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स्वर्गदूत (3 का भाग 3): स्वर्गदूतों (फ़रिश्ते) द्वारा संरक्षित

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विवरण: स्वर्गदूतों और मानवजाति के बीच संबंध

  • द्वारा Aisha Stacey (© 2009 IslamReligion.com)
  • पर प्रकाशित 04 Nov 2021
  • अंतिम बार संशोधित 04 Nov 2021
  • मुद्रित: 0
  • देखा गया: 2202 (दैनिक औसत: 4)
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मुसलमानों का मानना है कि स्वर्गदूत इंसानों के जीवन में सक्रिय भूमिका निभाते हैं। यह गर्भधारण के तुरंत बाद शुरू होता है और मृत्यु के क्षण तक जारी रहता है। यहां तक कि स्वर्गदूत और मनुष्य परलोक में बातचीत भी करते हैं। स्वर्गदूत लोगों को स्वर्ग में ले जाते हैं और ये नरक के द्वार पर भी होते हैं। स्वर्गदूतों पर विश्वास करना इस्लाम की मौलिक विश्वास में से एक है।

पैगंबर मुहम्मद की परंपराओं से हमें पता चलता है कि गर्भधारण के कुछ महीने बाद ईश्वर की अनुमति से उसमें जीवन डाला जाता है। फिर एक स्वर्गदूत इस इंसान के कर्मों की किताब में चार सवालों के जवाब लिखता है। क्या यह नर होगा या मादा? क्या यह व्यक्ति सुखी होगा या दुखी? उसका जीवन काल कितना लंबा होगा, और क्या यह व्यक्ति अच्छे कर्म करेगा या बुरे?[1]

स्वर्गदूतों (फ़रिश्ते) पर लोगों की जीवन भर रक्षा करने की जिम्मेदारी होती है।

"प्रत्येक व्यक्ति के लिए उसके आगे और पीछे स्वर्गदूत हैं, जो अल्लाह के आदेश पर उसकी रक्षा करते हैं।” (क़ुरआन 13:11)

प्रत्येक व्यक्ति पर दो हिसाब रखने वाले स्वर्गदूत हैं। ये स्वर्गदूत सम्मानित लेखक हैं और उनका कर्तव्य है कि वे सभी अच्छे और बुरे कर्मों को लिखें। 

"... और वह (ईश्वर) तुम्हारे ऊपर रखवाले (रखवाली करने और अच्छे और बुरे कर्मों को लिखने वाले स्वर्गदूत) भेजता है ...।" (क़ुरआन 6:61)

"क्या वे समझते हैं कि हम नहीं सुनते हैं उनकी गुप्त बातों तथा परामर्श को? बिलकुल सुनते हैं, बल्कि हमारे स्वर्गदूत उनके पास ही हैं और लिख रहे हैं।" (क़ुरआन 43:80)

"जबकि उसके दायें और बायें ओर दो स्वर्गदूत लिख रहे हैं (प्रत्येक मनुष्य की युवावस्था की आयु के बाद)। वह एक शब्द भी नहीं बोलता है, मगर उसे लिखने के लिए उसके पास एक निरीक्षक तैयार है।" (क़ुरआन 50:17-18)

"लेकिन वास्तव में, तुमपर निरीक्षक नियुक्त हैं, जो माननीय लेखक हैं और तुम्हारे कर्मों को लिख रहे हैं।" (क़ुरआन 82:10-11)

स्वर्गदूत एक सम्मानजनक लेकिन सख्त तरीके से लिखते हैं। ऐसा कुछ भी नही है जो वे न लिखते हों। हालांकि, हमेशा की तरह इसमें भी ईश्वर की दया स्पष्ट है। पैगंबर मुहम्मद (ईश्वर की दया और कृपा उन पर बनी रहे) ने समझाया कि ईश्वर ने अच्छे और बुरे कर्मों को लिखने के नियम को परिभाषित किया है और उसका विवरण दिया है। "जो व्यक्ति अच्छा काम करने की सोचता है लेकिन कर नहीं पाता, वह उसके लिए पूरे अच्छे काम के रूप में लिखा जायेगा। यदि उसने वास्तव में अच्छा काम किया तो यह दस अच्छे कर्मों के रूप मे लिखा जायेगा, या सात सौ गुना या उससे भी अधिक तक। यदि कोई व्यक्ति कोई बुरा काम करने की सोचता है, लेकिन करता नहीं है, तो यह एक अच्छे काम के रूप में लिखा जायेगा, जबकि अगर उसने विचार किया और उस पर अमल भी किया, तो यह एक ही बुरे काम के रूप में लिखा जायेगा।"[2]

प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान इब्न काथिर ने क़ुरआन के छंद 13:10-11 पर यह कहते हुए टिप्पणी की, "प्रत्येक व्यक्ति के ऊपर स्वर्गदूत हैं जो बारी-बारी से रात और दिन उसकी रक्षा करते हैं, जो उसे शैतान और दुर्घटनाओं से बचाते हैं, उसी तरह अन्य स्वर्गदूत हैं जो बारी-बारी से उसके अच्छे और बुरे कर्मों को रात और दिन मे लिखते हैं।”

