L'articolo / video che hai richiesto non esiste ancora.

The article/video you have requested doesn't exist yet.

요청한 문서 / 비디오는 아직 존재하지 않습니다.

The article/video you have requested doesn't exist yet.

המאמר / הסרטון שביקשת אינו קיים עדיין.

The article/video you have requested doesn't exist yet.

L'articolo / video che hai richiesto non esiste ancora.

The article/video you have requested doesn't exist yet.

요청한 문서 / 비디오는 아직 존재하지 않습니다.

The article/video you have requested doesn't exist yet.

המאמר / הסרטון שביקשת אינו קיים עדיין.

The article/video you have requested doesn't exist yet.

ईश्वर की दिव्य दया (3 का भाग 1): ईश्वर अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है

रेटिंग:
फ़ॉन्ट का आकार:

विवरण: अल्लाह के दो सबसे बार-बार दोहराए जाने वाले नाम अर-रहमान और अर-रहीम की एक व्यावहारिक व्याख्या, और ईश्वर की सर्वव्यापी दया की प्रकृति।

  • द्वारा Imam Mufti
  • पर प्रकाशित 04 Nov 2021
  • अंतिम बार संशोधित 27 Aug 2023
  • मुद्रित: 0
  • देखा गया: 2529 (दैनिक औसत: 4)
  • रेटिंग: अभी तक रेटिंग नहीं दी गई है
  • द्वारा रेटेड: 0
  • ईमेल किया गया: 0
  • पर टिप्पणी की है: 0

यदि कोई पूछे कि, 'तुम्हारा ईश्वर कौन है?' मुस्लिम का जवाब होगा, 'अत्यन्त कृपाशील और दयावान्।' इस्लामिक सूत्रों के अनुसार, पैगंबरों ने ईश्वर के न्याय को बताते हुए उनकी दया के बारे मे भी बताया। मुस्लिम धर्मग्रंथों में, ईश्वर अपना परिचय देता है:

"वह ईश्वर ही है, जिसके सिवा कोई देवता नहीं है, दृश्य और अदृश्य को जानने वाला। वह अत्यन्त कृपाशील और दयावान् है।" (क़ुरआन 59:22)

इस्लामी शब्दावली में अर-रहमान और अर-रहीम जीवित ईश्वर के व्यक्तिगत नाम हैं। दोनों संज्ञा रहमा से आये हैं, जिसका अर्थ है "दया", "करुणा", और "प्रेमपूर्ण कोमलता।" अर-रहमान ईश्वर के सर्व-दयालु होने के स्वभाव को दर्शाता है, जबकि अर-रहीम उनकी रचनाओं के ऊपर किये गए दया को दर्शाता है, एक छोटा अंतर, जो उसकी सभी सर्वव्यापी दया को दर्शाता है।

"आप कह दें कि ईश्वर कहकर पुकारो अथवा परम दयालु (अर-रहमान) कहकर पुकारो, जिस नाम से भी पुकारो, उसके सभी नाम शुभ हैं... " (क़ुरआन 17:110)

ये दो नाम क़ुरआन मे ईश्वर के सबसे अधिक इस्तेमाल किए जाने वाले नामों में से हैं: अर-रहमान का उपयोग सत्तावन बार किया गया है, जबकि अर-रहीम का उपयोग इसका दोगुना (एक सौ चौदह बार) किया गया है।[1]  यह प्रेम-कृपा की एक बड़ी भावना व्यक्त करता है, पैगंबर ने कहा:

"वास्तव में, ईश्वर दयालु है, और दयालुता को पसंद करता है। वह दयालुता से वह देता है जो वो कठोरता से नहीं देता है।" (सहीह मुस्लिम)

ये दोनों ही ईश्वरीय गुण हैं जो सृष्टि के साथ ईश्वर के संबंध को बताते हैं।

"सब प्रशंसायें ईश्वर के लिए हैं, जो सारे संसारों का पालनहार है। जो अत्यंत कृपाशील और दयावान् है।" (क़ुरआन 1:2-3)

इसे मुसलमान प्रार्थना में एक दिन में कम से कम सत्रह बार पढ़ते हैं, वे यह कहते हुए शुरू करते हैं:

