इस्लाम क़बूल करना (भाग 2 का 1): दुनिया के हर कोने में मौजूद लोगों के लिए एक धर्म

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  • पर प्रकाशित 04 Nov 2021
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Accepting_Islam_(part_1_of_2)_001.jpgआज दुनिया में बहुत सारे लोग सच्चाई की तलाश कर रहे हैं; वे अपने जीवन के मायने तलाश करते हैं, और सोचते हैं कि आख़िर ज़िंदगी का मतलब क्या है। पुरुष एवं महिला सवाल करते हैं, मैं यहां क्यों हूं? दुख और पीड़ा के दौरान, मानवजाति चुपचाप या जोर से पुकार कर राहत या समझ की गुहार लगाता है। अक्सर सुख के दौरान, एक व्यक्ति इस तरह के उत्साह के स्रोत को समझने की कोशिश करता है। कभी-कभी लोग इस्लाम को अपना सच्चा धर्म मानने पर विचार करते हैं लेकिन उस बीच कुछ रुकावटें महसूस करते हैं।

जीवन के सबसे ख़ुशहाल पलों या सबसे बुरे वक्त में, एक व्यक्ति की सबसे स्वाभाविक प्रतिक्रिया सर्व-शक्तिमान यानि ईश्वर के साथ जुड़ने का होता है। यहां तक कि जो लोग ख़ुद को नास्तिक या गैर-धार्मिक मानते हैं, उन्होंने भी अपने जीवन के किसी न किसी मोड़ पर खुद को ईश्वर के बनाए शाश्वत व्यवस्था का हिस्सा होने की स्वाभाविक भावना का अनुभव किया है।

इस्लाम धर्म इस एक मूल विश्वास पर आधारित है कि ईश्वर एक है। वह अकेले ही ब्रह्मांड का पालनकर्ता और निर्माता है। उसका कोई भागीदार, बच्चा या सहयोगी नहीं है। वह सबसे दयालु, सबसे बुद्धिमान और सबसे न्याययुक्त है। वह सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ देखने वाला और सब कुछ जानने वाला है। वही शुरुआत है, वही आखिर है।

यह सोचकर सुकून मिलता है कि इस जीवन में हमारी आज़माइश, क्लेश और जीत एक क्रूर असंगठित लोगों के बेतरतीब कार्य नहीं हैं। ईश्वर पर भरोसा, एक ईश्वर पर भरोसा, दुनिया में जिस भी चीज़ का अस्तित्व है उसका पालनकर्ता और निर्माता वही है, ये मान्यताएं सभी का एक मौलिक अधिकार है। यह निश्चित रूप से जानना कि हमारा अस्तित्व एक सुव्यवस्थित दुनिया का हिस्सा है और यह कि जीवन जैसा होना चाहिए वैसा ही दिखाई दे रहा है, यह एक ऐसी अवधारणा है जो अमन और शांति लाती है।

इस्लाम एक ऐसा धर्म है जो जीवन की ओर देखता है और कहता है कि यह दुनिया एक नश्वर जगह है और हमारे होने का कारण ईश्वर की आराधना करना है। सुनने में काफी सरल लगता है, है ना? ईश्वर एक है, इसे स्वीकार करें और उसकी आराधना करें जिससे अमन और शांति प्राप्त की जा सकती है। यह किसी भी इंसान की समझ में आता है और इसे ईमानदारी से विश्वास करके प्राप्त किया जा सकता है कि ईश्वर के अलावा कोई ईश्वर नहीं है।

दुर्भाग्यवश इस निडरता भरी नई सदी में, हम सीमाओं को बढ़ाना जारी रखते हैं और दुनिया को उसकी महिमा में फिर से खोजते हैं लेकिन निर्माता को भूल गए हैं, और यह भी भूल गए हैं कि जीवन असल में आसान होना था। अगर हमें शांति से रहना है और दर्द, मानसिक उथल-पुथल और दुख की बेड़ियों को तोड़ना है, तो ईश्वर के साथ अपना संबंध खोजना और उसके साथ संबंध स्थापित करना सर्वोपरि है।

