इस्लाम उदासी और चिंता से कैसे निपटता है (4 का भाग 2): धैर्य।

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विवरण: इस जीवन में सुख और परलोक में हमारा उद्धार धैर्य पर निर्भर करता है।

  • द्वारा Aisha Stacey (© 2010 IslamReligion.com)
  • पर प्रकाशित 04 Nov 2021
  • अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
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How_Islam_Deals_With_Sadness_and_Worry_(part_2_of_3)_001.jpgउदासी और चिंता मनुष्य के जीवन का हिस्सा हैं। जीवन भावनाओं की एक श्रृंखला है। दो सबसे मुख्य पल होते हैं, पहला वो जब हमारा दिल खुश होता है दूसरा वो अंधेरे से भरा पल जो हमें उदासी और चिंता में डूबा देता है। इन दोनों के बीच मे वास्तविक जीवन है; उतार, चढ़ाव, सांसारिक और उबाऊ, मीठे और रौशनी से भरे। ऐसे समय में ही आस्तिक को ईश्वर से संबंध बनाने का प्रयास करना चाहिए।

आस्तिक को एक ऐसा बंधन बनाना चाहिए जो अटूट हो। जब जीवन का आनंद हमारे दिलों और दिमागों में भर जाए तो हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह ईश्वर का आशीर्वाद है और इसी तरह जब हमें दुख और चिंता हो तो हमें यह महसूस करना चाहिए कि यह भी ईश्वर की ओर से है, भले ही पहली नज़र में ये हमें आशीर्वाद न लगे।

ईश्वर सबसे बुद्धिमान और सबसे न्यायी है। हम अपने आप को किसी भी स्थिति में पाएं, और चाहे हम किसी भी परिस्थिति का सामना करने के लिए मजबूर हों, यह महत्वपूर्ण है कि हम ये समझें कि ईश्वर जानता है हमारे लिए क्या अच्छा है। हालांकि हम अपने डर और चिंताओं का सामना करने से कतराते हैं, हो सकता है कि हम उस चीज़ से नफरत करते हैं जो हमारे लिए अच्छी है और कुछ ऐसा चाहते हैं जो विनाश का कारण होता है।

"...और यह हो सकता है कि तुम उस चीज़ को नापसंद करते हो जो तुम्हारे लिए अच्छी है और तुमको वह चीज़ पसंद है जो तुम्हारे लिए बुरी है। ईश्वर जानता है लेकिन तुम नहीं जानते हो।" (क़ुरआन 2:216)

इस दुनिया के जीवन को हमारे ईश्वर ने परलोक में एक आनंदमय जीवन जीने की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए बनाया था। जब हम परीक्षाओं का सामना करते हैं, तो वे हमें परिपक्व बनाती है ताकि हम इस थोड़े समय की दुनिया में सहजता से कार्य कर सकें।

इस दुनिया की परीक्षाओं और समस्याओं के सामने ईश्वर ने हमें ऐसे ही नहीं छोड़ दिया, उन्होंने हमें शक्तिशाली हथियार दिए हैं। इनमे से तीन सबसे महत्वपूर्ण हैं, धैर्य, कृतज्ञता और विश्वास। 14वीं शताब्दी के महान इस्लामी विद्वान इब्न अल-कय्यम ने कहा कि इस जीवन में हमारी खुशी और परलोक में हमारा उद्धार धैर्य पर निर्भर करता है।

"मैंने उन्हें आज बदला (प्रतिफल) दे दिया है उनके धैर्य का, वास्तव में वही सफल हैं।" (क़ुरआन 23:111)

"... जो दर्द या पीड़ा, और विपत्ति, और घबराहट के समय में धैर्यवान रहे। वही लोग सच्चे हैं, ईश्वर से डरने वाले।” (क़ुरआन 2:177)

धैर्य का अरबी शब्द सब्र है और यह मूल शब्द से आया है जिसका अर्थ है रुकना, बंद करना या बचना। इब्न अल-कय्यम ने समझाया [1] कि धैर्य रखने का अर्थ है खुद को निराशा से रोकने की क्षमता, शिकायत करने से बचना, और दुख और चिंता के समय में खुद को नियंत्रित करना। पैगंबर मुहम्मद के दामाद अली इब्न अबू तालिब ने धैर्य को "ईश्वर से मदद मांगने" के रूप में परिभाषित किया। [2]

जब भी हम उदासी और चिंता से घिर जाएं तो हमारी पहली प्रतिक्रिया हमेशा ईश्वर की ओर जाना होनी चाहिए। उसकी महानता और सर्वशक्तिमानता को पहचानने से हम यह समझ जाते हैं कि केवल ईश्वर ही हमारी परेशान आत्माओं को शांत कर सकता है। ईश्वर ने स्वयं हमें उसे पुकारने की सलाह दी।

"और सभी सुंदर नाम ईश्वर के हैं, उन्हें इन्हीं नामो से पुकारो, और उन लोगों की संगति छोड़ दो जो उनके नामों को झुठलाते हैं या इनकार करते हैं (या उनके खिलाफ अभद्र भाषा बोलते हैं)..." (क़ुरआन 7:180)

पैगंबर मुहम्मद ने हमें ईश्वर को उनके सबसे सुंदर नामों से पुकारने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने अपनी खुद की प्रार्थनाओं में कहा, "हे ईश्वर, मैं आपका हर वो नाम लेकर मांगता हूं जिसे आपने अपने लिए रखा है, या जिसे आपने अपनी किताब में बताया है, या आपने अपनी किसी भी रचना को सिखाया है, या आपने अपने अदृश्य ज्ञान में छिपा रखा है।"[3]

