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मृत्यु के बाद जीवन है या नहीं यह प्रश्न विज्ञान के क्षेत्र में नहीं आता, क्योंकि विज्ञान केवल दस्तावेज़ किए हुए तथ्यों के वर्गीकरण और विश्लेषण से संबंध रखता है। साथ ही, मनुष्य वैज्ञानिक जांच और अनुसंधान में, आधुनिक संदर्भ में, पिछली कुछ शताब्दियों से ही व्यस्त रहा है, जबकि मृत्यु के बाद जीवन के विचार के बारे में वह न जाने कब से परिचित है। ईश्वर के सभी पैगंबरों ने अपने अनुयाईयों से ईश्वर की प्रार्थना करने और मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास करने का आव्हान किया। उन्होंने मृत्यु के बाद के जीवन पर इतना अधिक बल दिया कि उसके बारे में तनिक भी शंका करने का अर्थ ईश्वर को अस्वीकार करना होगा, जिससे बाकी सारे विश्वास अर्थहीन हो जाएंगे। ईश्वर के कई पैगंबर आए और चले गए, उनके अवतरित होने की घटनाएँ हजारों वर्षों में फैली हुई हैं, लेकिन फिर भी मृत्यु के बाद के जीवन को सभी ने माना। उन सभी ने इस आध्यात्मिक प्रश्न को समान रूप से और इतने विश्वास के साथ प्रतिपादित किया, यही तथ्य सिद्ध करता है कि मृत्यु के बाद के बारे में उनकी इस जानकारी का स्रोत एक ही था: दिव्य रहस्योद्घाटन।
हम यह भी जानते हैं कि ईश्वर के इन सभी पैगंबरों का उनके लोगों द्वारा विरोध किया गया, विशेषकर एक बार मृत्यु हो जाने के बाद पुनर्जीवन के मामले का, क्योंकि लोगों ने सोचा कि यह असम्भव है। लेकिन इस विरोध के बावजूद, पैगंबरों ने बहुत से सच्चे अनुयायी बनाए। प्रश्न उठता है कि ऐसा क्या हुआ जो उन अनुयायियों ने अपने पुराने विश्वास को छोड़ दिया। क्यों उन्होंने अपने स्थापित विश्वासों, परंपराओं और अपने पुरखों के रीति रिवाजों को तिलांजलि (त्याग) दे दी इस खतरे की चिंता किया बिना कि वे अपने समुदाय से बिल्कुल विमुख हो जाएंगे? इसका सीधा सा उत्तर है कि उन्होंने अपने दिल और दिमाग का इस्तेमाल किया, और सत्य को पहचाना। क्या उन्होंने इस सत्य को अनुभव करके जाना? यह तो हो नहीं सकता, क्योंकि मृत्यु बाद के जीवन का यहाँ तो अनुभव नहीं किया जा सकता।
असल में, ईश्वर ने मनुष्य को अवधारणा की चेतना के साथ ही, तार्किक, सौंदर्यात्मक और नैतिक चेतना दी है। यही चेतना मनुष्य को उन वास्तविकताओं के बारे में मार्गदर्शन करती है जिन्हें अनुभव किए जा सकने वाले तथ्यों से सत्यापित किया जा सके। यही कारण है कि ईश्वर के सभी पैगंबरों ने, ईश्वर और मृत्यु बाद जीवन (परलोक) में विश्वास करने के लिये लोगों को प्रेरित करते हुए, मनुष्य की सौदर्यात्मक, नैतिक और तार्किक पक्षों का आह्वान किया। उदाहरणार्थ, जब मक्का के मूर्तिपूजकों ने मृत्यु बाद जीवन को बिल्कुल नकार दिया, तो क़ुरआन ने इसके पक्ष में बहुत ही तर्कसंगत और न्यायपूर्ण तथ्य रखकर उनके पक्ष की कमज़ोरी को उजागर किया:
“और मनुष्य ने हमारे लिये एक साम्य रखा है, और अपने सृजन का तथ्य भूल गया है, यह कहते हुए: 'इन हड्डियों को फिर से कौन जीवित करेगा जब वह सड़ चुकी हैं? हम यह कहते हैं: 'जिसने उन्हें पहले बनाया वही जीवित करेगा, क्योंकि वह हर सृष्टि को जानता है, उसने हरे पेड़ से तुम्हारे लिये अग्नि बनायी है, और ध्यान रहे! तुम उससे जलाते हो। क्या जिसने यह धरती और आकाश बनाया है, वह यह सब नहीं कर सकता? अवश्य, और वही वास्तव में सर्वशक्तिमान सर्जक है, सर्व ज्ञाता।" (क़ुरआन 36:78-81)
