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आधुनिक पुरातत्व खोजों से पता चलता है कि महायाजक सम्राट की बेटी थी। स्वाभाविक रूप से, उसने उस व्यक्ति का उदाहरण देने की बात कही होगी जिसने उसके मंदिर को अपवित्र किया था। जल्द ही इब्राहीम, जो अभी भी एक जवान आदमी थे [1], उन्होंने ने खुद को एक राजा के सामने अकेला खड़ा पाया, शायद वह राजा नमरूद था। यहां तक कि उनके पिता भी उनके पक्ष में नहीं थे। लेकिन ईश्वर था, जैसा वह हमेशा से था।
जहां यहूदी-ईसाई परंपरावादी स्पष्ट रूप से दावा करते हैं कि इब्राहीम को राजा नमरूद द्वारा आग की सजा सुनाई गई थी, क़ुरआन इस मामले को स्पष्ट नहीं करता है। हालांकि यह उस विवाद का उल्लेख करता है जो एक राजा का इब्राहिम के साथ हुआ था, और कुछ मुस्लिम विद्वानों का सुझाव है कि वह नमरूद ही था, लेकिन ऐसा जनता द्वारा इब्राहिम [2] को मारने के प्रयास के बाद ही हुआ था। ईश्वर द्वारा इब्राहिम को आग से बचाने के बाद, उसका मामला राजा के सामने प्रस्तुत किया गया, जिसने अपने राज्य के कारण स्वयं घमंडी होकर ईश्वर के साथ होड़ की। उसने युवक (इब्राहिम) से वाद-विवाद किया, जैसा कि ईश्वर हमें बताता है:
"(हे नबी!) क्या आपने उस व्यक्ति की दशा पर विचार नहीं किया, जिसने इब्राहीम से उसके पालनहार के विषय में विवाद किया, इसलिए कि ईश्वर ने उसे राज्य दिया था?" (क़ुरआन 2:258)
इब्राहिम का तर्क निर्विवाद था,
"मेरा पालनहार वो है, जो जीवित करता तथा मारता है, तो उसने कहाः मैं भी जीवित करता तथा मारता हूँ।" (क़ुरआन 2:258)
राजा ने दो लोगों को मौत की सजा सुनाई। उसने एक को मुक्त किया और दूसरे को दंडित किया। राजा का यह उत्तर संदर्भ से परे और पूरी तरह से मूर्खतापूर्ण था, इसलिए इब्राहीम ने कुछ और कहा, जो निश्चित रूप से उसे चुप करा दिया।
"इब्राहीम ने कहाः ईश्वर सूर्य को पूर्व से लाता है, तू उसे पश्चिम से ले आ! (ये सुनकर) अविश्वासी चकित रह गया और ईश्वर अत्याचारियों को मार्गदर्शन नहीं देता है।" (क़ुरआन 2:258)
वर्षों की निरंतर पुकार के बाद, लोगों की अस्वीकृति का सामना करते हुए, ईश्वर ने इब्राहिम को उसके परिवार और लोगों से अलग होने की आज्ञा दी।
तुम्हारे लिए इब्राहीम तथा उसके साथियों में एक अच्छा आदर्श है। जबकि उन्होंने अपनी जाति से कहाः "निश्चय हम विरक्त हैं तुमसे तथा उनसे, जिनकी तुम वंदना करते हो ईश्वर के अतिरिक्त। हमने तुमसे कुफ़्र किया। खुल चुका है बैर हमारे तथा तुम्हारे बीच और क्रोध सदा के लिए जब तक तुम विश्वास न करो अकेले ईश्वर पर।" (क़ुरआन 60:4)
हालांकि, उनके परिवार में कम से कम दो व्यक्तियों ने उनके उपदेश को स्वीकार किया - लूत, उनका भतीजा, और सारा, उनकी पत्नी। इस प्रकार, इब्राहीम अन्य विश्वासियों के साथ वहां से चले गए।
"तो मान लिया उसे (इब्राहीम को) लूत ने और इब्राहीम ने कहाः मैं प्रवास कर रहा हूँ अपने पालनहार की ओर। निश्य वही प्रबल तथा गुणी है। (क़ुरआन 29:26)
वे एक साथ एक धन्य भूमि, कनान की भूमि, या ग्रेटर सीरिया में चले गए, जहां यहूदी-ईसाई परंपराओं के अनुसार, इब्राहीम और लूत ने अपने लोगों को उस भूमि के पश्चिम और पूर्व में विभाजित कर दिया, जहां वे गए थे।[3].
"और हम, उस (इब्राहीम) को बचाकर ले गये तथा लूत को, उस भूमि की ओर, जिसमें हमने सम्पन्नता रखी है, विश्व वासियों के लिए।" (क़ुरआन 21:71)
यहीं पर, इस धन्य भूमि में, ईश्वर ने इब्राहिम को संतान की आशीष देने के लिए चुना था।
"…और हमने उसे प्रदान किया (पुत्र) इस्ह़ाक़ और (पौत्र) याक़ूब उसपर अधिक और प्रत्येक को हमने सत्कर्मी बनाया।" (क़ुरआन 21:72)
"ये हमारा तर्क था, जो हमने इब्राहीम को उसकी जाति के विरुध्द प्रदान किया, हम जिसके पदों को चाहते हैं, ऊँचा कर देते हैं। वास्तव में, आपका पालनहार गुणी तथा ज्ञानी है। और हमने, इब्राहीम को (पुत्र) इस्ह़ाक़ तथा (पौत्र) याक़ूब प्रदान किये। प्रत्येक को हमने मार्गदर्शन दिया और उससे पहले हमने नूह़ को मार्गदर्शन दिया और इब्राहीम की संतति में से दाऊद, सुलैमान, अय्यूब, यूसुफ, मूसा तथा हारून को। इसी प्रकार हम सदाचारियों को प्रतिफल प्रदान करते हैं। तथा ज़करिय्या, यह़्या, ईसा और इल्यास को। ये सभी सदाचारियों में थे। तथा इस्माईल, यस्अ, यूनुस और लूत को। प्रत्येक को हमने संसार वासियों पर प्रधानता दी है। तथा उनके पूर्वजों, उनकी संतति तथा उनके भाईयों को। हमने इनसब को निर्वाचित कर लिया और इन्हें सुपथ दिखा दिया था। यही अल्लाह का मार्गदर्शन है, जिसके द्वारा अपने भक्तों में से जिसे चाहे, सुपथ दर्शा देता है और यदि वे शिर्क करते, तो उनका सब किया-धरा व्यर्थ हो जाता। (हे नबी!) ये वे लोग हैं, जिन्हें हमने पुस्तक, निर्णय शक्ति एवं पैगंबरी दी।" (क़ुरआन 6:83-89)
पैगंबर अपने राष्ट्र के मार्गदर्शन के लिए चुने गए:
"और हमने उन्हें प्रमुख बना दिया, जो हमारे आदेशानुसार (लोगों को) सुपथ दर्शाते हैं तथा हमने वह़्यी (प्रकाशना) की, उनकी ओर सत्कर्मों के करने, प्रार्थना की स्थापना करने और दान देने की तथा वे हमारे ही उपासक थे।" (क़ुरआन 21:73)
[1] यहूदी-ईसाई परंपराएं उसे पचास वर्ष की आयु का बताती हैं। तल्मूड: चयन, एच. पोलानो। (http://www.sacred-texts.com/jud/pol/index.htm)
[2] स्टोरीज ऑफ़ द प्रॉफेट। इब्न कथीर। दारुस्सलाम प्रकाशन।
[3] यहूदी विश्वकोश: इब्राहिम
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