इस्लाम दुनिया के हर कोने में मौजूद सभी लोगों के लिए हर समय के लिए है। यह पुरुषों के लिए या किसी विशेष जाति या जातीयता के लिए नहीं आया था। यह क़ुरआन में मिली शिक्षाओं और पैगंबर मुहम्मद की प्रामाणिक परंपराओं के आधार पर जीवन का एक संपूर्ण सार है। एक बार फिर, सुनने में काफी सरल लगता है, है ना? निर्माता ने अपनी रचना के लिए मार्गदर्शन प्रकट किया। यह इस जीवन और अगले जीवन दोनों में अनंत काल तक सुख प्राप्त करने की एक अचूक योजना है।

क़ुरआन और प्रामाणिक परंपराएं ईश्वर के अवधारणा की व्याख्या करती हैं और इस बात का विवरण देती हैं कि क्या हलाल है और क्या हराम है। वे अच्छे शिष्टाचार और नैतिकता की मूल बातें समझाते हैं, और इबादत को लेकर नियम प्रदान करते हैं। वे नबियों और हमारे धर्मी पूर्ववर्तियों के बारे में कहानियां सुनाते हैं, और स्वर्ग और नर्क का वर्णन करते हैं। यह मार्गदर्शन पूरी मानव जाति के लिए पेश किया गया था, और स्वयं ईश्वर कहता है कि वह मानव जाति को कठिनाई में नहीं डालना चाहते हैं।

“ईश्वर नहीं चाहता है कि वह तुम पर कोई कठिनाई डाले, बल्कि वह चाहता है कि तुमको पवित्र करे और तुम पर अपनी कृपा पूरी करे ताकि तुम आभार प्रकट करने वाले बनो।” (क़ुरआन 5:6)

जब हम ईश्वर से बात करते हैं, तो वह सुनता है और जवाब देता है और सच्चाई जो कि इस्लाम है, एक ईश्वर का होना, यह ज़ाहिर करता है। यह सब सुनने में सरल लगता है, और पेचीदा नहीं होना चाहिए, लेकिन दुख की बात है कि हम, मानव जाति चीज़ों को कठिन बना देते हैं। हम जिद्दी हैं फिर भी ईश्वर लगातार हमारे लिए रास्तों से अड़चनों को हटाता है।

इस्लाम को एक सच्चे धर्म के रूप में क़बूल करना सरल होना चाहिए। ईश्वर के अलावा कोई ईश्वर नहीं है। उस कथन से अधिक स्पष्ट और क्या हो सकता है? कम पेचीदा जैसा कुछ भी नहीं है, लेकिन कभी-कभी आस्था प्रणाली को फिर से परिभाषित करने की संभावना पर विचार करना डरावना और बाधाओं से भरा हो सकता है। जब कोई व्यक्ति इस्लाम को अपने पसंदीदा धर्म के रूप में क़बूल करता है तो वे अक्सर इसे क़बूल न करने के कारणों से उभरते हैं कि उनका दिल जो उन्हें बता रहा है वह सच है।

फ़िलहाल, इस्लाम की सच्चाई उन नियमों और विनियमों से धुंधली हो गई है जिन्हें पूरा करना लगभग असंभव प्रतीत होता है। मुसलमान शराब नहीं पीते, मुसलमान सूअर का मांस नहीं खाते, मुस्लिम महिलाओं को स्कार्फ़ पहनना चाहिए, मुसलमानों को हर दिन पांच बार नमाज़ अदा करनी चाहिए। पुरुष और महिलाएं खुद को ऐसी बातें कहते हुए पाते हैं, "मैं संभवतः शराब पीना बंद नहीं कर सकता", या "मेरे लिए हर दिन अकेले पांच बार नमाज़ करना बहुत मुश्किल होगा"।