दूसरी जगह क़ुरआन बहुत स्पष्ट कहता है कि नास्तिकों के पास मृत्यु के बाद जीवन को नकारने का कोई ठोस आधार नहीं है। यह सिर्फ उनका एक अनुमान है:
“वे कहते हैं, 'इस वर्तमान जीवन के अलावा और कोई जीवन नहीं है; हम मरते हैं, हम जीते है, और समय के अलावा हमें कोई नष्ट नहीं करता।’ इसका उन्हें कोई ज्ञान नहीं है; वे केवल अनुमान लगाते हैं। और जब हमारे रहस्य उन्हें बताए जाते हैं, उनका केवल एक ही तर्क होता है, 'हमारे पिता को वापस लाओ, अगर तुम सच बोल रहे हो'।” (क़ुरआन 45:24-25)
निश्चय ही ईश्वर सभी मृत लोगों को जीवित करेगा, लेकिन हमारी अहमकाना इच्छा या मन बहलाव के लिये संसार का निरीक्षण करने के लिये नहीं; ईश्वर कीअपनी योजना है। एक दिन आएगा जब यह सम्पूर्ण जगत नष्ट हो जाएगा, और तब सब मृत लोगों को जीवित होकर ईश्वर के सम्मुख खड़ा होना पड़ेगा। वह दिन एक ऐसे जीवन का प्रारंभ होगा जो कभी समाप्त नहीं होगा, और उस दिन, हर व्यक्ति को ईश्वर उसके अच्छे या बुरे कर्मों का फल देगा।
मृत्यु के बाद के जीवन की अनिवार्यता का क़ुरआन जो स्पष्टीकरण देती है मनुष्य की नैतिक चेतना की माँग भी वही है। असल में, अगर मृत्यु के बाद कोई जीवन नहीं है, तो ईश्वर में विश्वास बेमानी हो जाता है, या, अगर ईश्वर में उसकी आस्था है भी, तो वह ईश्वर एक अन्यायी और उदासीन ईश्वर होगा। वह एक ऐसा ईश्वर होगा जिसने एक बार मनुष्य को बना दिया, और उसके बाद वह उसके भाग्य के प्रति उदासीन हो गया। निश्चय ही ईश्वर न्यायपूर्ण है। वह उन उत्पीड़कों को उनके बेहिसाब अपराधों के लिये दंड देगा: जिन्होंने सैकड़ों निर्दोष लोगों को मारा, समाज में भ्रष्टाचार फैलाया, अपनी हवस के लिये ढेर सारे लोगों को गुलाम बनाया, आदि। चूंकि मनुष्य का इस संसार में जीवन काल बहुत छोटा होता है, और यह भौतिक संसार भी क्षण भंगुर है, उसके बुरे या अच्छे कर्मों का समुचित दंड या पुरुस्कार यहाँ संभव नहीं है। क़ुरआन बहुत स्पष्ट कहता है कि न्याय का दिन अवश्य आएगा और ईश्वर हरेक आत्मा के भाग्य का निर्णय उसके कामों के दस्तावेज़ के अनुसार करेगा:
“जो विश्वास नहीं करते, कहते हैं: वह समय हमारे लिये कभी नहीं आएगा। मेरा ईश्वर कहता है: नहीं, वह तुम्हारे पास अवश्य आएगा। (वह) अदृष्ट को जानने वाला है। एक कण के वज़न से न कम न ज़्यादा कुछ भी, उसकी दृष्टि से न स्वर्ग में न पृथ्वी पर बच सकता है, और वह दस्तावेज़ में स्पष्ट लिखा है। वह उनको पुरुस्कार देगा जो विश्वास करते हैं और अच्छे काम करते हैं। उनके लिये क्षमा है और अच्छी वस्तुएं हैं। लेकिन जो हमारे उपदेशों के विरुद्ध काम करते हैं, (हमें) चुनौती देते हैं उनके लिये कष्टप्रद दुर्भाग्य है।” (क़ुरआन 34:3-5)
पुनर्जीवन का दिन वह दिन होगा जब ईश्वर की दया और न्याय अपने सम्पूर्ण रूप में दिखाई देगा। ईश्वर अपनी दया उन लोगों पर बिखेरेगा जिन्होंने सांसारिक जीवन में उसके लिये कष्ट सहे, इस भरोसे से कि एक अनंत आनंद उनकी प्रतीक्षा कर रहा है। लेकिन जिन्होंने आने वाले जीवन की चिंता किए बिना ईश्वर के दिए उपहारों का दुरुपयोग किया, वे बहुत ही दुखद स्थिति में आएंगे। दोनों के बीच तुलना करते हुए क़ुरआन कहता है:
“यह वही है जिसे हमने अच्छे जीवन का वचन दिया और हम इसे पूरा करेंगे, उनकी तरह जिन्हें हमने जीवन की अच्छी वस्तुएं प्रदान कीं, और फिर पुनर्जीवन के दिन वह उनमें होगा जिन्हें ईश्वर के सम्मुख लाया जाएगा?" (क़ुरआन 28:61)
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