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क्या क़ुरआन मुहम्मद ने लिखा था?

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  • द्वारा Imam Mufti
  • पर प्रकाशित 04 Nov 2021
  • अंतिम बार संशोधित 05 Sep 2022
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क़ुरआन की रचना किसने की? किसी ने इसे बनाया होगा! आखिर इतिहास में कितने रेगिस्तान के लोग आगे आये हैं और दुनिया को क़ुरआन जैसी किताब दी है? किताब में पिछले राष्ट्रों, पैगंबरो और धर्मों के साथ-साथ उस समय अनुपलब्ध सटीक वैज्ञानिक जानकारी का अद्भुत विवरण है। इन सबका स्रोत क्या था? अगर हम क़ुरआन के दैवीय स्रोत को नकार दें, तो हमारे पास कुछ ही संभावनाएं बचती हैं:

- पैगंबर मुहम्मद ने इसे खुद लिखा था।

- उन्होंने इसे किसी और से लिया था। अगर ऐसा है तो उन्होंने इसे या तो एक यहूदी या एक ईसाई या अरब में विदेशियों में से किसी एक से लिया होगा। मक्कावासियों ने उन पर यह आरोप नहीं लगाया कि उन्होंने इसे उनमें से किसी एक से लिया है।

ईश्वर की ओर से एक संक्षिप्त प्रतिक्रिया:

"और वे कहते हैं, 'ये पुराने लोगों की लिखी हुई चीज़ें हैं जिन्हें ये नक़ल करता है और वो उसे सुबह और शाम सुनाई जाती है। ऐ पैगंबर इनसे कहो, 'इसे उसने उतारा है जो आकाश और पृथ्वी के हर राज जानता है। वास्तव में वह बड़ा माफ़ करने वाला और दया करने वाला है।" (क़ुरआन 25:5-6)

उनके विरोधियों को यह अच्छी तरह से पता था कि उनके बीच पले-बढ़े मुहम्मद ने अपने जन्म के समय से कभी पढ़ना या लिखना नहीं सीखा था। वे जानते थे कि उसने किससे मित्रता की और वह कहां गया था; उन्होंने उसे 'अल-अमीन', विश्वसनीय, भरोसेमंद, ईमानदार कहकर उसकी सत्यनिष्ठा और ईमानदारी को स्वीकार किया।[1]  केवल उनके उपदेश के प्रति द्वेष में उन्होंने उन पर आरोप लगाया - और फिर वे कुछ भी सोच सकते थे: उन पर एक जादूगर, एक कवि और यहां तक कि एक धोखेबाज होने का आरोप लगाया गया था! वे निर्णय नहीं ले सके कि वो क्या हैं। ईश्वर कहता हैं:

"देखो, वे तुम्हारी तुलना कैसे करते हैं, परन्तु वे भटक गए हैं, इसलिए उन्हें कोई रास्ता नहीं मिलता है।" (क़ुरआन 17:48)

बस ईश्वर जानता है कि आसमान और जमीन पर क्या है, वह अतीत और वर्तमान को जानता है, और सत्य को अपने पैगंबर को बताता है।

क्या मुहम्मद इसे लिख सकते थे?

यह असंभव है कि मुहम्मद क़ुरआन लिख सकते थे, जिसके कारण निम्नलिखित हैं:

पहला, कई ऐसे मौकों आये जहां वह रहस्योद्घाटन को गढ़ सकते थे। उदाहरण के लिए, पहला रहस्योद्घाटन आने के बाद, लोग और अधिक सुनने की प्रतीक्षा कर रहे थे, लेकिन पैगंबर को महीनों तक कुछ भी नया रहस्योद्घाटन नहीं आया। मक्का के लोग उनका यह कहकर मज़ाक उड़ाने लगे कि, 'उसके ईश्वर ने उसे छोड़ दिया है!' 93वें अध्याय, अद-दोहा, के आने तक यह चलता रहा। पैगंबर मजाक को समाप्त करने के लिए कुछ भी बोल सकते थे और इसे नए रहस्योद्घाटन के रूप में प्रस्तुत कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। इसके अलावा उनकी पैगंबरी के दौरान, कुछ पाखंडियों ने उनकी प्यारी पत्नी आयशा पर बदचलन होने का आरोप लगाया। पैगंबर उसे आरोप से मुक्त करने के लिए आसानी से कुछ भी गढ़ सकते थे, लेकिन उन्होंने कई दिनों तक इंतजार किया, सभी दिन दर्द, उपहास और पीड़ा में बिताए, फिर की ओर से रहस्योद्घाटन हुआ और उनकी पत्नी को आरोप से मुक्त किया गया।

दूसरा, क़ुरआन के भीतर आंतरिक प्रमाण हैं कि मुहम्मद इसके लेखक नहीं थे। कई छंदों में उनकी आलोचना की गई है, और कभी-कभी कड़े शब्दों में कहा गया है। एक धोखेबाज पैगंबर खुद को कैसे दोष दे सकता है जबकि ऐसा करने पर उसका सम्मान खो सकता है और उसके अनुयायि उसका अनुसरण करना बंद कर सकते हैं? यहां कुछ उदाहरण दिए गए हैं:

"ऐ पैगंबर! तुम क्यों उस चीज़ को नहीं करते जो ईश्वर ने तुम्हारे लिए वैध की है, क्या इसलिए की तुम अपनी पत्नियों की ख़ुशी चाहते हो? और ईश्वर माफ़ करने वाला और दयालु है।" (क़ुरआन 66:1)

"...उस समय तुम अपने दिल में वो बात छिपाए हुए थे जिसे ईश्वर बताना चाहता था, आप लोगों से डर रहे थे, हालांकि ईश्वर इसका ज्यादा हक़दार है कि आप उससे डरो..." (क़ुरआन 33:37)

"यह पैगंबर और उन लोगों के लिए उचित नहीं है की वो बहुदेववादियों के लिए माफी की दुआ करें, भले ही वे रिश्तेदार क्यों न हो, जबकि उनको ये पता चल गया है कि वे नरक में जायेंगे।" (क़ुरआन 9:113)

"और जो खुद तुम्हारे पास ज्ञान के लिए दौड़ा आता है, और वह ईश्वर से डर रहा होता है, तुम उसकी उपेक्षा करते हो। हरगिज़ नही, ये तो एक नसीहत है।" (क़ुरआन 80:8-11)

यदि उन्हें कुछ छिपाना होता तो वह इन छंदो को छुपाते, परन्तु उन्होंने ईमानदारी से सुनाया।

"और वह [मुहम्मद] अनदेखी चीजों के ज्ञान का धारक नहीं है। और यह [क़ुरआन] शैतान के शब्द नहीं है जिसे स्वर्ग से निकाल दिया गया है। तो फिर तुम लोग कहां जा रहे हो? यह और कुछ नहीं बल्कि दुनिया वालों के लिए नसीहत है।" (क़ुरआन 81:24-27)

पैगंबर को निम्नलिखित छंदों में आगाह किया गया, शायद चेतावनी दी गई:

"ऐ पैगंबर हमने ये किताब सच के साथ उतारी है ताकि ईश्वर ने जो सीधा रास्ता आपको दिखाया है उसके अनुसार आप लोगों के बीच फैसला करो। और धोखेबाजों की पैरवी न करो। और ईश्वर से क्षमा मांगो, ईश्वर बड़ा माफ़ करनेवाला और दयालु है। और उन लोगों की पैरवी न करो जो खुद को धोखा देते हैं। वास्तव में ईश्वर ऐसे लोगों को पसंद नहीं करता जो पापी और धोखेबाज होते हैं। ये लोग इंसानों से अपने बुरे इरादे और काम छिपा सकते हैं, लेकिन ईश्वर से नहीं छिपा सकते। ईश्वर तो उस समय भी उनके साथ होता है जब वो रातों में छिपकर उसकी मर्जी के खिलाफ सलाह करते हैं। और ईश्वर हमेशा उनके द्वारा किए गए कार्यों को अपने दायरे में लिए हुए है। यहां आप हैं जो इस सांसारिक जीवन में उनकी पैरवी करते हैं - लेकिन क़यामत के दिन उनके लिए ईश्वर से कौन पैरवी करेगा, आखिर वहां इनका वकील कौन होगा? और अगर कोई गलत काम कर ले या खुद पर जुल्म कर ले और फिर ईश्वर से माफ़ी मांगे तो वह पाएगा की ईश्वर बड़ा माफ़ करने वाला और दयालु है। और जो कोई भी पाप करता है वह खुद के लिए बुरा करता है। और ईश्वर को सब बातो की खबर है। यदि कोई व्यक्ति अपराध या पाप करके उसे दूसरे निर्दोष व्यक्ति पर थोप दे, तो उसने सबसे बड़ा और खुला पाप किया है। और यदि तुम पर ईश्वर की कृपा और उसकी दया नहीं होती तो इनमे से एक समूह ने तुम्हें बहकाने का निश्चय ही कर लिया था। परन्तु वे अपने सिवा किसी और को नहीं बहका रहे थे और तुम्हारा कुछ नुक्सान नहीं कर सकते थे। और ख़ुदा ने तुम पर किताब और हिकमत उतारी और तुम्हें वो बताया जो तुम नहीं जानते थे। और तुम पर ईश्वर की कृपा बहुत है।" (क़ुरआन 4:105-113)

ये छंद एक ऐसी स्थिति की व्याख्या करते हैं जिसमें मदीना के मुस्लिम कबीले के एक व्यक्ति ने कवच का एक टुकड़ा चुरा लिया और उसे अपने यहूदी पड़ोसी की संपत्ति में छिपा दिया। जब कवच के मालिकों ने उसे पकड़ा, तो वो बोला की उसने ये काम नहीं किया है, और वह कवच यहूदी व्यक्ति के पास मिला। हालाँकि, यहूदी बोला कि उसके मुस्लिम पड़ोसी ने ये किया है और वह इसमें शामिल नही है। मुस्लिम कबीले के लोग पैगंबर से उसकी याचना करने गए, और पैगंबर ने उनका पक्ष लेना शुरू कर दिया, तभी उपरोक्त छंद आया और यहूदी व्यक्ति को इस आरोप से मुक्त कर दिया गया। यह सब तब हुआ जब यहूदी मुहम्मद के पैगंबर होने का इनकार करते थे! इन छंदों ने खुद पैगंबर मुहम्मद को धोखेबाजों का साथ न देने का निर्देश दिया! छंद:

"...और धोखेबाजों के वकील न बनो और ईश्वर से उनके लिए क्षमा न मांगो... और यदि तुम पर ईश्वर की कृपा और उसकी दया नहीं होती तो इनमे से एक समूह ने तुम्हें बहकाने का निश्चय ही कर लिया था।"

यदि मुहम्मद ने स्वयं क़ुरआन की रचना की होती तो एक झूठा, धोखेबाज होने के नाते वो यह सुनिश्चित करते कि इसमें कुछ ऐसा न हो जिससे उनके अनुयायियों और समर्थकों की संख्या कम हो जाये। तथ्य यह है कि क़ुरआन, विभिन्न अवसरों पर, कुछ मुद्दों पर पैगंबर को फटकार लगाता है जिसमें उन्होंने गलत निर्णय लिया था, यह अपने आप में एक प्रमाण है कि यह उनके द्वारा नहीं लिखा गया था।



फुटनोट:

[1] मार्टिन लिंग्स द्वारा लिखित "मुहम्मद: प्रारंभिक स्रोतों पर आधारित उनका जीवन ", पृष्ट 34

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