हालांकि सच्चाई यह है कि एक बार जब एक व्यक्ति ने स्वीकार कर लिया कि ईश्वर के अलावा कोई ईश्वर नहीं है और उसके साथ एक संबंध विकसित करना है तो नियम और कानून महत्वहीन हो जाते हैं। यह ईश्वर को ख़ुश करने की एक धीमी प्रक्रिया है। कुछ लोगों के लिए अच्छे जीवन के लिए दिशा-निर्देशों को स्वीकार करना कुछ दिन, घंटों तक का मामला होता है, मगर दूसरों के लिए यह कुछ हफ़्ते, महीने या साल भी हो सकता है। इस्लाम में प्रत्येक व्यक्ति का सफ़र अलग है। प्रत्येक व्यक्ति अनोखा है और प्रत्येक व्यक्ति का ईश्वर से संबंध एक विशिष्ट परिस्थितियों के ज़रिए होता है। एक सफ़र दूसरे से ज़्यादा सही नहीं है।

बहुत से लोग मानते हैं कि उनके पाप बहुत बड़े हैं और अक्सर होते रहे हैं जिन्हें ईश्वर कभी माफ नहीं कर सकता। वे जो जानते हैं वह सच है, यह स्वीकार करने में वे हिचकिचाते हैं क्योंकि उन्हें डर है कि वे ख़ुद को नियंत्रित नहीं कर पाएंगे और पाप या अपराध करना छोड़ देंगे। हालांकि इस्लाम धर्म माफ़ करने का धर्म है और ईश्वर अक्सर माफ़ कर देता है। भले ही मानव जाति के पाप कितना ही बढ़ जाए, ईश्वर माफ़ करेगा और तब तक माफ़ करता रहेगा जब तक हमारी क़यामत की घड़ी हमारे नज़दीक नहीं आ जाती।

अगर कोई व्यक्ति वाकई ये मानता है कि ईश्वर के अलावा कोई ईश्वर नहीं है, तो उसे बिना देर किए इस्लाम क़बूल कर लेना चाहिए। यहां तक कि अगर उसे लगता है कि वह पाप करना जारी रखेगा, या फिर इस्लाम के कुछ पहलू हैं जिसे वे पूरी तरह से नहीं समझते हैं। एक ईश्वर में विश्वास इस्लाम में सबसे मौलिक विश्वास है और एक बार जब कोई व्यक्ति ईश्वर के साथ संबंध स्थापित कर लेता है तो उसके जीवन में बदलाव होंगे; वैसे बदलाव जो कभी अनुभव नहीं किया होगा।

अगले लेख में, हम सीखेंगे कि माफ़ न करने योग्य केवल एक पाप है और वह ईश्वर सबसे रहमदिल, दयालु है।

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इस्लाम क़बूल करना (भाग 2 का 2): माफ़ कारने वाला धर्म

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विवरण: इस्लाम क़बूल करने से पिछले पाप धुल जाते हैं।

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Accepting_Islam_(part_2_of_2)_001.jpgहमने इस लेख के भाग 1 को यह सुझाव देकर पूरा किया कि अगर कोई व्यक्ति वाकई मानता है कि कोई ईश्वर नहीं है ईश्वर के सिवा, तो उसे तुरंत इस्लाम क़बूल कर लेना चाहिए। हमने यह बात भी सामने रखा कि इस्लाम माफ़ करने वाला धर्म है। एक व्यक्ति ने चाहे कितने ही पाप कर लिए हों, वह कभी भी अक्षम्य नहीं होता है। ईश्वर काफ़ी दयालु, रहमदिल है और क़ुरआन इन गुणों पर 70 से अधिक बार जोर देता है।

“और ईश्वर ही के अधिकार में है जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है। वह जिसको चाहे क्षमा कर दे और जिसको चाहे यातना दे और ईश्वर क्षमा करने वाला, दयावान है।” (क़ुरआन 3:129)

