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हमने इस लेख के भाग 1 को यह सुझाव देकर पूरा किया कि अगर कोई व्यक्ति वाकई मानता है कि कोई ईश्वर नहीं है ईश्वर के सिवा, तो उसे तुरंत इस्लाम क़बूल कर लेना चाहिए। हमने यह बात भी सामने रखा कि इस्लाम माफ़ करने वाला धर्म है। एक व्यक्ति ने चाहे कितने ही पाप कर लिए हों, वह कभी भी अक्षम्य नहीं होता है। ईश्वर काफ़ी दयालु, रहमदिल है और क़ुरआन इन गुणों पर 70 से अधिक बार जोर देता है।
“और ईश्वर ही के अधिकार में है जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है। वह जिसको चाहे क्षमा कर दे और जिसको चाहे यातना दे और ईश्वर क्षमा करने वाला, दयावान है।” (क़ुरआन 3:129)
हालांकि, एक पाप है जिसे ईश्वर माफ़ नहीं करेगा और वह है ईश्वर के साथ भागीदार या सहयोगी बनाने का पाप। एक मुसलमान का मानना है कि ईश्वर एक है, जिसका कोई दोस्त, संतान या सहयोगी नहीं है। वही इकलौता है जो आराधना के योग्य है।
“कहो, वह ईश्वर एक है। ईश्वर निरपेक्ष (और सर्वाधार) है। न वह जनिता है और न जन्य। और न कोई उसका समकक्ष है।” (क़ुरआन 112)
“निसंदेह, ईश्वर इसको क्षमा नहीं करेगा कि उसके साथ साझेदार किए जाएं। लेकिन इसके अतिरिक्त जो कुछ है उसको जिसके लिए चाहेगा क्षमा कर देगा।” (क़ुरआन 4:48)
यह कहना अजीब लग सकता है कि ईश्वर सबसे रहमदिल है, और ज़ोर देकर कहते हैं कि इस्लाम माफ़ करने वाला धर्म है, जबकि यह भी कहा जा रहा है कि एक पाप है जिसे माफ़ नहीं किया जा सकता है। जब आप समझ जाते हैं कि यह एक अजीब या अविश्वसनीय अवधारणा नहीं है, यह संगीन पाप केवल तभी माफ़ नहीं किया जा सकता है जब कोई व्यक्ति ईश्वर से पश्चाताप किए बिना मर जाता है। किसी भी समय, जब तक कोई पापी व्यक्ति अपनी अंतिम सांस नहीं लेता है, तब तक वह ईमानदारी से ईश्वर की ओर मुड़ सकता है और माफ़ी मांग सकता है, यह जानते हुए कि ईश्वर असल में सबसे रहमदिल और सबसे दयालु है। सच्चा पश्चाताप ईश्वर की माफ़ी का भरोसा दिलाता है।
“अवज्ञाकारियों से कहो कि यदि वह मान जाएं तो जो कुछ हो चुका है उसे क्षमा कर दिया जायेगा।” (क़ुरआन 8:38)
पैगंबर मुहम्मद, उन पर ईश्वर की दया और कृपा बनी रहे, ने कहा: "ईश्वर अपने दास के पश्चाताप को तब तक स्वीकार करेंगे जब तक कि मौत की खड़खड़ाहट उसके गले तक नहीं पहुंचती है।"[1] पैगंबर मुहम्मद ने यह भी कहा, "इस्लाम उसके पुराने (पापों) को नष्ट कर देता है"।[2]
जैसा कि पिछले लेख में चर्चा किया गया था, अक्सर जब कोई व्यक्ति इस्लाम क़बूल करने पर विचार कर रहा होता है, तो वे अपने जीवनकाल में किए गए कई पापों से भ्रमित या यहां तक कि शर्मिंदा भी होता है। कुछ लोगों को हैरानी भी होती है कि जब वे अपने पापों और अपराधों को छिपाते हैं तो वे अच्छे, नैतिक लोग कैसे बन सकते हैं।
इस्लाम को क़बूल करना और शहादत या विश्वास की गवाही के रूप में जाने वाले शब्दों का उच्चारण करना, (मैं गवाही देता हूं "ला इलाह इल्ला अल्लाह, मुहम्मद रसूलु अल्लाह।"[3]), एक व्यक्ति के मन को पूरा साफ कर देता है। वह एक नवजात शिशु की तरह हो जाता है, पाप से पूरी तरह मुक्त हो जाता है। यह एक नई शुरुआत है, जहां किसी के पिछले पाप अब किसी व्यक्ति को बांध कर नहीं रख सकते। पिछले पापों से डरने की ज़रूरत नहीं है। हर नया मुसलमान इस मूल आस्था के आधार पर जीवन जीने के लिए स्वतंत्र और मुक्त हो जाता है कि ईश्वर एक है।