"ईश्वर के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील और दयावान् है। सब प्रशंसायें ईश्वर के लिए हैं, जो सारे संसारों का पालनहार है। जो अत्यंत कृपाशील और दयावान् है।" (क़ुरआन 1:1-3)

ये शक्तिशाली शब्द एक दिव्य प्रतिक्रिया उत्पन्न करते हैं:

"जब बंदा कहता है: 'सब प्रशंसायें ईश्वर के लिए हैं, जो सारे संसारों का पालनहार है।' तब ईश्वर कहता है: 'मेरे दास ने मेरी प्रशंसा की।' जब वह कहता है: 'ईश्वर अत्यंत कृपाशील और दयावान् है,' तब ईश्वर कहता है: 'मेरे दास ने मेरा गुणगान किया।'" (सहीह मुस्लिम)

ये नाम एक मुसलमान को लगातार अपने आस-पास की दिव्य दया की याद दिलाता है। मुस्लिम धर्मग्रंथों के सभी अध्याय इस एक वाक्यांश से शुरू होते हैं, 'ईश्वर के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील और दयावान् है।' मुसलमान ईश्वर के प्रति अपनी निर्भरता व्यक्त करने के लिए ईश्वर के नाम से शुरू करते हैं और हर बार खाते, पीते, पत्र लिखते, या कोई महत्वपूर्ण कार्य करते समय खुद को दिव्य दया की याद दिलाते हैं। सांसारिकता में आध्यात्मिकता खिलती है। प्रत्येक सांसारिक कार्य की शुरुआत में ये पढ़ना उस कार्य को महत्वपूर्ण बनाता है, उस कार्य पर दैवीय आशीर्वाद दिलाता है और उसे पवित्र करता है। यह हस्तलिपियों और स्थापत्य अलंकरण में सजावट का एक लोकप्रिय रूप है।

"ईश्वर के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील और दयावान् है।" एक डच कलाकार यूसेफ द्वारा लिखा हुआ।

दया करने के लिए ऐसा व्यक्ति चाहिए जिस पर दया की जाए। जिस पर दया की जाती है उसे दया की आवश्यकता होनी चाहिए। पूर्ण दया जरूरतमंदों के लिए है, जबकि असीम दया उन लोगों के लिए है जिन्हे इसकी जरूरत चाहे हो या न हो, जो इस दुनिया से मृत्यु के बाद के अद्भुत जीवन के लिए है।

इस्लामी सिद्धांत के अनुसार, मनुष्य प्रेमपूर्ण और दयालु ईश्वर के साथ एक व्यक्तिगत संबंध बनाता है, जो पापों को क्षमा करने और प्रार्थनाओं का जवाब देने के लिए हमेशा तैयार रहता है। ईश्वर मनुष्यों के दुख समझने के लिए इंसान नही बनता। बल्कि, ईश्वर की दया उसकी पवित्रता के अनुरूप एक गुण है, जो दैवीय सहायता और उपकार लाती है।

ईश्वर की दया विशाल है:

"कह दो: 'तुम्हारा पालनहार विशाल दयाकारी है ...।'" (क़ुरआन 6:147)

सभी के लिए:

"...परन्तु मेरी दया में सब कुछ समाया हुआ है..." (क़ुरआन 7:156)

सृष्टि स्वयं ईश्वरीय कृपा, दया और प्रेम की अभिव्यक्ति है। ईश्वर हमें अपने चारों ओर उसकी दया के प्रभावों को देखने के लिए कहता है:

"तो देखो ईश्वर की दया की निशानियों को, वह कैसे बेजान होने के बाद पृथ्वी को जीवन देता है! ..." (क़ुरआन 30:50)

ईश्वर दया करने वाले को पसंद करता है

ईश्वर दया को पसंद करता है। मुसलमान इस्लाम को दया का धर्म मानते हैं। उनके अनुसार, उनके पैगंबर पूरी मानवता के लिए ईश्वर की दया हैं:

"और (हे नबी!) हमने आपको भेजा है समस्त संसार के लिए दया बना कर।" (क़ुरआन 21:107)

वैसे ही जैसे वे यीशु (जीसस) को लोगों के लिए ईश्वर की दया मानते हैं:

"हम उसे लोगों के लिए एक निशानी बनायें अपनी विशेष दया से।" (क़ुरआन 19:21)

पैगंबर मुहम्मद (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) की बेटियों में से एक ने उन्हें अपने बीमार बेटे की खबर दी। उन्होंने उसे याद दिलाया कि देने वाला और लेने वाला ईश्वर है, और हर किसी का एक नियत कार्यकाल होता है। उन्होंने उसे धैर्य रखने को कहा। जब उसके बेटे की मौत की खबर उनको मिली तो उनकी आंखों में करुणा के आंसू छलक पड़े। उनके साथी हैरान रह गए। दया के पैगंबर ने कहा:

"यह वह करुणा है जो ईश्वर ने अपने दासों के हृदयों में रखी है। अपने सभी दासों में से, ईश्वर केवल दयालु पर दया करते हैं।" (सहीह अल बुखारी)

सौभाग्यशाली हैं दया करने वाले लोग, क्योंकि उन पर दया की जाएगी, जैसा कि पैगंबर मुहम्मद ने कहा:

"ईश्वर उस पर दया नहीं करेगा जो लोगों के प्रति दयालु नहीं है।" (सहीह अल बुखारी)

उन्होंने यह भी कहा:

"परम दयालु दया करने वालों लोगों पर दया करता है। तुम पृथ्वी पर रहने वालों पर दया करो, और जो आसमान पर है, वह तुम पर दया करेगा।" (अत-तिर्मिज़ी)



फुटनोट:

[1] इसके विपरीत, 'दयालु' बाइबल में एक दिव्य नाम के रूप में नही है। (यहूदी विश्वकोश, 'ईश्वर के नाम,' पृष्ठ 163)

 

 

ईश्वर की दिव्य दया (3 का भाग 2): इसका सुखद अहसास

रेटिंग:
फ़ॉन्ट का आकार:

विवरण: दया, जैसा इस जीवन में और परलोक में बताया गया है।

  • द्वारा Imam Mufti
  • पर प्रकाशित 04 Nov 2021
  • अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
  • मुद्रित: 0
  • देखा गया: 2315 (दैनिक औसत: 3)
  • रेटिंग: अभी तक रेटिंग नहीं दी गई है
  • द्वारा रेटेड: 0
  • ईमेल किया गया: 0
  • पर टिप्पणी की है: 0

ईश्वरीय दया सभी को हमेशा के लिए अपने में समेटे हुए। मानवजाति की देखभाल करने वाला, करुणा से भरा हुआ ईश्वर उन पर दया करता है। ईश्वर का नाम, अर-रहमान, दर्शाता है कि उनकी प्रेममयी दया उनके अस्तित्व का एक परिभाषित पहलू है; उनकी करुणा की परिपूर्णता असीम है; एक अथाह सागर जिसका कोई किनारा नहीं है। प्रतिष्ठित इस्लामी विद्वानों में से एक, अर-रज़ी ने लिखा, 'सृष्टि के लिए ईश्वर की तुलना में स्वयं के प्रति अधिक दयालु होना अकल्पनीय है!' वास्तव में इस्लाम सिखाता है कि ईश्वर हम पर हमारी माँ से भी अधिक दयालु है।

ईश्वर अपनी असीम दया से मनुष्यों के लिए बागों में फल पैदा करने के लिए बारिश भेजता है। जिस प्रकार शरीर को भोजन की आवश्यकता होती है उसी प्रकार आत्मा को भी आध्यात्मिक पोषण की आवश्यकता होती है। ईश्वर ने अपनी असीम दया से मनुष्यों के लिए पैगंबरों और दूतों को भेजा और इसे बनाए रखने के लिए शास्त्रों का खुलासा किया। ईश्वर ने अपनी दया मूसा के तौरात में दर्शाई है:

"... जिनके लिखे आदेशों में मार्गदर्शन तथा दया थी, उन लोगों के लिए, जो अपने पालनहार से ही डरते हों।" (क़ुरआन 7:154)

और क़ुरआन का रहस्योद्घाटन:

"... ये सूझ की बातें हैं, तुम्हारे पालनहार की ओर से तथा मार्गदर्शन और दया हैं उन लोगों के लिए जो विश्वास रखते हैं।" (क़ुरआन 7:203)