हालांकि, एक पाप है जिसे ईश्वर माफ़ नहीं करेगा और वह है ईश्वर के साथ भागीदार या सहयोगी बनाने का पाप। एक मुसलमान का मानना है कि ईश्वर एक है, जिसका कोई दोस्त, संतान या सहयोगी नहीं है। वही इकलौता है जो आराधना के योग्य है।

“कहो, वह ईश्वर एक है। ईश्वर निरपेक्ष (और सर्वाधार) है। न वह जनिता है और न जन्य। और न कोई उसका समकक्ष है।” (क़ुरआन 112)

“निसंदेह, ईश्वर इसको क्षमा नहीं करेगा कि उसके साथ साझेदार किए जाएं। लेकिन इसके अतिरिक्त जो कुछ है उसको जिसके लिए चाहेगा क्षमा कर देगा।” (क़ुरआन 4:48)

यह कहना अजीब लग सकता है कि ईश्वर सबसे रहमदिल है, और ज़ोर देकर कहते हैं कि इस्लाम माफ़ करने वाला धर्म है, जबकि यह भी कहा जा रहा है कि एक पाप है जिसे माफ़ नहीं किया जा सकता है। जब आप समझ जाते हैं कि यह एक अजीब या अविश्वसनीय अवधारणा नहीं है, यह संगीन पाप केवल तभी माफ़ नहीं किया जा सकता है जब कोई व्यक्ति ईश्वर से पश्चाताप किए बिना मर जाता है। किसी भी समय, जब तक कोई पापी व्यक्ति अपनी अंतिम सांस नहीं लेता है, तब तक वह ईमानदारी से ईश्वर की ओर मुड़ सकता है और माफ़ी मांग सकता है, यह जानते हुए कि ईश्वर असल में सबसे रहमदिल और सबसे दयालु है। सच्चा पश्चाताप ईश्वर की माफ़ी का भरोसा दिलाता है।

“अवज्ञाकारियों से कहो कि यदि वह मान जाएं तो जो कुछ हो चुका है उसे क्षमा कर दिया जायेगा।” (क़ुरआन 8:38)

पैगंबर मुहम्मद, उन पर ईश्वर की दया और कृपा बनी रहे, ने कहा: "ईश्वर अपने दास के पश्चाताप को तब तक स्वीकार करेंगे जब तक कि मौत की खड़खड़ाहट उसके गले तक नहीं पहुंचती है।"[1] पैगंबर मुहम्मद ने यह भी कहा, "इस्लाम उसके पुराने (पापों) को नष्ट कर देता है"।[2]

जैसा कि पिछले लेख में चर्चा किया गया था, अक्सर जब कोई व्यक्ति इस्लाम क़बूल करने पर विचार कर रहा होता है, तो वे अपने जीवनकाल में किए गए कई पापों से भ्रमित या यहां तक कि शर्मिंदा भी होता है। कुछ लोगों को हैरानी भी होती है कि जब वे अपने पापों और अपराधों को छिपाते हैं तो वे अच्छे, नैतिक लोग कैसे बन सकते हैं।

इस्लाम को क़बूल करना और शहादत या विश्वास की गवाही के रूप में जाने वाले शब्दों का उच्चारण करना, (मैं गवाही देता हूं "ला इलाह इल्ला अल्लाह, मुहम्मद रसूलु अल्लाह"[3]), एक व्यक्ति के मन को पूरा साफ कर देता है। वह एक नवजात शिशु की तरह हो जाता है, पाप से पूरी तरह मुक्त हो जाता है। यह एक नई शुरुआत है, जहां किसी के पिछले पाप अब किसी व्यक्ति को बांध कर नहीं रख सकते। पिछले पापों से डरने की ज़रूरत नहीं है। हर नया मुसलमान इस मूल आस्था के आधार पर जीवन जीने के लिए स्वतंत्र और मुक्त हो जाता है कि ईश्वर एक है।