जब कोई व्यक्ति इस डर से पीछे नहीं रहता कि उनके पिछले पाप या जीवनशैली उन्हें एक अच्छा जीवन जीने से रोकती है, तो इस्लाम क़बूल करने का मार्ग अक्सर आसान हो जाता है। यह जानना किसी के लिए भी अच्छा है कि ईश्वर किसी को भी, किसी भी चीज़ के लिए माफ़ कर सकता है। हालांकि, ईश्वर के अलावा किसी और की आराधना न करने के मायने को समझना सर्वोपरि है क्योंकि यह इस्लाम का आधार है।
ईश्वर ने मानवजाति की रचना नहीं की, सिवाय इसके कि वे केवल उसकी पूजा करें (क़ुरआन 51:56) और उस पूजा को शुद्ध और पवित्र रखने के बारे में जानना अनिवार्य है। हालांकि, विवरण अक्सर तब सीखा जाएगा जब किसी व्यक्ति ने जीवन के बड़े सच को पहचान लिया है जो कि इस्लाम है।
“और तुम अनुसरण करो अपने पालनहार की भेजी हुई किताब के श्रेष्ठ पहलू की, इससे पहले कि तुम पर अचानक यातना आ जाये और तुमको सूचना न हो।" जिस पर एक व्यक्ति कह सकता है: "कहीं कोई व्यक्ति यह कहे कि अफसोस मेरी कोताही पर जो मैंने ईश्वर के बारे में की, और मैं तो उपहास (अवज्ञा) करने वालों में सम्मिलित रहा।" (क़ुरआन 39:55-56)
एक बार जब कोई व्यक्ति इस्लाम की सच्चाई को स्वीकार कर लेता है, इस प्रकार वह यह स्वीकार कर लेता है कि ईश्वर के अलावा कोई ईश्वर नहीं है, तो उसके पास अपने धर्म के बारे में जानने का वक़्त है। उसके पास इस्लाम की प्रेरणात्मक सुंदरता और सहजता को समझने और आखिरी पैगंबर, मुहम्मद सहित इस्लाम के सभी पैगंबरों और दूतों के बारे में जानने का वक़्त है। अगर ईश्वर यह आदेश देता है कि इस्लाम क़बूल करने के तुरंत बाद किसी व्यक्ति का जीवन समाप्त हो जाएगा, तो इसे ईश्वर की कृपा के संकेत के रूप में देखा जा सकता है; जिसे ईश्वर की कृपा और उसके असीम ज्ञान से एक नवजात शिशु के रूप में पवित्र व्यक्ति के लिए अनंत स्वर्ग के लिए नियत किया जाएगा।
जब कोई व्यक्ति इस्लाम क़बूल करने पर विचार कर रहा होता है, तो सामने आने वाली सारी बाधाएं शैतान के माया और छल के अलावा और कुछ नहीं है। यह स्पष्ट है कि एक बार जब कोई व्यक्ति ईश्वर द्वारा चुन लिया जाता है, तो शैतान उस व्यक्ति को भटकाने के लिए हर संभव प्रयास करेगा और उन पर छोटे-छोटे अफ़वाहों और शंकाओं की बौछार करेगा। इस्लाम धर्म एक तोहफ़ा है, और किसी भी अन्य तोहफ़े की तरह इसे स्वीकार किया जाना चाहिए, और इसकी सामग्री के सच्चे मोल को प्रकट करने के लिए खोला जाना चाहिए। इस्लाम ज़िंदगी जीने का एक तरीका है जो मृत्यु के बाद परम सुख प्रदान करता है। ईश्वर के अलावा कोई ईश्वर नहीं है, एकमात्र ईश्वर, पहला और आखिरी। उसे जानना सफलता की कुंजी है और इस्लाम को क़बूल करना मृत्यु के बाद की ज़िंदगी के सफ़र का पहला कदम है।
[1] अत-तिर्मिज़ी
[2] सहीह मुस्लिम
[3] मैं गवाही देता हूं कि ईश्वर के अलावा कोई भी आराधना के योग्य नहीं है और मैं गवाही देता हूं कि मुहम्मद ईश्वर के पैगंबर हैं। शहादत के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करें
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