किसी के पूर्वजों के कुछ गुणों के कारण दया नहीं की जाती है। ईश्वर के वचन को सुनने और उस पर अमल करने पर ईश्वरीय दया दी जाती है:

"और यह किताब (क़ुरआन) हमने अवतरित की है, ये बड़ा शुभकारी है, अतः इसका पालन करो और ईश्वर से डरते रहो, ताकि तुमपर दया की जाये।" (क़ुरआन 6:155)

"और जब क़ुरआन पढ़ा जाये, तो उसे ध्यानपूर्वक सुनो तथा मौन साध लो। शायद कि तुमपर दया की जाये।" (क़ुरआन 7:204)

आज्ञाकारिता से दया मिलती है:

"इसलिए प्रार्थना की स्थापना करो, ज़कात दो तथा पैगंबर की आज्ञा का पालन करो, ताकि तुमपर ईश्वर की दया हो।" (क़ुरआन 24:56)

ईश्वर की दया मनुष्य की आशा है। इसलिए विश्वासी ईश्वर से उनकी दया के लिए प्रार्थना करते हैं:

"... मुझे रोग लग गया है और तू सबसे अधिक दयावान् है!" (क़ुरआन 21:83)

वे आस्था रखने वालो के लिए ईश्वर की दया की याचना करते हैं:

"हे हमारे पालनहार! हमें मार्गदर्शन देने के बाद हमारे दिलों को कुटिल न कर; और हमें अपनी दया का उपहार दें, वास्तव में, तू बहुत बड़ा दाता है।" (क़ुरआन 3:8)

और वे अपने माता-पिता के लिए ईश्वर की दया की याचना करते हैं:

"... हे मेरे पालनहार! उन दोनों पर दया कर, जैसे उन दोनों ने बाल्यावस्था में मेरा लालन-पालन किया है!" (क़ुरआन 17:24)

ईश्वरीय दया का आवंटन

ईश्वर की दया विश्वास करने वालों और अविश्वासी, आज्ञाकारी और विद्रोही सब को अपनी बाहों में भर लेती है, लेकिन आने वाले जीवन में यह सिर्फ विश्वास करने वालों के लिए होगी। अर-रहमान का अर्थ है दुनिया में सभी के लिए दयालु, लेकिन आने वाले जीवन में उसकी दया सिर्फ विश्वास करने वालो के लिए होगी। न्याय के दिन अर-रहीम विश्वास करने वालों पर अपनी दया करेंगे:

"... मैं अपनी यातना जिसे चाहता हूं, उसे देता हूं। और मेरी दया प्रत्येक चीज़ के लिए है। मैं उसे उन लोगों के लिए लिख दूंगा, जो अवज्ञा से बचेंगे, ज़कात देंगे और जो हमारे संदेशों का पालन करेंगे, जो उस पैगंबर का अनुसरण करेंगे, जिन के आने का उल्लेख वे अपने पास तौरात तथा इंजील में पाते हैं ..." (क़ुरआन 7:156-157)

दया के ईश्वरीय आवंटन की व्याख्या इस्लाम के पैगंबर ने किया है:

"ईश्वर ने दया के सौ हिस्से बनाए। उसने एक हिस्सा अपनी रचना के बीच रखा जिसके कारण वे एक-दूसरे पर दया करते हैं। ईश्वर ने शेष निन्यानवे हिस्से को न्याय के दिन अपने दासों पर दया करने के लिए बचा लिया।" (सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम, अल-तिर्मिज़ी, और अन्य।)

ईश्वरीय दया का एक अंश ही आकाश और पृथ्वी के लिए काफी है, मनुष्य एक दूसरे से प्रेम करते हैं, पशु-पक्षी पानी पीते हैं।

इसके अलावा, न्याय के दिन जो ईश्वरीय दया दी जाएगी, वह इस जीवन में हम जो देखते हैं उससे कहीं अधिक विशाल है, इसी तरह ईश्वरीय दंड भी जो हम यहां अनुभव करते हैं उससे कहीं अधिक है। इस्लाम के पैगंबर ने इन ईश्वरीय गुणों के दोहरे चरम की व्याख्या की:

"यदि एक आस्तिक को पता चल जाये कि ईश्वर ने क्या दंड रखा है, तो वह निराश होगा और कोई भी स्वर्ग की चाहत रखने की हिम्मत नहीं करेगा। यदि एक अविश्वासी को ईश्वर की असीम दया का पता चल जाये, तो कोई भी स्वर्ग के संबंध में निराश नहीं होगा।" (सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम, अल-तिर्मिज़ी)

इस्लामी सिद्धांत के अनुसार, ईश्वर की दया ईश्वर के क्रोध से अधिक है:

"वास्तव में, मेरी दया मेरे दंड से अधिक है।" (सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम)

 

 

ईश्वर की दिव्य दया (3 का भाग 3): पापी

रेटिंग:
फ़ॉन्ट का आकार:

विवरण: कैसे ईश्वर की दया पाप करने वालो को घेर लेती है।

  • द्वारा Imam Mufti
  • पर प्रकाशित 04 Nov 2021
  • अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
  • मुद्रित: 0
  • देखा गया: 2547 (दैनिक औसत: 4)
  • रेटिंग: अभी तक रेटिंग नहीं दी गई है
  • द्वारा रेटेड: 0
  • ईमेल किया गया: 0
  • पर टिप्पणी की है: 0

ईश्वर की दया हम सभी के बहुत करीब होती है, और हम जैसे ही तैयार होते हैं, ये हमे गले लगा लेती है। इस्लाम मनुष्य की पाप करने की प्रवृत्ति को जनता है, क्योंकि ईश्वर ने मनुष्य को कमजोर बनाया है। पैगंबर ने कहा:

"आदम के सभी बच्चे लगातार गलती करते हैं ..."

इसके साथ ही ईश्वर हमें बताता है कि वह पापों को क्षमा करता है। इसी हदीस मे आगे:

"... लेकिन जो लगातार गलती करते हैं उनमें से सबसे अच्छे वे हैं जो लगातार पश्चाताप करते हैं।" (अल-तिर्मिज़ी, इब्न माजा, अहमद, हकीम)

ईश्वर कहता है:

"आप कह दें मेरे उन भक्तों से, जिन्होंने अपने ऊपर अत्याचार किये हैं कि तुम निराश न हो ईश्वर की दया से। वास्तव में, ईश्वर क्षमा कर देता है सब पापों को। निश्चय ही वह क्षमा करने वाला, सबसे दयालु है।" (क़ुरआन 39:53)

दया के पैगंबर मुहम्मद सभी लोगों को खुशखबरी देते थे:

"मेरे सेवकों से कह दो कि मैं वास्तव में क्षमा करने वाला, परम दयालु हूं।" (क़ुरआन 15:49)

पश्चाताप ईश्वरीय दया को आकर्षित करता है:

"... क्यों तुम क्षमा नहीं मांगते ईश्वर से, ताकि तुम पर दया की जाये? (क़ुरआन 27:46)

"... ईश्वर की दया हमेशा सदाचारियों के करीब है!" (क़ुरआन 7:56)

प्राचीन काल से ही ईश्वर की दया ने विश्वासियों को सजा से बचाया है:

"और जब हमारा आदेश आ गया, तो हमने हूद को और जो उसके विश्वास के साथ थे उनको अपनी दया से बचा लिया... (क़ुरआन 11:58)

"और जब हमारा आदेश आ गया, तो हमने शोऐब को और जो उसके विश्वास के साथ थे उनको अपनी दया से बचा लिया... (क़ुरआन 11:94)

पापी के प्रति ईश्वर की दया की परिपूर्णता निम्नलिखित में देखी जा सकती है:

1.       ईश्वर पश्चाताप को स्वीकार करता है

"और ईश्वर चाहता है कि तुम पर दया करे तथा जो लोग वासनाओं के पीछे पड़े हुए हैं, वे चाहते हैं कि तुम बहुत अधिक झुक जाओ।" (क़ुरआन 4:27)

"क्या वे नहीं जानते कि ईश्वर ही अपने भक्तों की क्षमा स्वीकार करता है और उनके दानों को स्वीकार करता है और वास्तव में, ईश्वर क्षमा करने वाला, सबसे दयालु है।" (क़ुरआन 9:104)