दुख और तनाव के समय में ईश्वर के नाम का चिंतन करने से राहत मिल सकती है। यह हमें शांत और धैर्यवान रहने में भी मदद कर सकता है। यह समझना महत्वपूर्ण है कि यद्यपि आस्तिक को दुख और पीड़ा में परेशान न होने या तनावों और समस्याओं के बारे में शिकायत न करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, फिर भी उसे ईश्वर से प्रार्थना करने और उससे राहत मांगने की अनुमति है।

मनुष्य कमजोर होते हैं। हम रोते हैं, हमारे दिल टूट जाते हैं और दर्द कभी-कभी लगभग असहनीय होता है। यहां तक कि पैगंबरो जिनका ईश्वर से अटूट संबंध था, उन्होंने भी महसूस किया कि उनके हृदय भय या पीड़ा से जकड़ गए हैं। उन्होंने भी ईश्वर की ओर ध्यान केंद्रित किया और राहत की भीख मांगी। हालांकि उनकी शिकायतों में पूरा धैर्य था और जो कुछ भी ईश्वर ने तय किया था उसकी स्वीकृति थीं।

जब पैगंबर याकूब अपने बेटों यूसुफ या बिन्यामिन को कभी न देख सकने के कारण निराश हुए तो उन्होंने ईश्वर की ओर ध्यान किया, और क़ुरआन हमें बताता है कि उन्होंने ईश्वर से राहत की गुहार लगाई। पैगंबर याकूब जानते थे कि दुनिया के खिलाफ उग्र होने का कोई मतलब नहीं है, वे जानते थे कि ईश्वर धैर्यवान लोगों से प्यार करता है और उनकी रक्षा करता है।

"उन्होंने कहा: 'मैं सिर्फ ईश्वर से अपने शोक और दुख की शिकायत करता हूं, और मैं ईश्वर के बारे में वह जानता हूं जो तुम नहीं जानते।'" (क़ुरआन 12:86)

क़ुरआन हमें यह भी बताता है कि पैगंबर अय्यूब ने ईश्वर की दया के लिए उनकी तरफ ध्यान लगाया। वह गरीब थे, बीमार थे, और उन्होंने अपने परिवार, दोस्तों और आजीविका को खो दिया था, फिर भी उन्होंने यह सब धैर्य और सहनशीलता के साथ सहन किया और ईश्वर की ओर ध्यान लगाया।

"और अय्यूब (की उस स्थिति) को (याद करो), जब उसने पुकारा अपने पालनहार को कि मुझे रोग लग गया है और तू सबसे अधिक दयावान् है। तो हमने उसकी गुहार सुन ली और दूर कर दिया जो दुख उसे था और दे दिया उसे उसका परिवार तथा उतने ही और उनके साथ, अपनी विशेष दया से तथा उपासकों की शिक्षा के लिए। (क़ुरआन 21: 83-84)

धैर्य का अर्थ है जो हमारे नियंत्रण से बाहर है उसे स्वीकार करें। तनाव और चिंता के समय में, ईश्वर की इच्छा के सामने आत्मसमर्पण करना एक बड़ी राहत है। इसका मतलब यह नहीं है कि हम आराम से बैठ जाएं और जीवन को गुजरने दें। नहीं! इसका अर्थ है कि हम अपने जीवन के सभी पहलुओं में, अपने काम और खेल में, अपने पारिवारिक जीवन में और अपने व्यक्तिगत प्रयासों में ईश्वर को प्रसन्न करने का प्रयास करें।

हालांकि, जब चीजें उस तरह से नहीं होती जैसा हमने सोचा था या चाहते थे, उस समय भी जब हमें ऐसा लगता है कि भय और चिंताएं घेर रही हैं, हम ईश्वर का आदेश स्वीकार करते हैं और उन्हें खुश करने का प्रयास करना जारी रखते हैं। धैर्यवान होना कठिन है; यह हमेशा स्वाभाविक रूप से या आसानी से नहीं आता है। पैगंबर मुहम्मद (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) ने कहा, "जो कोई भी धैर्य रखने की कोशिश करेगा तो ईश्वर धैर्य रखने में उसकी मदद करेंगे"।[4]

हमारे लिए धैर्य रखना तब आसान हो जाता है जब हम यह महसूस करते हैं कि ईश्वर ने हमें अनगिनत आशीर्वाद दिए हैं। वो हवा जिसमे हम सांस लेते हैं, वो धूप, वो हमारे बालों के बीच से गुजरती हवा, वो सूखी धरती पर बारिश और गौरवशाली क़ुरआन, और हमारे लिए ईश्वर की बातें, ये सब ईश्वर के असंख्य आशीर्वादों में से हैं। ईश्वर को याद करना और उनकी महानता पर चिंतन करना धैर्य की कुंजी है, और धैर्य कभी न खत्म होने वाले स्वर्ग की कुंजी है, वो स्वर्ग जो कमजोर मनुष्यो के लिए ईश्वर का सबसे बड़ा आशीर्वाद है।



फुटनोट:

[1] इब्न कय्यम अल जवजियाह, 1997, पेशेंस एंड ग्रेटीट्यूड, अंग्रेजी अनुवाद, यूनाइटेड किंगडम, ता हा प्रकाशक।

[2] इबिड पृष्ठ12

[3] अहमद, अल बनिव द्वारा सर्गीकृत सहीह।

[4] इब्न कय्यम अल जवजियाह, 1997, पेशेंस एंड ग्रेटीट्यूड, अंग्रेजी अनुवाद, यूनाइटेड किंगडम, ता हा प्रकाशक, पृष्ठ 15

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