जब कोई व्यक्ति इस डर से पीछे नहीं रहता कि उनके पिछले पाप या जीवनशैली उन्हें एक अच्छा जीवन जीने से रोकती है, तो इस्लाम क़बूल करने का मार्ग अक्सर आसान हो जाता है। यह जानना किसी के लिए भी अच्छा है कि ईश्वर किसी को भी, किसी भी चीज़ के लिए माफ़ कर सकता है। हालांकि, ईश्वर के अलावा किसी और की आराधना न करने के मायने को समझना सर्वोपरि है क्योंकि यह इस्लाम का आधार है।

ईश्वर ने मानवजाति की रचना नहीं की, सिवाय इसके कि वे केवल उसकी पूजा करें (क़ुरआन 51:56) और उस पूजा को शुद्ध और पवित्र रखने के बारे में जानना अनिवार्य है। हालांकि, विवरण अक्सर तब सीखा जाएगा जब किसी व्यक्ति ने जीवन के बड़े सच को पहचान लिया है जो कि इस्लाम है।

“और तुम अनुसरण करो अपने पालनहार की भेजी हुई किताब के श्रेष्ठ पहलू की, इससे पहले कि तुम पर अचानक यातना आ जाये और तुमको सूचना न हो।" जिस पर एक व्यक्ति कह सकता है: "कहीं कोई व्यक्ति यह कहे कि अफसोस मेरी कोताही पर जो मैंने ईश्वर के बारे में की, और मैं तो उपहास (अवज्ञा) करने वालों में सम्मिलित रहा।" (क़ुरआन 39:55-56)

एक बार जब कोई व्यक्ति इस्लाम की सच्चाई को स्वीकार कर लेता है, इस प्रकार वह यह स्वीकार कर लेता है कि ईश्वर के अलावा कोई ईश्वर नहीं है, तो उसके पास अपने धर्म के बारे में जानने का वक़्त है। उसके पास इस्लाम की प्रेरणात्मक सुंदरता और सहजता को समझने और आखिरी पैगंबर, मुहम्मद सहित इस्लाम के सभी पैगंबरों और दूतों के बारे में जानने का वक़्त है। अगर ईश्वर यह आदेश देता है कि इस्लाम क़बूल करने के तुरंत बाद किसी व्यक्ति का जीवन समाप्त हो जाएगा, तो इसे ईश्वर की कृपा के संकेत के रूप में देखा जा सकता है; जिसे ईश्वर की कृपा और उसके असीम ज्ञान से एक नवजात शिशु के रूप में पवित्र व्यक्ति के लिए अनंत स्वर्ग के लिए नियत किया जाएगा।

जब कोई व्यक्ति इस्लाम क़बूल करने पर विचार कर रहा होता है, तो सामने आने वाली सारी बाधाएं शैतान के माया और छल के अलावा और कुछ नहीं है। यह स्पष्ट है कि एक बार जब कोई व्यक्ति ईश्वर द्वारा चुन लिया जाता है, तो शैतान उस व्यक्ति को भटकाने के लिए हर संभव प्रयास करेगा और उन पर छोटे-छोटे अफ़वाहों और शंकाओं की बौछार करेगा। इस्लाम धर्म एक तोहफ़ा है, और किसी भी अन्य तोहफ़े की तरह इसे स्वीकार किया जाना चाहिए, और इसकी सामग्री के सच्चे मोल को प्रकट करने के लिए खोला जाना चाहिए। इस्लाम ज़िंदगी जीने का एक तरीका है जो मृत्यु के बाद परम सुख प्रदान करता है। ईश्वर के अलावा कोई ईश्वर नहीं है, एकमात्र ईश्वर, पहला और आखिरी। उसे जानना सफलता की कुंजी है और इस्लाम को क़बूल करना मृत्यु के बाद की ज़िंदगी के सफ़र का पहला कदम है।



फ़ुटनोट्स:

[1] अत-तिर्मिज़ी

[2] सहीह मुस्लिम

[3] मैं गवाही देता हूं कि ईश्वर के अलावा कोई भी आराधना के योग्य नहीं है और मैं गवाही देता हूं कि मुहम्मद ईश्वर के पैगंबर हैं। शहादत के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करें

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