2.       ईश्वर उस पापी को पसंद करता है जो पश्चाताप करता है

"... क्योंकि ईश्वर उनको पसंद करता है जो निरन्तर पश्चाताप करते हैं...।" (क़ुरआन 2:22)

पैगंबर ने कहा:

"यदि मनुष्य पाप नहीं करता, तो ईश्वर अन्य प्राणियों की रचना करता जो पाप करते, और वह उन्हें क्षमा करता, क्योंकि वह क्षमाशील, अति-दयालु है।" (अल-तिर्मिज़ी, इब्न माजा, मुसनद अहमद)

3.       ईश्वर प्रसन्न होता है जब कोई पापी पश्चाताप करता है, क्योंकि उसे समझ होती है कि एक ईश्वर है जो पापों को क्षमा करता है!

पैगंबर ने कहा:

"जब कोई पश्चाताप करता है तो ईश्वर अपने दास के पश्चाताप से इतना प्रसन्न होता है जितना तुम में से कोई नहीं हो सकता, उस ऊंट के वापस मिलने से जिस पर वह एक बंजर रेगिस्तान में सवार था, और ऊंट उसके खाने-पीने की चीजों को लेकर भाग गया था। जब वह निराश हो जाता है, तो एक पेड़ की छाया में लेट जाता है, और जब वह निराश होता है, तो ऊंट आ जाता है और उसके पास खड़ा हो जाता है, और वह उसकी लगाम को पकड़ के खुशी से चिल्लाता है, 'हे ईश्वर, तुम मेरे दास हो और मैं तुम्हारा पालनहार!' - उसने शब्दों की ये गलती अपनी अत्यधिक ख़ुशी के कारण की" (सहीह मुस्लिम)

4.       पश्चाताप का द्वार हर समय खुला है

ईश्वरीय दया का द्वार वर्ष के हर दिन और हर रात खुला है। पैगंबर ने कहा:

"दिन में पाप करने वाले के पश्चाताप को स्वीकार करने के लिए ईश्वर रात में अपना हाथ बढ़ाता है, और रात में पाप करने वाले के पश्चाताप को स्वीकार करने के लिए ईश्वर दिन में अपना हाथ बढ़ाता है - सूरज के पश्चिम से निकलने के दिन तक जो न्याय के दिन के प्रमुख संकेतों में से एक है।" (सहीह मुस्लिम)

5.       बार-बार पाप करने पर भी ईश्वर पश्चाताप स्वीकार करता है

ईश्वर पापी के प्रति बार-बार अपनी दया दिखाता है। सोने के बछड़े का पाप किए जाने से पहले इजराइल के बच्चों के प्रति ईश्वर की दया देखी जा सकती है, ईश्वर ने इजराइल के साथ अपनी दया के अनुसार व्यवहार किया, उनके पाप करने के बाद भी ईश्वर ने साथ दया की। अर-रहमान कहता है:

"... और जब हमने मूसा को (तौरात देने के लिए) चालीस रात्रि का वचन दिया, फिर उनके पीछे तुमने बछड़े को पूजना शुरू कर दिया और तुम पापी बन गए। हमने इसके बाद भी तुम्हें क्षमा कर दिया, ताकि तुम कृतज्ञ बनो।“ (क़ुरआन 2:51-52)

पैगंबर ने कहा:

"एक आदमी ने पाप किया और फिर कहा, 'हे मेरे ईश्वर, मेरे पाप को क्षमा कर दे,' तो ईश्वर ने कहा, 'मेरे दास ने पाप किया, तब उसे एहसास हुआ कि उसका एक ईश्वर है जो पापों को क्षमा कर सकता है और उसे इसके लिए दंडित कर सकता है।' उस आदमी ने फिर से पाप किया, और फिर कहा, 'हे मेरे ईश्वर, मेरे पाप को क्षमा कर दे।' ईश्वर ने कहा, 'मेरे दास ने पाप किया, तब उसे एहसास हुआ कि उसका एक ईश्वर है जो पापों को क्षमा कर सकता है और उसे इसके लिए दंडित कर सकता है।' आदमी ने फिर पाप किया (तीसरी बार), फिर उसने कहा, 'हे मेरे ईश्वर, मेरे पाप को क्षमा कर दे,' और ईश्वर ने कहा, 'मेरे दास ने पाप किया है, तब उसे एहसास हुआ कि उसका एक ईश्वर है जो पापों को क्षमा कर सकता है और उसे इसके लिए दंडित कर सकता है। जो तुम चाहो करो, क्योंकि मैंने तुम्हें माफ कर दिया है।'" (सहीह मुस्लिम)