“दाईं तथा बाईं ओर दो स्वर्गदूत हैं जो उसके कर्मों को लिखते हैं। दाईं ओर वाला अच्छे कर्म लिखता है और बाईं ओर वाला बुरे कर्म लिखता है। दो अन्य स्वर्गदूत उसकी रक्षा करते हैं, एक पीछे से और एक सामने से। तो दिन के समय चार स्वर्गदूत होते हैं, और रात के समय दूसरे चार स्वर्गदूत होते हैं।”

प्रत्येक मनुष्य के साथ हर समय रहने वाले चार स्वर्गदूतों के अलावा, अन्य स्वर्गदूत लगातार मनुष्यों के पास आते-जाते रहते हैं। पैगंबर मुहम्मद अपने अनुयायियों को याद दिलाते हैं कि स्वर्गदूत मनुष्यों के पास लगातार आते-जाते रहते हैं। उन्होंने कहा, "स्वर्गदूत तुम्हारे पास रात और दिन के हिसाब से आते हैं और वे सभी फज्र (सुबह) और असर (दोपहर) की प्रार्थना के समय एक साथ इकट्ठे होते हैं। जो आपके साथ रात गुजार चुके हैं (या आपके साथ रहे हैं) वो आसमान पर जाते हैं और ईश्वर हालांकि तुम्हारे बारे में सब कुछ अच्छी तरह से जानता है लेकिन फिर भी उनसे पूछता हैं, "तुमने मेरे दासों को किस अवस्था में छोड़ा है?" स्वर्गदूत जवाब देते हैं: "जब हमने उन्हें छोड़ा तो वे प्रार्थना कर रहे थे और जब हम उनके पास पहुंचे तो भी वे प्रार्थना कर रहे थे।"[3] वे प्रार्थना देखने और क़ुरआन के छंद सुनने के लिए इकट्ठा होते हैं।

इसलिए यह समझा जा सकता है कि स्वर्गदूत मनुष्य के जीवन से बहुत अधिक जुड़े हुए हैं और यह जुड़ाव उस समय भी समाप्त नही होता जब मृत्यु का दूत आत्मा को ले जाता है, और न ही तब समाप्त होता है जब स्वर्गदूत मृत व्यक्ति से उसकी कब्र में सवाल पूछता है [4].  स्वर्गदूत स्वर्ग के द्वारपाल हैं।

"और जो लोग अपने ईश्वर के प्रति अपना कर्तव्य पूरा करते हैं, उन्हें समूहों में स्वर्ग में ले जाया जाएगा, जब वो वहां पहुंचेंगे, उसके द्वार खोल दिए जाएंगे और उसके रखवाले कहेंगे: अस्सलामु अलैकुम (ईश्वर की शांति आप पर हो!)। तुमने अच्छे कर्म किये हैं, इसलिए वहां हमेशा रहने के लिए जाओ।” (क़ुरआन 39:73)

"और हर द्वार से स्वर्गदूत उनके पास 'अस्सलामु अलैकुम (ईश्वर की शांति आप पर हो)' कहते हुए आएंगे, क्योंकि उन्होंने धैर्य बनाए रखा! वास्तव में ये परलोक का घर कितना उत्कृष्ट है!" (क़ुरआन 13:23-24)

स्वर्गदूत नरक के भी द्वारपाल हैं।

"और तुम क्या जानो कि नरक क्या है? यह किसी भी पापी को नहीं छोड़ेगी, और न ही जलाये बिना छोड़ेगी। वह खाल झुलसा देने वाली है। नियुक्त हैं उनपर उन्नीस संरक्षक (दूत)। और हमने नरक के रक्षक स्वर्गदूत ही बनाये हैं और उनकी संख्या को अविश्वासियों के लिए परीक्षा बना दिया है ताकि लोग विश्वास करें और विश्वास करने वालों के विश्वास में बढ़ोतरी हो।" (क़ुरआन 74:27-31)

ईश्वर ने स्वर्गदूतों को प्रकाश से बनाया है। वे ईश्वर की अवज्ञा नहीं कर सकते और बिना हिचकिचाहट या झिझक के ईश्वर के आदेशों का पालन करते हैं। स्वर्गदूत ईश्वर की पूजा करते हैं और यही उनका अन्न होता है। ये महान जीव मनुष्य के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे रक्षा करते हैं, कर्म लिखते हैं और रिपोर्ट करते हैं, और उन मनुष्यों के साथ इकट्ठा होते हैं जो ईश्वर को याद करते हैं। 



फुटनोट:

[1] सहीह अल-बुखारी

[2] सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम

[3] इबिड।

[4] भाग 2 देखें

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