जब कोई व्यक्ति विश्वास की गवाही (शहादत) देता है, यानि यह कहता है कि मैं गवाही देता हूं कि ईश्वर के सिवाय कोई ईश्वर नहीं है और मैं गवाही देता हूं कि मुहम्मद उसके रसूल (दूत) हैं, तब वह एक नवजात शिशु की तरह हो जाता है। उसके पिछले सभी पाप माफ़ कर दिए जाते हैं, चाहे कितने ही बड़े हों या छोटे हों, सभी पाप धुल जाते हैं। स्लेट साफ, पाप से मुक्त, चमकदार और सफेद हो जाते हैं; यह एक नई शुरुआत होती है।
“अवज्ञाकारियों से कहो कि यदि वह मान जायें तो जो कुछ हो चुका है उसे क्षमा कर दिया जायेगा…” (क़ुरआन 8:38)
इस्लाम की सच्चाई को मानने के लिए किसी व्यक्ति पर किसी तरह का कोई दबाव नहीं है। हालांकि अगर आपका दिल आपसे कहता है कि केवल एक ही ईश्वर है, तो संकोच न करें।
“दीन (धर्म) के संबंध में कोई ज़बरदस्ती नहीं। सन्मार्ग, पथभ्रष्टता से अलग हो चुका है। अतः जो व्यक्ति, शैतान को झुठलाए और ईमान लाए, उसने ऐसा ठोस सहारा पकड़ लिया जो टूटने वाला नहीं। और ईश्वर सुनने वाला जानने वाला है।” (क़ुरआन 2:256)
[1] सहीह मुस्लिम
[2] सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम
[3] अल-शक्वानि, नायल अल-अवतार, बाब सुनन अल-फ़ितरः
[4] फ़तावा अल-लजनः अल-दाइमह, 5/115, अल-लजाबात ‘अला अस्साइला अल-जालियात, 1/3,4
[6] विदाई ख़ुत्बा (उपदेश) का पाठ सही अल-बुखारी और सही मुस्लिम में मिल सकता है, और इमाम तिर्मिज़ी और इमाम अहमद की किताबों में।
[7] इमाम तिर्मिज़ी
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