6.       इस्लाम अपनाने से पिछले सभी पाप मिट जाते हैं

पैगंबर ने बताया कि इस्लाम को स्वीकार करने से नए मुसलमान के सभी पिछले पाप मिट जाते हैं, चाहे वे कितने भी गंभीर क्यों न हों, बस एक शर्त है: नया मुसलमान इस्लाम को पूरी तरह से ईश्वर के लिए स्वीकार करे। कुछ लोगों ने ईश्वर के पैगंबर से पूछा, 'ऐ ईश्वर के पैगंबर! इस्लाम अपनाने से पहले अज्ञानता के दिनों में हमने जो किया उसके लिए क्या हम दंडित होंगे?' उन्होंने जवाब दिया:

"जो कोई इस्लाम पूरी तरह से ईश्वर के लिए स्वीकार करता है उसे दंडित नहीं किया जाएगा, लेकिन जो किसी अन्य कारण से ऐसा करता है, वह इस्लाम से पहले और बाद के सभी कार्यो के लिए जवाबदेह होगा।" (सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम)

यद्यपि ईश्वर की दया किसी भी पाप को माफ़ करने के लिए पर्याप्त है, यह मनुष्य को सही व्यवहार करने की अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं करती है। मोक्ष के मार्ग में अनुशासन और परिश्रम की आवश्यकता है। इस्लाम में मोक्ष का नियम केवल ईश्वर में विश्वास करना नहीं, बल्कि आस्था और इस्लाम के कानून का पालन करना भी है। हम अपूर्ण और कमजोर हैं और ईश्वर ने हमें इसी तरह बनाया है। जब हम पवित्र कानून का पालन करने में चूक जाते हैं, तो प्रेम करने वाला ईश्वर हमें क्षमा करने के लिए तैयार रहता है। क्षमा केवल ईश्वर के सामने अपने पापों को स्वीकार करने, फिर से पाप न करने का दृढ़ इरादा करने और उनकी दया की याचना करने से मिलती है। लेकिन हमेशा याद रखना चाहिए कि स्वर्ग सिर्फ कर्मों से नहीं मिलेगा, ईश्वरीय कृपा से मिलेगा। दया के पैगंबर ने इस तथ्य को स्पष्ट किया:

"तुम में से कोई भी सिर्फ अपने कर्मों से स्वर्ग मे नही जायेगा। उन्होंने पूछा, 'हे ईश्वर के दूत, आप भी नहीं?' उन्होंने कहा, 'मै भी नहीं, जब तक कि ईश्वर मुझे अपनी कृपा और दया से ढक न दें।" (सहीह मुस्लिम)

ईश्वर में विश्वास, उसके कानून का पालन करना, और अच्छे कार्य करना स्वर्ग में जाने के कारण है, कीमत नही।

इस लेख के भाग

सभी भागो को एक साथ देखें

टिप्पणी करें

सर्वाधिक देखा गया

प्रतिदिन
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
कुल
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)

संपादक की पसंद

(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)

लेख की सूची बनाएं

आपके अंतिम बार देखने के बाद से
यह सूची अभी खाली है।
सभी तिथि अनुसार
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)

सबसे लोकप्रिय

सर्वाधिक रेटिंग दिया गया
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
सर्वाधिक ईमेल किया गया
सर्वाधिक प्रिंट किया गया
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
इस पर सर्वाधिक टिप्पणी की गई
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)
(और अधिक पढ़ें...)

आपका पसंदीदा

आपकी पसंदीदा सूची खाली है। आप लेख टूल का उपयोग करके इस सूची में लेख डाल सकते हैं।

आपका इतिहास

आपकी इतिहास सूची खाली है।

View Desktop Version